Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७४ : आत्मधर्म : २०३ :
आत्मानो ज्ञानस्वभाव
वीर संवत २४७४ना अषाड वद १२ना दिवसे श्री समयसार उपर पू. सद्गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान
“वस्तुस्वभाव पर वडे उत्पन्न करी शकातो नहि होवाथी तेम ज वस्तुस्वभाव परने उत्पन्न करी शकतो
नहि होवाथी, आत्मा जेम बाह्यपदार्थोनी असमीपतामां पोताना स्वरूपथी ज जाणे छे तेम बाह्यपदार्थोनी
समीपतामां पण पोताना स्वरूपथी ज जाणे छे.”
(समयसार पृ. ४४२)
नजीकनी वस्तुने के दूरनी वस्तुने आत्मा पोताना स्वरूपथी ज जाणनार छे. आ नजीकना शरीरथी
लीलोतरी वगेरे कापवानी जे क्रिया थाय तेन तेम ज दूरना (बीजाना) शरीरथी जे हिंसादिनी क्रिया थाय तेने
समानपणे पोताना स्वरूपथी जाणनार छे. अने ते ज प्रमाणे नजीकना एटले पोतानी अवस्थामां थतां दया–
हिंसादि परिणामने के दूरना एटले बीजा जीवमां थता दया–हिंसादि परिणामने पण आत्मा पोताना स्वरूपथी
जाणनार छे, नजीकना रागादिने के दूरना रागादिने जाणवामां कांई फेर पडतो नथी.
आत्मा पोताना त्रिकाळी ज्ञानस्वभावना भरोसे–विश्वासे, अहीं नजीकमां (पोतामां) जे रागादि थाय
तेने के दूरमां बीजा जीवोमां रागादि थाय तेने–बंनेने, समानपणे ज जाणे छे, तेमां कांई फेर पडतो नथी. आत्मा
नजीकना के दूरना रागादिने पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशे छे. दूरना रागादिने जाणतां के नजीकना रागादिने
जाणतां कांई ज्ञानमां फेर पडतो नथी.
जेम दीवो नजीकना के दूरना पदार्थोने पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशे छे, तेम ज शुभ के अशुभ पदार्थोने
समानपणे ज प्रकाशे छे. नीचेनी आगवण के उपरनी ओळवण ए बंनेने दीवो पोताना प्रकाशथी प्रकाशे छे,
तेम ज दीवानी पासे सोनाना लाटा पड्या होय के कोलसानो भूक्को पड्यो होय–ते बंनेने दीवो पोताथी प्रकाशे
छे, सोनाने प्रकाशतां कांई दीवानो प्रकाश वधी जतो नथी, ने कोलसाने प्रकाशतां कांई घटी जतो नथी, दीवो
पोताना प्रकाशक स्वभावथी ज बधाने प्रकाशे छे, परने लीधे प्रकाशतो नथी. दीवानी नजीकमां कोई पापादि
करतो होय के दूर करतो होय पण दीवो तो बंनेनो प्रकाशक छे.
तेम आ आत्मा चैतन्य–दीवो छे, ते पोताना स्वरूपथी त्रिकाळ जाणनार छे. तेनी नजीकमां लीलोतरीनी
हिंसा थाय के दूरमां बीजाना शरीरथी लीलोतरी कापवानी क्रिया थाय तेने पोताना स्वरूपथी जाणे छे. तेमज
पोतामां राग थाय के बीजामां राग थाय ते बंनेनो पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशक छे. पर्यायमां पुरुषार्थनी
नबळाईथी राग थाय छे–ए वात अहीं गौण छे. पर्यायनी नबळाई गौण थतां ने त्रिकाळी ज्ञानस्वभावनी
अधिकता थतां ज्ञान तो दूरना के नजीकना रागादिनुं प्रकाशक ज छे. रागने जाणे छे–एम कहेवुं ते पण व्यवहार
छे. ज्ञान पोताने जाणे छे ते निश्चय छे. पोतानी अवस्थामां थता रागादिभावो ते नजीकना छे अने बीजा
जीवनी अवस्थामां थता रागादिभावो ते दूरना छे. ते बंनेने आत्मा पोताना ज्ञानथी व्यवहारे जाणे छे.
हुं एक समयमां पूर्णानंद, पूर्णब्रह्म. पूर्णज्ञान छुं–एम परिपूर्ण स्वभावनी श्रद्धामां शुभ के
अशुभभावनो आत्मा पोताना स्वभावथी जाणनार छे. जीवने बचाववाना दयादि भावो के लीलोत्तरी
कापवाना हिंसादि भावो–तेने आत्मा पोताथी जाणे छे. बंनेने जाणतां ज्ञानमां कांई फेर पडतो नथी. तेम
नजीकना शरीरनी क्रिया के दूरना शरीरनी क्रिया तेने आत्मा पोताना स्वभावथी प्रकाशी रह्यो छे. आवा नित्य
प्रकाशक स्वभावनो भरोसो थतां, नजीकना के दूरनां रागादिने जाणतां आत्मामां कांई नुकशान थतुं नथी, ने
आवा प्रकाशक स्वभावनो भरोसो टळ्‌ये आत्मामां कांई धर्म रहेतो नथी.
प्रशंसाना शब्दो के निंदाना शब्दो ईत्यादि पांचे ईन्द्रियोना शुभ के अशुभ विषयो राग–द्वेषनुं कारण
नथी, तेने जीव पोताना स्वरूपथी जाणे छे तेम लीलोतरी कापवानी के पूंजणीथी पूंजवानी जे शुभ–अशुभ क्रिया
नजीक थाय के दूर थाय तेने पोताना स्वभावथी जाणे छे. अने नजीकना के दूरना रागनो पण, नित्य ज्ञान–
ज्योत स्वभावना स्वीकारथी आत्मा जाणनार ज छे. आवा ज्ञानस्वभावनो भरोसो ते धर्म छे.
दूरमां–बीजाना शरीरने कोई कापी नांखतुं होय के नजीकमां पोताना शरीरने कोई कापी नांखतुं होय