Atmadharma magazine - Ank 060
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: २१२ : आत्मधर्म : ६०
वस्तुना परिणाम परवस्तुना आश्रये थता नथी, पण वस्तु पोते परिणाम स्वभाव वाळी छे; परिणामी
पदार्थ ज परिणामरूपे परिणमी जाय छे एटले खरेखर तो पारिणामिकभाव ज परिणमे छे, दरेक समयना
परिणाम पारिणामिकभावे ज थाय छे. स्वभावनो आश्रय करीने परिणमनार साधक आत्मा प्रति समय वधता
वधता निर्मळ परिणामे ऊपजे छे एटले के स्वभावना आश्रये जेम जेम पर्याय परिणमे छे तेम तेम पवित्रता
वधती जाय छे.
वस्तु परिणमन स्वभाव वाळी छे, समये समये परिणमवुं–बदलवुं ते दरेक वस्तुनो स्वभाव छे;
परिणाम ते उपाधि नथी पण वस्तुनुं स्वरूप छे. परिणमन वगरनी कोई वस्तु होती नथी. आत्मा पण
परिणामस्वभावी छे तेथी समये समये जुना परिणामनो नाश करीने नवा परिणामरूपे पोते ऊपजे छे. जो
नानामां नानाकाळमां वस्तु एक परिणाम छोडीने बीजा परिणामरूपे न परिणमती होय तो कदी संसारदशा
टळीने मोक्षदशारूपे आत्मा परिणमी शके नहि. आचार्यभगवान कहे छे के आखी वस्तु पोते ज परिणामरूपे
ऊपजे छे. जे जीव पोतानुं कल्याण करवा मागे छे ते लांबा काळे कल्याण थाय एवुं नथी ईच्छतो, पण नानामां
नाना काळे ते पोतानुं कल्याण करवा मागे छे. नानामां नाना काळमां दरेक वस्तु पोतानी एक हालत छोडीने
बीजी हालतरूपे ऊपजे छे; तेथी एक ज समयमां जीव पोतानुं अकल्याण टाळीने कल्याण करी शके छे. मोक्षदशा
प्रगट करवा माटे अनंतकाळसुधी पुरुषार्थ करवो पडतो नथी, पण स्वभावनो आश्रय करीने परिणमतां
अल्पकाळमां ज मोक्षदशा प्रगटे छे. स्वभावनो आश्रय करवा छतांय जो अनंतकाळ सुधी संसारमां रखडवुं पडतुं
होय तो स्वभावनो कांई महिमा रहेतो नथी. अने मोक्ष माटे जो अनंतकाळ सुधी साधन करवुं पडतुं होय तो
एवा मोक्षनी किंमत रहेती नथी, अने एवा मोक्षने कोई साधी शके नहि. अहो! एकेक समयमां आखो आत्मा
ज नवो ऊपजे छे, एम कहीने एकेक समयना परिणाममां त्रिकाळी वस्तु अभेद बतावे छे. जो त्रिकाळी वस्तुनो
आश्रय करीने जीव ऊपजे तो अल्पकाळे ते मोक्षरूपे परिणमी जाय.
वस्तु पोते पोताना परिणाम स्वभाववाळी होवाथी परिणामरूप छे. वस्तु समस्त प्रकारे–द्रव्यथी,
क्षेत्रथी, काळथी ने भावथी पोताना परिणाममां नमे छे–वळे छे–परिणमे छे. पोताना परिणामथी वस्तु जुदी
रहेती नथी. शुद्धोपयोगरूप परिणामे एक समयमां आत्मा परिणमी जाय छे; शुद्धोपयोगरूपे परिणमेलो आत्मा
ज शुद्धोपयोग छे. अहीं आचार्य भगवान पर्याय अने वस्तुने अभेदरूपे समजावे छे के धर्मरूपे आत्मा ज
ऊपजे छे अर्थात् आत्मा पोते ज धर्म छे. धर्म परिणाम अने आत्मा जुदा नथी.
अहीं केवळी भगवानना अभावमां आचार्यभगवंतोए केवळीनां काम करी दीधां छे. समय समयना
परिणामरूपे तारुं द्रव्य परिणमे छे एटले के दरेक समयना परिणाम स्वतंत्र छे. तारा परिणाम तुं करे तेवा थशे.
स्वद्रव्यनो आश्रय करीने जो शुद्ध उपयोगरूपे परिणमे तो केवळज्ञान थाय छे. दरेक समयमां वस्तु पोताना पूर्व
परिणामथी अभावरूप थाय छे, नवा परिणामरूपे ऊपजे छे अने द्रव्यपणे दरेक परिणाममां धु्रव रहे छे. आम
परिणामने अने परिणामी वस्तुने ओळखीने, जो स्वभावना आश्रये परिणमे तो संसारनो अंत आवी जाय
छे, सिद्धदशा ऊपजे छे अने आत्मद्रव्य धु्रव रहे छे.
जीवने पहेला समये ‘पुण्य–पाप ते ज हुं’ एवी मान्यतारूप मिथ्यात्वदशा हती अने बीजा समये
‘चैतन्यस्वभाव ज हुं छुं, चैतन्यस्वभावमां पुण्य–पाप नथी’ एवी मान्यतारूप सम्यकत्वदशा थई, त्यां एक ज
समयमां स्वभाव–आश्रित जीव पोते ते दशारूपे ऊपज्यो छे. जो एकेक समयमां जूना पर्यांयरूपे व्यय थईने
नवा परिणामरूपे वस्तु न ऊपजती होय तो कदी मिथ्यात्व टळीने सम्यकत्त्व थई शके नहि, राग टळीने
वीतरागी–चारित्रदशा उपजी शके नहि–टकी शके नहि ने वधी शके नहि. तेम ज संसारदशा बदलीने मोक्षदशा
पण थाय नहि. ए रीते, जो वस्तु परिणमती न होय तो जीवमां मिथ्यात्व, राग ने संसार ज सदा एम ने एम
रह्या करे. तथा पुद्गलमां पण कर्मरूप अवस्था ज सदा एम ने एम रह्या करे. अर्थात् विकारना निमित्तरूप कर्मो
सदा एम ने एम रह्या करे एटले उपादानमां विकार पण सदा एवो ने एवो ज रह्या करे, ने जीवने कदी
अविकारी धर्म थाय नहि. आथी एम समजवुं के, जेओ वस्तुनुं परिणमन ज नथी मानता– अगर तो परना
कारणे वस्तुना परिणाम माने छे–तेओ कदी पोताना विकार परिणामने बदलावीने अविकारी धर्मदशा प्रगट करी
शकता नथी, तेमना परिणाममां सदा अधर्म अने संसार रहे छे.