बतावी दीधुं छे. भगवाने कई विधिथी कर्मो टाळ्या अने कई विधिनो उपदेश कर्यो ते आ गाथाओमां वर्णव्युं छे.
गुण एटले कायमी शक्ति. अने पर्याय एटले कायमी शक्तिनुं क्षणक्षणवर्ती परिणमन. अरिहंतने पहेलांं अने
ज्ञान–सुख–वीर्य वगेरेनी पूर्णता प्रगटी गई छे अने राग–द्वेष–मोहनो सर्वथा नाश थयो छे. आम अरिहंतना
द्रव्य–गुण–पर्यायनो जेणे पोताना ज्ञानमां निर्णय कर्यो तेने आत्मस्वभाव अने विकार वच्चे भेदज्ञान थयुं; ते
पोताना आत्माने विकार रहित परिपूर्ण स्वरूपे ओळखे छे अने तेनुं अज्ञान नाश थाय छे.
अवस्था मारुं स्वरूप नथी, अने जे ज्ञानमां में अरिहंतनो निर्णय कर्यो ते ज्ञान जेटलुंय मारुं स्वरूप नथी. द्रव्य–
गुण–पर्यायना भेदरहित एकरूप परिपूर्ण स्वरूप छुं; वर्तमान अधूरी दशा होवा छतां शक्तिरूपे पूरी दशा थवा
योग्य छुं–आम निर्णय करतां कोई निमित्तमां, पुण्य–पापमां के अधूरी दशामां एकत्वबुद्धि रहेती नथी. पर्यायनो
आश्रय छूटीने द्रव्यस्वभावनो आश्रय थाय छे; स्वभावना आश्रये पर्याय परिणमी परिणमीने पूर्णता थाय छे;
ने मोह नष्ट थाय छे. आ उपाय तीर्थंकरोए कर्यो छे.
रह्युं. परथी अने विकारथी रहित एकला स्वभाव–आश्रये परिणमन रह्युं. स्वभाव आश्रये परिणमन थतां
अल्पकाळे मुक्ति थाय ज. जेणे पोताना परिपूर्ण ज्ञान–आनंद स्वरूपनो निर्णय कर्यो छे तेने पोताना पर्यायमां
पण ज्ञान–आनंदनो अंश प्रगट्यो छे एटले विकार अने ज्ञाननुं भेदज्ञान थयुं छे. तेने हवे पुण्य–पापनो आदर
नथी. स्वभावना आश्रये ज्ञातापणुं, अने द्रष्टापणुं ऊघडयुं एटले विकार तरफनुं परिणमन टळ्युं ने केवळज्ञान
तरफ वळ्युं. जेम अरिहंतोनुं केवळज्ञान जाणनार ज छे तेम हुं पण जाणनार ज छुं–एवा ज्ञातास्वभावना
सम्यक् निर्णयना बळथी जीव केवळज्ञान तरफ ज परिणमे छे, तेनो मोह लय पामे छे, क्षायक जेवुं अप्रतिहत
सम्यग्दर्शन तेने थाय छे. आ ज रीते धर्म थाय छे.
कोई शुभरागमां के निमित्तमां निर्णय थतो नथी पण राग अने निमित्तनी अपेक्षारहित ज्ञानमां ज निर्णय थाय
छे. पोताना जे पर्यायमां निर्णय कर्यो ते पर्यायने स्वभावसन्मुख करतां क्षायक जेवुं सम्यक्दर्शन थाय छे. पहेलांं
अधूरी दशामांथी पूरी दशा प्रगट करवा माटे परनो आश्रय मानतो हतो तेथी मोह टकतो हतो, पण हवे
केवळज्ञानीनी ओळखाण करीने स्वभावसन्मुख वळ्यो त्यां कोई परना आश्रयनी मान्यता न रही, एकला
पोताना द्रव्यने परिपूर्णपणे प्रतीतमां स्वीकार्युं, एटले सम्यग्दर्शन थयुं ने मोह टळ्यो. हवे रागद्वेष रह्या तेनो
स्वरूपमां स्वीकार नथी, तेथी स्वरूपनी एकाग्रताथी शुद्धोपयोग प्रगट करतां ते राग–द्वेषनो पण क्षय ज थई
जशे. आ रीते स्वभावनो आश्रय ते ज मोक्षनो मार्ग छे–आम अरिहंतोए दर्शाव्युं छे.