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छ सामान्य गुणो
आत्मधर्मना बालविभागमां छ सामान्य
गुणोनुं सुंदर वर्णन आवी गयुं छे; तेना साररूपे आ
छ सामान्य गुणोनुं काव्य आपवामां आवे छे.
तत्त्वप्रेमी बाळकोने आ काव्य मोढे करवुं सहेलुं पडशे.
[हरिगीत जेवो राग]
[१] मिथ्यामति जे मानता ‘करनार ईश्वर एक छे,’
कर्ता–न हर्ता ईश को, अस्तित्वगुण प्रसिद्ध छे.
जन्मे–मरे नहि कोई वस्तु, धु्रव स्वाधीनता धरे,
स्वातंत्र्यने पामो सदा, अस्तित्वनी श्रद्धा वडे.
[२] वस्तुत्वगुणना कारणे सौ अर्थ क्रियाने करे,
स्वाधीन गुण–पर्यायनुं निज द्रव्यमां वसवुं रहे;
जगमां नथी को द्रव्य निष्क्रिय, सौ करे निज कामने,
निज आत्ममां जागृत करो, सुखरूप सम्यक् ज्ञानने.
[३] द्रव्यत्वगुणना कारणे हालत सदा पलटाय छे,
कर्ता न कोई कोईनो, सौ टकीने बदलाय छे.
एम जाणी–मानीने लहो स्वाधीन सुख निज कारणे,
हणी राग–द्वेष बनो सुखी, द्रव्यत्वनी श्रद्धा वडे.
[४] प्रमेयत्वगुणना कारणे सौ ज्ञानना विषयो बने,
बधुं जाणतो गुण ज्ञान ते नहि कोईथी रोकाय छे.
आत्मा अरूपी ज्ञेय मारो, ज्ञान जाणे तेहने;
छे स्व–पर ज्ञेयो सौ प्रगट, ज्ञायक! तुं जागी जोई ले.
[प] अगुरुलघुना कारणे द्रव्यो सदा निजरूप रहे,
को द्रव्य बीजामां न बदले; –स्वतंत्रता साबित करे.
को गुण बीजा गुणमां न भळे, न वीखरी जाय छे,
कर्ता–न हर्ता कोई तेनो, जे व्यवस्थित नित्य छे.
[६] प्रदेशत्वगुणना कारणे आकार वस्तु मात्रने,
निज क्षेत्रमां व्यापकपणे स्वाधीनता राखी रहे.
आकारथी डा’पण नथी, निज ज्ञान महिमामां रहो,
सामान्य गुण जाण्या हवे विशेषनी सिद्धि करो.
श्रावण मासना प्रश्नोना जवाब
बालविभाग
(१) पोताना आत्मानी साची ओळखाण करवाथी
धर्म थाय छे. पोताना आत्माने ओळख्या
सिवाय कोई रीते धर्म थतो नथी.
(२) अ. ज्ञानगुण जीवमां ज छे ने अजीवमां नथी,
केमके ज्ञानगुण जीव द्रव्यनो विशेषगुण छे.
ब. स्पर्श, रस, गंध अने वर्ण एटले के रूपीपणुं
अजीव–पुद्गलमां ज छे, जीवमां नथी. केमके ते
पुद्गलनो विशेषगुण छे.
क. अस्तित्व वगेरे गुणो जीवमां पण छे ने
अजीवमां पण छे, केमके ते सामान्य गुणो छे.
(३) भूल सुधारवानुं हतुं ते नीचे मुजब–
अ. ज्यारे शरीरमां जीव रहेलो होय त्यारे पण
शरीर कांई जाणतुं नथी पण जीव ज जाणे छे.
शरीर तो जड छे, तेनामां जाणवानो गुण नथी.
जीवमां ज्ञानगुण छे तेथी जीव ज जाणे छे. अने
खरेखर जीव शरीरमां रह्यो नथी पण पोताना
गुणोमां ज रह्यो छे.
ब. आत्मा कदी जड थतो नथी पण सदाय
आत्मा ज रहे छे अने जड वस्तु कदी आत्मा
थती नथी पण सदाय जडरूपे ज रहे छे–एटली
वात साची छे; परंतु, एनुं कारण द्रव्यत्वगुण
नथी पण अगुरुलघुत्वगुण छे. अगुरु–
लघुत्वगुणने लीधे जीव सदा जीवरूपे रहे छे ने
अजीव सदाय अजीवरूपे रहे छे.
शब्दोना अर्थ
(१) परमार्थ=आत्मानो त्रिकाळी स्वभाव.
(२) देहाध्यास=शरीर अने आत्मा एक छे एवी
मिथ्या मान्यता अर्थात् शरीरादिनुं हुं करी शकुं एवो
खोटो अभिप्राय.
(३) असंग=शरीर, कर्म अने विकार रहित.
(४) स्फुरणा=परपदार्थ तरफ वलण.
(प) सुधर्म=सम्यक् दर्शन–ज्ञान–चारित्र.
(६) समदर्शिता=परद्रव्य मने कदी लाभ के नुकशान
करी शके नहि एवी समता.
(७) आत्मार्थी=मारा आत्मानुं केम भलुं थाय एवी
जेने अंतरमां खटक होय, आत्मानो खपी जीव.