Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: २०२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४७४ :
कोईने ज्ञानमार्ग, कोईने क्रियामार्ग, कोईने भक्तिमार्ग, कोईने सेवामार्ग–एम जुदा जुदा प्रकारना जीवोने जुदो
जुदो मार्ग भगवाने उपदेश्यो एम पण नथी. भगवाने सर्वे जीवोने माटे एक स्वाश्रितमार्ग ज उपदेश्यो छे.
स्वाश्रय ए एक ज मोक्षमार्ग छे. पहेलांं श्रद्धामां स्वाश्रय अने पछी स्थिरतामां स्वाश्रय थाय छे. पराश्रय ते
बंधमार्ग ज छे, ने स्वाश्रय ते ज मोक्षमार्ग छे. “एक ज मार्ग छे” ए ज सम्यक् एकांत छे. एक ज मार्ग छे–ए
सिवाय बीजो कोई मार्ग नथी एनुं नाम अनेकांत छे. पण स्वाश्रयथी पण मोक्ष थाय अने पराश्रय–व्यवहारथी
पण मोक्ष थाय–एम मानवुं ते मिथ्यात्व छे–एकांत छे.
भगवान कहे छे के–जेवा भगवान अमे, तेवो ज भगवान तुं. तारे केवळज्ञानी थवा माटे जे उपाय अमे
कर्यो ते ज उपाय करवो. ज्यारे पोताना ज्ञानमां रागने तेम ज रागरहित आत्मस्वभावने जाणीने, श्रद्धामां
राग–रहित स्वभावने स्वीकार्यो त्यारे स्वभावनी प्राप्ति थई, श्रद्धामां रागरहित थई गयो, स्वाश्रयभाव प्रगट
थयो. आवडा मोटा (भगवान जेवडा) रागरहित परिपूर्ण स्वभावनो जेणे पोताना ज्ञानमां निर्णय कर्यो तेणे
एकला आत्माना आश्रयनो स्वीकार कर्यो अने समस्त परद्रव्य तेम ज परभावोना आश्रयनी मान्यता छोडी
तेने अनंत पुरुषार्थ प्रगट्यो छे, ए जीव तीर्थंकरोना पंथे चालवा मांडयो छे.
अत्यारे पण तीर्थंकरोना पंथे विचरी शकाय छे.
बधा जीवोने माटे आ उपर्युक्त एक ज मुक्तिमार्ग छे. पंचमकाळना जीवोने माटे आ ज उपाय छे. कोई
कहे के– ‘अत्यारे तो कोई तीर्थंकर भरतक्षेत्रमां विचरता नथी, तो तीर्थंकरोना पंथे क्यांथी चाली शकाय? ’ तेने
आचार्यदेव कहे छे के भाई, तीर्थंकरोए स्वाश्रयनो उपदेश कर्यो हतो; अत्यारे पण स्वाश्रय थई करे छे. तीर्थंकरो
कांई एम कहेता नहोता के ‘तुं अमारो आश्रय कर’ तीर्थंकरो तो एम कहेता हता के तुं तारा स्वभावनो निर्णय
करीने तारो ज आश्रय कर. अत्यारे पण स्वभावनो निर्णय करीने–स्वाश्रयभाव प्रगट करीने तीर्थंकरोना पंथे
विचरी शकाय छे. पंचमकाळना आचार्यदेव पंचमकाळना जीवोने ज उपदेश करे छे के हे जीव! जेवो अनंत
केवळीओनो आत्मा छे, तेवो ज तारो आत्मा छे, अनंत केवळीओए जेवो पोताना स्वभावनो निर्णय कर्यो
अने स्वाश्रय प्रगट करीने मुक्ति पाम्या तेम तुं पण तारा स्वभावनो तेवो ज निर्णय वर्तमानमां प्रगट कर
अने स्वाश्रयनो पुरुषार्थ कर. आ शास्त्र पंचमकाळना जीवोने लक्षीने ज रचायुं छे.
निश्चयनो आश्रय करो, व्यवहारनो आश्रय छोडो.
हे जीवो! तमे एक स्वभावना आश्रयने ज मोक्षनो विधि जाणो. वच्चे बीजा पराश्रित भावो आवे तेने
मोक्षना विधि तरीके न जाणो, पण बंधन तरीके जाणो. तीर्थंकरोए आ ज विधि कर्यो छे अने तेओए आ ज
विधि जगतने कह्यो छे. तमे पण आ ज विधिने अंगीकार करो. आ ज विधि करो एटले के निश्चय–स्वभावनो
आश्रय करो अने बीजो विधि न करो एटले के व्यवहारभावोनो आश्रय छोडो. देव–गुरु–शास्त्र वगेरे निमित्त
तरफनुं लक्ष वच्चे आवे तेनो आश्रय न करो, भेदना विकल्प वगेरे व्यवहार आवे तेनो आश्रय न करो. पहेलांं
चैतन्यस्वरूपना आश्रयनो निर्णय करीने सर्व व्यवहारनो निषेध करो, अने पछी ए ज स्वरूपना आश्रये संपूर्ण
शुद्धोपयोग प्रगट करीने तीर्थंकर भगवंतोनी जेम संपूर्ण ज्ञाताद्रष्टा थाओ.
श्री तीर्थंकर भगवंतोने नमस्कार
तीर्थंकरोना स्वाश्रितपंथने नमस्कार
तीर्थंकरोना पंथ दर्शावनारा संतोने नमस्कार
श्री ‘आप्त’ नुं स्वरूप
जीवनुं परम हित जे मोक्ष, तेना उपदेष्टा होय ते आप्त छे. ते आप्त बे प्रकारना छे: एक मूळ आप्त अने
बीजा उत्तर आप्त.
जेमने साल पदार्थो प्रत्यक्षभूत थया छे, तथा जेमने चार घातिया कर्मोनो नाश थयो छे ने ते कर्मोना
नाशथी जेओ अनंत चतुष्टयने पाम्या छे एवा श्री अरिहंत भगवान बार सभा मध्ये बिराजीने मोक्ष–मार्गनो
उपदेश करे छे, तेओ मूळ आप्त छे.
अने तेमना अनुसार कथन करनारा एवा, सम्यग्दर्शनादिक गुणना धारक गणधरादिक छे ते सर्वे उत्तर
आप्त छे. तेमज सम्यग्दर्शनादि धारण करनारा जिनप्रणित शास्त्रना ज्ञाता, कषाय–रहित वक्ता एवा गृहस्थ ते
सर्वे उत्तर आप्त छे. (श्री दीपचंदजी पंडित विरचित ‘भावदीपिका’ पृ. ३२)