समीपतामां पण पोताना स्वरूपथी ज जाणे छे.”
समानपणे पोताना स्वरूपथी जाणनार छे. अने ते ज प्रमाणे नजीकना एटले पोतानी अवस्थामां थतां दया–
हिंसादि परिणामने के दूरना एटले बीजा जीवमां थता दया–हिंसादि परिणामने पण आत्मा पोताना स्वरूपथी
जाणनार छे, नजीकना रागादिने के दूरना रागादिने जाणवामां कांई फेर पडतो नथी.
नजीकना के दूरना रागादिने पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशे छे. दूरना रागादिने जाणतां के नजीकना रागादिने
जाणतां कांई ज्ञानमां फेर पडतो नथी.
तेम ज दीवानी पासे सोनाना लाटा पड्या होय के कोलसानो भूक्को पड्यो होय–ते बंनेने दीवो पोताथी प्रकाशे
छे, सोनाने प्रकाशतां कांई दीवानो प्रकाश वधी जतो नथी, ने कोलसाने प्रकाशतां कांई घटी जतो नथी, दीवो
पोताना प्रकाशक स्वभावथी ज बधाने प्रकाशे छे, परने लीधे प्रकाशतो नथी. दीवानी नजीकमां कोई पापादि
करतो होय के दूर करतो होय पण दीवो तो बंनेनो प्रकाशक छे.
पोतामां राग थाय के बीजामां राग थाय ते बंनेनो पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशक छे. पर्यायमां पुरुषार्थनी
नबळाईथी राग थाय छे–ए वात अहीं गौण छे. पर्यायनी नबळाई गौण थतां ने त्रिकाळी ज्ञानस्वभावनी
अधिकता थतां ज्ञान तो दूरना के नजीकना रागादिनुं प्रकाशक ज छे. रागने जाणे छे–एम कहेवुं ते पण व्यवहार
छे. ज्ञान पोताने जाणे छे ते निश्चय छे. पोतानी अवस्थामां थता रागादिभावो ते नजीकना छे अने बीजा
जीवनी अवस्थामां थता रागादिभावो ते दूरना छे. ते बंनेने आत्मा पोताना ज्ञानथी व्यवहारे जाणे छे.
कापवाना हिंसादि भावो–तेने आत्मा पोताथी जाणे छे. बंनेने जाणतां ज्ञानमां कांई फेर पडतो नथी. तेम
नजीकना शरीरनी क्रिया के दूरना शरीरनी क्रिया तेने आत्मा पोताना स्वभावथी प्रकाशी रह्यो छे. आवा नित्य
प्रकाशक स्वभावनो भरोसो थतां, नजीकना के दूरनां रागादिने जाणतां आत्मामां कांई नुकशान थतुं नथी, ने
आवा प्रकाशक स्वभावनो भरोसो टळ्ये आत्मामां कांई धर्म रहेतो नथी.
नजीक थाय के दूर थाय तेने पोताना स्वभावथी जाणे छे. अने नजीकना के दूरना रागनो पण, नित्य ज्ञान–
ज्योत स्वभावना स्वीकारथी आत्मा जाणनार ज छे. आवा ज्ञानस्वभावनो भरोसो ते धर्म छे.