तपस्यंतोन्यस्मिन्नपि यमिनि शास्त्रादि ददतो सहायाः स्युर्ये ते जगति यमिनो दुर्लभतरा।।
पोताना हितने माटे तप करी रह्या छे तेम ज बीजा तपस्वी मुनिओने शास्त्रादिक दान करे छे अने तेमना
सहायी छे एवा योगीश्वरो आ जगतमां अत्यंत दुर्लभ छे.
जशे” –एवा ईर्षाभावनो विकल्प पण मुनिने होतो नथी. बीजा कोई पोताथी आगळ वधीने पोतानी पहेलांं
केवळज्ञान पामी जता होय तो तेमां अनुमोदना छे. एवी रीते सम्यग्द्रष्टि गृहस्थोने पण ज्ञान–चारित्रादि
गुणोमां जे पोताथी अधिक होय तेमनी प्रत्ये अनुमोदना अने बहुमान होय छे. विकल्प वखते, अधिक गुणवान
प्रत्ये जो अनुमोदना न होय तो तेवा जीवने गुणनी रुचि नथी. मुनिओ अंतरमां जरापण गोपव्या वगर
सरळपणे पात्र जीवने सर्व रहस्यनो उपदेश करे छे. उपदेशना विकल्पने पण पोतानो मानता नथी. शरीरनुं
अने विकल्पनुं ममत्व जेमने नथी अने आहार तथा उपदेशादिना विकल्पने तोडीने वीतराग स्वभावमां स्थित
छे तेवा उत्तम आकिंचन्यधर्ममां रत मुनिओ आ जगतमां धन्य छे. तेमने चारित्रदशा तो छे, केवळज्ञान लेवानी
ऊठे छे तेने छोडीने स्वभावमां एकदम संपूर्ण स्थिरता वडे केवळज्ञान प्रगट करवाना कामी छे–एवा मुनिओ
दुर्लभ छे. मुनिओ उपदेशादि देवामां कोई ऊंची वातने के महिमावंत न्यायने छूपावता नथी; ज्ञानदान
आपवाथी ते कांई खूटे तेम नथी, पण ऊलटी पोताने ज्ञानस्वभावनी भावना घूंटाता ज्ञान एकदम खीलतुं
जाय छे. लौकिकमां पण जेने पोताना पुण्यनो विश्वास होय छे ते जीव दानमां लक्ष्मी वगेरे खरचवामां सहजपणे
उदार होय छे, दानमां वधारे लक्ष्मी खरचवाथी मारी लक्ष्मी खूटी जशे–एवी तेने शंका पडती नथी, तेम लोकोत्तर
मुनिवरोने पोताना पुरुषार्थनी प्रतीति छे के मारा ज्ञाननो विकास अटकवानो नथी, मारा स्वभावना आश्रये
मारा ज्ञाननी वृद्धि ज छे; ते मुनिओ बीजाने शास्त्रज्ञान देतां जराय अचकाता नथी. पोताने उपदेशनी वृत्तिमां
अटकवानी भावना नथी, पण वृत्ति तोडीने स्वभावमां ज एकाग्र रहीने पूर्ण ज्ञाननी भावना छे–आवा
रहित वीतरागभाव ते उत्तम आकिंचन्य धर्म छे. भेदज्ञान वडे परथी जुदा स्वभावने जाण्या वगर पर उपरनी
ममता टळे नहि ने धर्म थाय नहि.
ममत्वाभावे तत्सदपि न सदन्यत्र घटते जिनेन्द्राज्ञा भंगो भवति च हठात् कल्मषवृषेः।।
त्याग केम न कर्यो? तेनो उत्तर–ते पण त्याग समान ज छे. शरीरादिमां ममतानो अभाव होवाथी ते नहि होवा
समान ज छे. आयुकर्मना नाश वगर शरीर छूटे नहि. पण शरीर उपरनुं ममत्व छूटी शके छे. अरिहंतोने पण
बहारमां शरीर तो विद्यमान छे पण तेमने ममत्वनो तद्न अभाव छे तेथी तेमने शरीरनो पण परिग्रह नथी.