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स्वभावद्रष्टिथी स्वभावनो आनंद प्रगट्या वगर रहे नहि. स्वभावद्रष्टि छोडीने मिथ्यात्वथी स्त्री आदिमां सुख
मान्युं त्यारे स्त्रीने संसारनुं कारण कहेवायुं. स्त्री आदि निमित्तना आश्रये राग करीने एम माने के ‘आमां शुं
वांधो छे?’ अथवा तो ‘आमां सुख छे’–एम माननार जीव स्वभावनो आश्रय चूकीने संसार–मां रखडे छे.
आत्मानो शुद्ध उपादान स्वभाव तो परम आनंदनुं कारण छे; पण तेने भूलीने निमित्तनो आश्रय कर्यो तेथी ते
निमित्तने ज संसारनुं कारण कह्युं छे. ए क्षणिक संसारभाव जीवना स्वभावना आधारे थता नथी–पण
निमित्त–ना आधारे थाय छे एम बताववा माटे स्त्रीने संसारनो आधार कह्यो छे. जेम नानी खीलीना आधारे
चाक घूमे छे तेम पोतानी परिणतिमां ऊंडे ऊंडे पराश्रयमां सुख माने छे, ते मान्यतारूपी धरी उपर जीव अनंत
प्रकारना संसारमां भमे छे, जीवना संसारचक्रनी धरी मिथ्यात्व छे.
निमित्तनो–पुण्य–नो–व्यवहारनो आश्रय मान्यो ते ज मैथुन छे; पुण्य–पाप भावोनी रुचि ते ज महान भोग
छे. तेने बहारमां संयोग कदाच न देखाय पण अंतरमां तो क्षणे क्षणे विकारनो ज भगवटो करे छे.
शास्त्रोमां तेनी वात मुख्यपणे होती नथी, पण गौणपणे तेनी भूमिका मुजब समजवुं. स्त्रीने माटे पुरुषना
संगनी रुचि ते संसारनुं कारण छे.
वाड तोडवामां शुं वांधो छे? स्त्री आदिना परिचयमां शुं वांधो छे’–आवा कुतर्कथी जो रुचिपूर्वक ब्रह्मचर्यनी वाड
तोडे तो ते जीव जिन–आज्ञानो भंग करनार मिथ्याद्रष्टि छे. ‘परद्रव्य नुकशान करतुं नथी माटे ब्रह्मचर्यनी
वाडनो भंग करवामां बाध शुं छे?’ एटले के स्वद्रव्यनुं अवलंबन छोडीने परद्रव्यने अनुसरवामां बाध शुं
छे?–आवी बुद्धिवाळो जीव मिथ्याद्रष्टि छे. हे स्वच्छंदी! परद्रव्य नुकशान करतुं नथी–ए वात तो एम ज छे
परंतु ए जाणवानुं प्रयोजन तो परद्रव्यथी पराङमुख थईने स्वभावमां वळवानुं हतुं के परद्रव्योने स्वच्छंदपणे
अनुसरवानुं हतुं? जेम परद्रव्य नुकशान करतुं नथी तेम परद्रव्यथी तने लाभ पण थतो नथी–आम
समजनारने परना संगनी भावना ज केम होय? परथी नुकशान नथी माटे परनो संग करवामां बाध नथी–
आवी जेनी भावना छे ते स्वच्छंदी मिथ्याद्रष्टि छे, ते तत्त्वने समज्यो नथी. जे तत्त्वज्ञान वीतरागताने पोषे छे
ते तत्त्वज्ञाननी ओथे स्वच्छंदी जीव पोताना रागने पोषे छे, तेने कदी तत्त्वज्ञान साचुं परिणमतुं नथी. ‘अहो!
मारा आत्माने परथी कांई लाभ के नुकशान नथी’ एम समजतां तो परनी भावना छूटीने स्वभावनी भावना
थाय. तेने बदले, जेने स्वभावनी भावना न थई ने परना संगनी रुचि थई–ते मिथ्याद्रष्टि छे, वीतराग
मार्गथी भ्रष्ट छे, तेणे विकारने विघ्नकारक मान्यो नथी. पहेलांं तो स्त्री आदिना संगथी पाप मानीने तेनाथी
भयभीत रहेतो, अने हवे तो परथी नुकशान नथी एम मानीने ऊलटो निःशंकपणे रागना प्रसंगमां जोडाईने
स्वच्छंदने पोषे छे, तेवा जीवने विकार अने स्वभावनुं भेदज्ञान करवानो महिमा नथी. तेनामां सत् समजवानी
के सांभळवानी पण पात्रता नथी.
भाव आवे–एम बने नहि. कोई जीव ब्रह्मचर्यनी वाड तोडीने स्त्रीनो संग–परिचय करे, तेनी साथे एकांतवास