बीजाना शरीरने खाई जाय तेनो बंनेनो एक सरखा स्वभावथी मुनिनो आत्मा प्रकाशक छे. जेम बीजानुं
शरीर कपाय तेने जाणे छे तेम पोतानुं (नजीकनुं) शरीर कपाय तेने पण जाणे ज छे. चैतन्यना प्रकाशमां दूर के
नजीक जे कांई थाय तेने पोताना स्वभावथी प्रकाशे छे. निश्चयथी पोताना स्वभावथी पोताने ज प्रकाशे छे, ने
व्यवहारथी परने प्रकाशे छे.
स्वभावना आश्रये तेनो जाणनार छे. परनो जाणनार पण व्यवहारथी छे; खरेखर आत्मा जडनी–शरीरनी
क्रियानो करनार के टाळनार नथी तेम ज रागनो उत्पादक के रागनो संहारक पण खरेखर नथी अने रागनो
जाणनार पण परमार्थे नथी. पोताना ज्ञानस्वभावथी पोताना स्वभावनो ज जाणनार छे. –आ निश्चय छे.
आत्मा एक समयना पर्याय पूरतो नथी. अहीं पर्यायने गौण करीने वात छे. अज्ञानी जीव क्षणिक रागना
भरोसे त्रिकाळी जाणनार स्वरूपने भूले छे. ज्ञानी त्रिकाळी छती चीज–ज्ञानस्वभावना भरोसे, क्षणिक होवा
वाळा रागादिने अछता करी नाखीने, स्वभावना विश्वासे बधाना जाणनार छे.
बीजो लसरको लेतां कांई पुनरुक्ति जेवो दोष लागतो नथी, तेम आत्मस्वभावनी वारंवार भावना करतां कांई
दोष लागतो नथी. ठेठ केवळज्ञान थतां सुधी स्वभावनी भावना होय, वच्चे विसामा न होय–अटकवानुं न
होय. माटे आ ज्ञानस्वभावनी वात फरी फरी कहेवाय छे तेमां पुनरुक्ति दोष नथी.
छे. सोना तरफ दीवानो प्रकाश वधारे पडे अने कोलसा तरफ ओछो पडे–तेम नथी. पदार्थो शुभ हो के अशुभ हो
अने नजीक हो के दूर हो, पण दीवो बधाने समानपणे पोताना स्वरूपथी ज प्रकाशे छे तेम आ भगवान आत्मा
चैतन्य ज्योत छे. दरेक आत्मा चैतन्य ज्योत छे, ते पोताना स्वरूपथी प्रकाशे छे. पर पदार्थोने कारणे आत्मा
जाणतो नथी. पोते पोताना स्वरूपने जाणतां पर पदार्थो पण जणाय छे–एवो स्व–पर प्रकाशक पोतानो
स्वभाव ज छे. समीपमां हिंसादि भावो थता हो के दयादि भावो थता हो ते बंनेनो पोताना चैतन्यना आश्रये
आत्मा जाणनार ज छे. जेम परजीवना रागादिने जाणे छे, तेम पोतानी अवस्थामां थता रागादि पण खरेखर
पर वस्तु छे, तेने पण परनी जेम जाणनार ज छे. रागादिने जाणतां पोताना स्वभावनो आश्रय छोडीने
जाणतो नथी पण स्वभावनो आश्रय राखीने जाणे छे. जेम बीजानुं शरीर पर पदार्थ छे तेम आ नजीकनुं शरीर
पण पर पदार्थ छे. बीजाना शरीरना कटका थता होय के पोताना शरीरना कटका थता होय ते बंनेने आत्मा
पोताना चैतन्य प्रकाशथी प्रकाशे छे. आमां एकली वीतरागी द्रष्टि छे. ज्ञानीने रागद्वेष थाय ए वात ज नथी,
केम के त्रिकाळी चैतन्य स्वभावना आश्रयमां रहीने, नजीकना के दूरना राग–द्वेषने ते पोताना स्वरूपथी ज
प्रकाशे छे. नजीकना रागादिने जाणतां कांई चैतन्य प्रकाशमां फेरफार थतो नथी. रागादिने जाणतां चैतन्य
प्रकाशमां फेरफार मानवो ते अज्ञान छे. तेनुं फळ संसार छे.
कहेवाय छे. ते बधायने ज्ञान पोताना स्वरूपथी जाणे छे, परने जाणतां पोताना स्वभावनो आश्रय छोडतुं
नथी. आवा ज्ञानप्रकाश स्वभावनी श्रद्धा होय ते जीवने मध, मांस, दारूनो खोराक होय नहि. लीलोतरी
कापवाना परिणाम होई शके. लीलोतरी कापवाना परिणामने के दया पाळवाना