विद्यार्थीना उत्तरो
श्री सनातन जैन शिक्षण वर्गना छठ्ठा वर्षना बीजी
श्रेणीना विद्यार्थीओनी परीक्षा ता. २६–५–४८ना
लेवामां आवेली. तेमने पूछाएला प्रश्नो तथा तेमणे
आपेला उत्तरो अहीं आपवामां आव्या छे.
प्रश्न– घडो, वस्त्र वगेरे जणाय छे पण आत्मा
क्यांय जणातो नथी माटे आत्मा छे ज नहि–एवी
शंकानुं समाधान तमे शुं आपशो?
उत्तर–हे भाई! घडो, वस्त्र वगेरे तुं जाणे छे
तेथी तेने माने छे परंतु घडो, वस्त्र वगेरेने जाणनार
जे आत्मा छे तेने केम मानतो नथी? आ घडो, वस्त्र
वगेरेने जे जाणे छे ते ज आत्मा छे, एम तुं नक्की कर.
प्रश्न–पुण्य अने पापना फळनुं द्रष्टांत आपी
जीवनुं भोक्तापणुं साबित करो.
उत्तर–जगतमां आपणे जोईए छीए के कोई
जीव रंक छे, कोई राजा छे, कोई रोगी छे, कोई निरोगी
छे, कोई कुरूप छे, कोई सुरूप छे. आवी बधी जे
विचित्रता वर्ते छे तेनो विचार करतां जणाय छे के आ
बधां अनुकूळ–प्रतिकूळ फळ मळे छे तेनुं कारण ते
जीवोए पूर्वे करेलां पुण्य अने पाप छे. आथी सिद्ध
थाय छे के जीव जे कंई पुण्य के पापना भावो करे छे ते
प्रमाणे तेने अनुकूळ के प्रतिकूळ संयोगनी अवश्य
प्राप्ति थाय छे.
प्रश्न– बधी वस्तुओ क्षणे क्षणे पलटाय छे माटे
आत्मा नित्य नथी–एवी शिष्यनी शंकाना समाधान
माटे गुरुए जे श्लोक कह्यो होय ते लखो.
उत्तर–आत्मा द्रव्ये नित्य छे, पर्याये पलटाय;
बाळादि वय त्रण्यनुं. ज्ञान एकने थाय.
प्रश्न– मतार्थी जीव गुरु संबंधीनी पोतानी
मान्यतामां केवी भूल करे छे ते बतावो.
उत्तर–जेमने फक्त बहारनो त्याग होय परंतु
आत्माना साचा स्वरूपनुं कांई ज्ञान न होय तेने
मतार्थी जीव गुरु माने छे अथवा तो पोताना वडीलो
जे व्यक्तिने गुरु मानीने पूजता होय छे तेने कांई पण
गुणदोषनी परीक्षा वगर ज गुरु माने छे अथवा तो
पोताना धर्मनी मानेली क्रिया अने वेश धारण कर्या
होय तेने ज गुरु माने छे. आ प्रमाणे कांई सत्य–
असत्यनी परीक्षा विना ज मतार्थी जीव, अज्ञानी के
बाह्य त्यागीओने गुरु मानीने पोताना मिथ्यात्वनी
पुष्टि करतो थको अनंत संसार सागरमां डूबी मरे छे.
प्रश्न– देह ते ज आत्मा छे–एम मानीए तो शुं
विरोध ऊभो थाय छे?
उत्तर–देहने ज जो आत्मा मानवामां आवे तो
जाडा शरीरवाळाने घणी बुद्धि होय तथा पातळा
शरीरवाळाने थोडी बुद्धि होय; परंतु जगतमां आवुं
कांई नियमपूर्वक जोवामां आवतुं नथी. तेथी सिद्ध थाय
छे के देह अने आत्मा त्रिकाळ जुदा छे.
प्रश्न–सम्यक्त्व, श्रुतज्ञान, केवळदर्शन,
अधर्मास्तिकाय, अन्योन्याभाव, सामान्य
अगुरुलघुत्वगुणनी व्याख्या लखो.
उत्तर–जे गुणना प्रगट थवाथी पोताना
शुद्धात्मानो प्रतिभास थाय, तेने सम्यक्त्व गुण कहे छे.
मतिज्ञानथी जाणेला पदार्थना संबंधने लईने
थयेला कोई बीजा पदार्थना ज्ञानने श्रुतज्ञान कहे छे. जेमके–
‘आकाश’ शब्द सांभळ्या पछी जेनो विस्तार अनंत अनंत
छे अने जेमां जीवादि द्रव्यो रहे छे तेवा आकाशनुं ज्ञान थवुं.
केवळज्ञाननी साथे थनार सामान्य
अवलोकनने केवळदर्शन कहे छे.
गतिपूर्वक स्थितिरूप परिणामने प्राप्त थयेला
जीव अने पुद्गलने जे स्थितिमां सहायकारी होय, तेने
अधर्मास्तिकाय कहे छे. जेमके–पथिकने वृक्षनी छाया.
पुद्गलद्रव्यना एक वर्तमान पर्यायमां बीजा
पुद्गल–द्रव्यना वर्तमान पर्यायना अभावने
अन्योन्याभाव कहे छे.
जे शक्तिना निमित्तथी द्रव्यनी द्रव्यता कायम रहे
अर्थात् एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूप न परिणमे, अथवा एक
गुण बीजा गुणरूप न परिणमे तथा एक द्रव्यना अनेक
अथवा अनंत गुणो विखराईने जुदा जुदा न थई जाय,
तेने सामान्य अगुरुलघुत्वगुण कहे छे.
प्रश्न–शरीरो केटला प्रकारनां छे? तेमनां नाम
लखो अने क्या जीवने वधारेमां वधारे केटलां शरीर
होय अने ते क्या क्या ते लखो.
उत्तर–शरीरो पांच प्रकारनां छे–(१) औदारिक,
(२) वैक्रयिक, (३) आहारक, (४) तैजस, (५) कार्माण.
कोई छठ्ठा गुणस्थानवर्ती मुनिने तत्त्वमां शंका
पडतां केवली के श्रुतकेवली पासे समाधान करवा
जवाने जे एक हाथनुं पूतळुं नीकळे छे त्यारे ते मुनिने
वधारेमां वधारे चार शरीर होय छे. ते आ प्रमाणे:
औदारिक आहारक, तैजस अने कार्माण.
मुद्रक:–चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, सौराष्ट्र
प्रकाशक:–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया ता. १–९–४८