
लोयाण पणहवसदो ववहारपवत्तणट्ठं च।।
सुदणणेण णयेहिं य सो सद्दिट्ठी हवेसुद्धो।।
लोकानां प्रश्नवशतः व्यवहारप्रवर्त्तनार्थं च ।।
श्रुतज्ञानेन नयैः च सः सद्रष्टिः भवेत् शुद्धः।।
करे छे तेमज जीव–अजीवादि नवप्रकारना पदार्थोने पण श्रुतज्ञान प्रमाण वडे तथा तेना (प्रमाणना) भेदरूप
नयोवडे पोताना आदर–यत्न–उद्यमथी माने छे–श्रद्धान करे छे ते जीव शुद्ध सम्यग्द्रष्टि छे.
पौरुषसाध्यत्व, हेतुसाध्यत्व, आगमसाध्यत्व, अंतरगत्व, बहिरंगत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व ईत्यादि धर्मो तो
सामान्य छे; अने जीवत्व, अजीवत्व, स्पर्शत्व–रसत्व–गंधत्व,–वर्णत्व, शब्दत्व, शुद्धत्व, अशुद्धत्व, मूर्तत्व,
अमूर्तत्व, संसारीत्व, सिद्धत्व, अवगाहहेतुत्व, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, वर्तना हेतुत्व ईत्यादि विशेषधर्मो छे.
वस्तु समजवाने माटे प्रश्नवशथी ते धर्मोना संबंधमां विधि–निषेधरूप वचनना सात भंग थाय छे. ते सात
भंगोमां ‘स्यात्’ एवुं पद लगाडवुं. ‘कथंचित्’–‘कोई प्रकारे’ एवा अर्थमां ‘स्यात्’ शब्द छे; तेना वडे वस्तुने
वळी वस्तु स्यात् अस्तित्व–नास्तित्वरूप छे–एम वस्तुमां अस्ति–नास्ति बंने धर्मो रहेला छे ते वचनवडे क्रमथी
तोपण वचन वडे बंने धर्मो एक साथे कही शकाता नथी तेथी कोई प्रकारे वस्तु अवक्तव्य छे–४. अस्तित्वपणे
वस्तु–स्वरूप कही शकाय छे, पण अस्ति–नास्ति बंने धर्मो वस्तुमां एक साथे रहेला छे तेथी वस्तु कही शकाती
नथी, आ रीते वस्तु वक्तव्य पण छे अने अवक्तव्य पण छे तेथी अस्तित्व–अवक्तव्य छे–प. ए ज प्रमाणे वस्तुने
स्यात् नास्तित्व– अवक्तव्य कहेवी–६. वळी बंने धर्मो क्रमे कही शकाय पण एक साथे कही शकाय नहि तेथी वस्तुने
स्यात् अस्तित्व–नास्तित्व–अवक्तव्य कहेवी– ७. ए रीते सात ज भंग कोई प्रकारथी संभवे छे.
लगाडवा. जेम के–जीव नामनी वस्तु छे ते स्यात् जीवत्व छे, स्यात् अजीवत्व छे ईत्यादि प्रकारे सात भंग
अजीवनो अजीवत्वधर्म जीवमां नथी तोपण जीवना बीजा (ज्ञान सिवायना) धर्मोने मुख्य करीने कहीए त्यारे
ते धर्मोनी अपेक्षाए अजीवत्व छे; ईत्यादि सात भंग लगाडवा. तथा अनंत जीवो छे तेनी अपेक्षाए एटले के
पोतानुं जीवत्व पोतामां छे अने परनुं जीवत्व पोतामां नथी तेथी पर जीवोनी