Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७४ : आत्मधर्म : २०१ :
सम्यक् आत्मस्वभावनी श्रद्धा अने एकाग्रताथी मोहक्षय करीने केवळज्ञान पाम्या छीए, तमने पण ते ज
विधिवडे, पुरुषार्थपूर्वक पोताना सम्यक्आत्मतत्त्वनी श्रद्धा अने एकाग्रता करवाथी मोहनो क्षय थईने
सम्यग्दर्शन अने केवळज्ञाननी प्राप्ति थशे. माटे पुरुषार्थवडे स्वाश्रय करो. ‘कर्म मार्ग आपे तो धर्म थाय,
निमित्तना अवलंबने धर्म थाय, व्यवहारना आश्रये धर्म थाय’ एवा प्रकारनी पराधीनतानी मान्यताने छोडो.
केम के पराश्रयने मोक्षमार्ग भगवाने कह्यो नथी. मोक्षनो मार्ग पराधीन नथी पण आत्माधीन छे–स्वाधीन छे.
जेटला अरिहंतो थाय छे ते बधाय, पहेलांं तो ज्ञान वडे आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायनो निर्णय करे छे
अने शुद्ध अभेद आत्मानी प्रतीति करे छे; पछी ते ज स्वरूपमां स्थिरता करीने मोहनो क्षय करे छे ने केवळज्ञान
प्रगट करे छे. अने केवळज्ञान प्रगट थया पछी दिव्यध्वनि वडे जगतना जीवोने ए ज प्रकारनो उपदेश करीने
निर्वृत थाय छे –सिद्ध थाय छे. आ एक ज मोक्षनो विधि छे, बीजो कोई विधि नथी.
तीर्थंकर – पंथे विचरशुं
आचार्यप्रभु कहे छे के–स्वाश्रयना पुरुषार्थवडे मोहनो क्षय करीने जेओ केवळज्ञान पाम्या अने जगतने
ए ज स्वाश्रयमार्गनो उपदेश आपीने जेओ सिद्ध थया–एवा भगवंतोने हुं नमस्कार करुं छुं. हे नाथ, हुं आपने
नमुं छुं, जे मार्गे आप निर्वृत थया ते ज मार्गे हुं चाल्यो आवुं छुं. हे पूर्ण पुरुषार्थना स्वामी, भगवान!
आपना दिव्य उपदेशनी कोई अद्भुत बलिहारी छे. आपनो उपदेश जीवोने पराश्रयथी छोडावीने मोक्षमार्गमां
लगाडनारो छे. आपना चरणकमळमां हुं नमस्कार करुं छुं. कई रीते नमुं छुं? –आपना उपदेशने पामीने, आपे
उपदेशेला स्वाश्रित विधिने अंगीकार करीने हुं आपना पंथे चाल्यो आवुं छुं. अहीं एक ज प्रकारना विधिवडे
मोक्षनो उपाय बताव्यो. बीजा कोई विधिथी मोक्षनो उपाय छे नहि. मूढ अज्ञानी लोको तो आवी मान्यताने
एकांतिक मान्यता माने छे केम के तेमने स्वाश्रय मार्गनुं भान नथी. ज्ञानीओ तो कहे छे के आवा
स्वाश्रयमार्गनी यथार्थ मान्यता ते क्षायक जेवुं अप्रतिहत सम्यग्दर्शन छे. अहो नाथ! जे उपाये आपे द्रव्य–
गुण–पर्यायने ओळखीने, क्रमबद्ध आत्म पर्यायने जाणीने, अभेद स्वरूपनी प्रतीति अने स्थिरता करीने,
सम्यग्दर्शन–ज्ञान चारित्ररूप निर्मळ दशा प्रगट करी अने अरिहंत दशा पाम्या, तथा जगतने ते ज उपदेश करीने
सिद्धदशा पाम्या, तेम अमे पण आपनो स्वाश्रयनो उपदेश सांभळीने, ए ज रीते स्वाश्रय वडे सम्यक्–श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्र प्रगट करीने मुक्त थईशुं. ए माटे हे प्रभो! आपने नमस्कार हो.
कया जीवनुं ज्ञान अरिहंतने कबूले?
जेने विकारनी रुचि होय ते जीव विकाररहित एवा अरिहंतनो निर्णय यथार्थ करी शके नहि. अरिहंतो
परिपूर्ण ज्ञानस्वरूप छे अने विकारनो अंशमात्र तेमने नथी, आम जे ज्ञान कबूले छे ते ज्ञान विकार तरफथी
पाछुं फरीने विकार रहित स्वभाव तरफ नम्युं छे. अरिहंतोनी जेम मारा आत्मस्वभावमां भव नथी–विकार
नथी. हुं मारा ए ज स्वभावना जोरे रागादि टाळीने एकाद भवमां संसार खलास करी देवानो छुं. आम, जेणे
अरिहंत भगवाननो निर्णय कर्यो तेणे पोताना एकावतारीपणानो निर्णय कर्यो छे. अहीं आचार्यदेव कहे छे के,
अरिहंत भगवंतो आ ज विधिवडे पूर्णदशा पाम्या छे, अमे पण आ ज विधिवडे पूर्णदशा पामीए छीए, अने
तमे पण आ ज विधिने जाणवाथी पूर्णदशा पामशो. आ विधिमां कदी पण फेरफार थवानो नथी.
भगवाना सर्व उपदेशनो सार
‘आत्मा ज्ञानस्वभावी छे, ए स्वभावना आश्रये जाणनार–देखनार रहीने जाण.’ –आ जिनेन्द्रदेवना
सर्व उपदेशनो मूळ सार छे. भगवान कहे छे के अमे ज्ञानस्वभावना आश्रये केवळज्ञान पाम्या छीए, कोई
रागादिना आश्रये केवळज्ञान थयुं नथी. तुं पण तारा स्वभावना आश्रये ज्ञाता रहे तो तने केवळज्ञान थाय. जे
विधि अमारी, ते ज विधि तारी जे मार्ग अमारो ते ज मार्ग तारी. बंनेनो एक ज मार्ग छे. तुं पण आम ज
जाण अने स्वाश्रय कर, तो तुं केवळी थईश.
बधा जीवोने माटे – एक ज मार्ग
‘उपदेश पण एम ज कर्यो’ एटले भगवाने पोते जेम कर्युं तेम ज कह्युं. बधाय जीवोनो एक ज मार्ग छे.
भगवाने पोते जुदो मार्ग कर्यो अने बीजा जीवोने माटे बीजो मार्ग बताव्यो–ए वात खोटी छे. अथवा तो,
भगवाने भविष्यना मंद पुरुषार्थी जीवोने माटे जुदो मार्ग–सहेलो मार्ग–बताव्यो एम नथी. तेमज,