छे, अने जेटलुं अरिहंतना आत्मामां न होय तेटलुं आ आत्मानुं स्वरूप नथी. केवळीभगवाने दया–भक्तिना
भाव होता नथी तेथी दया–भक्तिना भाव आत्मानुं स्वरूप नथी. दयादि राग छे अने हिंसादि द्वेष छे,
भगवानने राग के द्वेष होता नथी, ए तो समभावी वीतरागी ज्ञाता छे, एवुं ज बधा आत्मानुं स्वरूप छे.
ते भगवान थाय नहि. राग आत्मानुं स्वरूप नथी. जे सिद्धभगवान पासे रह्युं ते आ आत्मानुं स्वरूप छे अने
भगवाने जे टाळी दीधुं ते कांई आ आत्मानुं स्वरूप नथी.
मानीने तेवा स्वरूपे पोताने अनुभववो. एवो अनुभव करवाथी तुरत ज मोह क्षय पामे छे.
पोतानो आत्मा छे एम रागरहित अनुभव करवो ते सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन थतां ज साची श्रद्धानो विरोधी
दर्शनमोहरूप मिथ्यात्वभाव तो नाश पामी गयो. हवे, सम्यग्दर्शन पछी जे रागद्वेष छे ते पण मोहनी ज सेना छे, ते
रागद्वेष आत्माना परम वीतराग चारित्रना विरोधी छे, तेथी मोक्षार्थी जीवोए तेनो पण नाश ज करवो योग्य छे.
मोक्षनो मार्ग छे. समस्त अर्हंतो तीर्थंकरो, सिद्धभगवंतो सर्वज्ञो थया ते बधाय आ निश्चयरत्नत्रयना ज मार्गे
मोक्ष पाम्या छे; कोई काळे बीजो मार्ग मोक्षनो नथी. आ प्रमाणे जाणीने अने आ ज विधि करीने भगवंतोए
पोते सर्व कर्मोनो क्षय करीने संपूर्ण शुद्धता प्राप्त करी छे अने समवसरणमां अनंत तीर्थंकरोए दिव्यध्वनिमां आ
ज मार्ग उपदेश्यो छे. अहो! आवो एक ज प्रकारनो मोक्षमार्ग दर्शावनारा भगवंतोने नमस्कार हो.
मोक्षनो मार्ग नथी. समस्त अर्हंत भगवंतो ए ज मार्गे मोक्ष पाम्या छे अने अन्य मुमुक्षुओने पण ए ज मार्ग
उपदेश्यो छे. ते भगवंतोने नमस्कार हो.
तेमने वंदन हो. आचार्यदेव पोते छद्मस्थ छे तेथी विकल्प छे; भगवानने नमस्कार करतां विकल्पनो निषेध करे
छे ने पूर्ण शुद्धउपयोगनो आदर करे छे. जेटलो शुद्धोपयोग प्रगट्यो छे तेटलो निश्चय छे, विकल्प वर्ते छे ते
व्यवहार छे. ते व्यवहारनो निषेध छे, ने शुद्धतानो आदर छे. –ए रीते आचार्यदेवने निश्चय व्यवहारनी संधि
छे. वर्तमान विकल्प छे तेनो आदर नथी पण सर्वज्ञ देवे जे स्वभाव बताव्यो ते ज स्वभावनो आदर छे.
थया ते ज रीते हुं स्वाश्रयने अंगीकार करुं छुं; ए ज तीर्थंकरोनो पंथ छे.