Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १९८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४७४ :
आखो शुद्धात्मा प्रतीतिमां लेवो ते धर्म छे. जेटलुं केवळीभगवानना आत्मामां होय तेटलुं आ आत्मानुं स्वरूप
छे, अने जेटलुं अरिहंतना आत्मामां न होय तेटलुं आ आत्मानुं स्वरूप नथी. केवळीभगवाने दया–भक्तिना
भाव होता नथी तेथी दया–भक्तिना भाव आत्मानुं स्वरूप नथी. दयादि राग छे अने हिंसादि द्वेष छे,
भगवानने राग के द्वेष होता नथी, ए तो समभावी वीतरागी ज्ञाता छे, एवुं ज बधा आत्मानुं स्वरूप छे.
अने एवा पोताना स्वरूपनी श्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे.
कोई कहे के जेओ हमणां भगवान थया तेओ, पोतानी पूर्वे थयेला अनंता सिद्ध भगवानोनी भक्ति–
वंदना करे. तो ए वात खोटी छे. भक्ति तो राग छे, बीजाने वंदन करवानो भाव पण राग छे. जेने राग होय
ते भगवान थाय नहि. राग आत्मानुं स्वरूप नथी. जे सिद्धभगवान पासे रह्युं ते आ आत्मानुं स्वरूप छे अने
भगवाने जे टाळी दीधुं ते कांई आ आत्मानुं स्वरूप नथी.
भगवान सर्व प्रकारे स्पष्ट पूर्ण थई गया छे. तेओने हवे विनय, भक्ति, दया वगेरे कोई प्रकारनो राग
नथी; माटे सम्यग्दर्शन प्राप्त करवाना अने मोह टाळवाना जिज्ञासुए, रागरहित परिपूर्ण पोतानुं स्वरूप
मानीने तेवा स्वरूपे पोताने अनुभववो. एवो अनुभव करवाथी तुरत ज मोह क्षय पामे छे.
जेवुं द्रव्य–गुण–पर्यायपणुं अरिहंतभगवानने प्रगट्युं छे तेवुं ज पोतानुं स्वरूप छे. रागने पोतानो मानवो
अथवा तो अरिहंतना अने पोताना आत्माना स्वरूपमां फेर मानवो ते मिथ्यात्व छे. अरिहंत जेवा ज स्वरूपे
पोतानो आत्मा छे एम रागरहित अनुभव करवो ते सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन थतां ज साची श्रद्धानो विरोधी
दर्शनमोहरूप मिथ्यात्वभाव तो नाश पामी गयो. हवे, सम्यग्दर्शन पछी जे रागद्वेष छे ते पण मोहनी ज सेना छे, ते
रागद्वेष आत्माना परम वीतराग चारित्रना विरोधी छे, तेथी मोक्षार्थी जीवोए तेनो पण नाश ज करवो योग्य छे.
समस्त अर्हंतोनो मार्ग
सम्यग्दर्शन सहित मुनिदशामां व्यवहार रत्नत्रयना पालननो जे राग छे ते आत्माना शुद्धोपयोगरूप
चारित्रने रोकनार छे, तेथी ते रागने पण छोडीने आत्माना निश्चयरत्नत्रयस्वरूप अनुभूतिमां लीन थवुं ते ज
मोक्षनो मार्ग छे. समस्त अर्हंतो तीर्थंकरो, सिद्धभगवंतो सर्वज्ञो थया ते बधाय आ निश्चयरत्नत्रयना ज मार्गे
मोक्ष पाम्या छे; कोई काळे बीजो मार्ग मोक्षनो नथी. आ प्रमाणे जाणीने अने आ ज विधि करीने भगवंतोए
पोते सर्व कर्मोनो क्षय करीने संपूर्ण शुद्धता प्राप्त करी छे अने समवसरणमां अनंत तीर्थंकरोए दिव्यध्वनिमां आ
ज मार्ग उपदेश्यो छे. अहो! आवो एक ज प्रकारनो मोक्षमार्ग दर्शावनारा भगवंतोने नमस्कार हो.
८० अने ८१ मी गाथामां कह्या प्रमाणे सम्यग्दर्शन प्राप्त करीने वीतराग चारित्रना विरोधी राग–द्वेषने
टाळवा अर्थात् निश्चयरत्नत्रयात्मक शुद्धात्मानुभूतिमां लीन थवुं ते ज एक मोक्षमार्ग छे; त्रणे काळे बीजो कोई
मोक्षनो मार्ग नथी. समस्त अर्हंत भगवंतो ए ज मार्गे मोक्ष पाम्या छे अने अन्य मुमुक्षुओने पण ए ज मार्ग
उपदेश्यो छे. ते भगवंतोने नमस्कार हो.
भगवंतोने नमस्कार हो!
आचार्यदेव कहे छे के अहो, जेमणे आवो स्वभाव मने समजाव्यो ते भगवंतोने नमस्कार हो. भगवंतो
पोते स्वाश्रित शुद्धोपयोगना बळथी मोहनो नाश करीने जगतने पण एवो ज उपदेश आपीने सिद्ध थया;
तेमने वंदन हो. आचार्यदेव पोते छद्मस्थ छे तेथी विकल्प छे; भगवानने नमस्कार करतां विकल्पनो निषेध करे
छे ने पूर्ण शुद्धउपयोगनो आदर करे छे. जेटलो शुद्धोपयोग प्रगट्यो छे तेटलो निश्चय छे, विकल्प वर्ते छे ते
व्यवहार छे. ते व्यवहारनो निषेध छे, ने शुद्धतानो आदर छे. –ए रीते आचार्यदेवने निश्चय व्यवहारनी संधि
छे. वर्तमान विकल्प छे तेनो आदर नथी पण सर्वज्ञ देवे जे स्वभाव बताव्यो ते ज स्वभावनो आदर छे.
विकल्पने कारणे एम कह्युं के भगवंतोने नमस्कार हो. एटले खरेखर तो भगवान जे रीते स्वाश्रय करीने पूर्ण
थया ते ज रीते हुं स्वाश्रयने अंगीकार करुं छुं; ए ज तीर्थंकरोनो पंथ छे.
अहीं गाथा ८२ नुं व्याख्यान पूरुं थयुं.
[वीर सं. २४७२ ना मागसर सुद १५ ने दिवसे स्वाध्याय पछी प्रवचनसार गा. ८०–८१–८२ ना साररूपे पू.
सद्गुरुदेवश्रीए करेल व्याख्यान.]
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रवचनसारनी आ त्रण