Atmadharma magazine - Ank 061
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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[श्री स्वामीकार्ति केयानुप्रेक्षा पृ. १८ थी १२० नो अनुवाद]
हवे, सात प्रकृतिओना उपशम, क्षयोपशम के क्षयथी उपजेलुं सम्यक्त्व जेना द्वारा जाणी शकाय एवा
तत्त्वार्थ–श्रद्धाननुं स्वरूप कहे छे अर्थात् सम्यग्द्रष्टिने केवुं तत्त्वार्थ–श्रद्धान होय छे ते कहे छे–
जो तच्चमणेयंतं णियमा सद्दहदि सत्त मंगेहिं।
लोयाण पणहवसदो ववहारपवत्तणट्ठं च।।
३११।।
जो श्रायरेण मणणदि जीवाजीवादि णवविहं श्रत्थं।
सुदणणेण णयेहिं य सो सद्दिट्ठी हवेसुद्धो।।
३१२।।
यः तत्त्वं अनेकान्तं नियमात् श्रद्दधाति सप्तभ।
लोकानां प्रश्नवशतः व्यवहारप्रवर्त्तनार्थं च ।।
३११।।
यः आदरेण मन्यते जीवाजीवादि नवविधं अर्थं।
श्रुतज्ञानेन नयैः च सः सद्रष्टिः भवेत् शुद्धः।।
३१२।।
अर्थ:– लोकोना प्रश्नना विशे विधि–निषेधथी वचनना सात ज भंग थाय छे तेथी व्यवहारना प्रवर्तन
अर्थे पण सात भंगरूप वचननी प्रवृत्ति होय छे. जे पुरुष सात भंगो वडे अनेकान्त तत्त्वनुं नियमथी श्रद्धान
करे छे तेमज जीव–अजीवादि नवप्रकारना पदार्थोने पण श्रुतज्ञान प्रमाण वडे तथा तेना (प्रमाणना) भेदरूप
नयोवडे पोताना आदर–यत्न–उद्यमथी माने छे–श्रद्धान करे छे ते जीव शुद्ध सम्यग्द्रष्टि छे.
भावार्थ
वस्तुनुं स्वरूप अनेकान्त छे. जेमां अनेक अंत एटले के धर्म होय ते अनेकान्त कहेवाय छे. ते धर्मोमां
अस्तित्व, नास्तित्व, एकत्व, अनेकत्व, नित्यत्व, अनित्यत्व, भेदत्व, अभेदत्व, अपेक्षात्व, दैवसाध्यत्व,
पौरुषसाध्यत्व, हेतुसाध्यत्व, आगमसाध्यत्व, अंतरगत्व, बहिरंगत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व ईत्यादि धर्मो तो
सामान्य छे; अने जीवत्व, अजीवत्व, स्पर्शत्व–रसत्व–गंधत्व,–वर्णत्व, शब्दत्व, शुद्धत्व, अशुद्धत्व, मूर्तत्व,
अमूर्तत्व, संसारीत्व, सिद्धत्व, अवगाहहेतुत्व, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, वर्तना हेतुत्व ईत्यादि विशेषधर्मो छे.
वस्तु समजवाने माटे प्रश्नवशथी ते धर्मोना संबंधमां विधि–निषेधरूप वचनना सात भंग थाय छे. ते सात
भंगोमां ‘स्यात्’ एवुं पद लगाडवुं. ‘कथंचित्’–‘कोई प्रकारे’ एवा अर्थमां ‘स्यात्’ शब्द छे; तेना वडे वस्तुने
अनेकान्त स्वरूपे साधवी.
सप्तभंगी अने अनेकान्त
(१) वस्तु स्यात् अस्तित्वरूप छे एम कोई प्रकारे–पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव पणे अस्तित्वरूप
कहेवाय छे–१. वस्तु स्यात् नास्तित्वरूप छे–एम परवस्तुना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावपणे नास्तित्वरूप कहेवाय छे–२.
वळी वस्तु स्यात् अस्तित्व–नास्तित्वरूप छे–एम वस्तुमां अस्ति–नास्ति बंने धर्मो रहेला छे ते वचनवडे क्रमथी
कही शकाय छे–३. वळी वस्तु स्यात् अवक्तव्य छे; जो के वस्तुमां अस्ति, नास्ति बन्ने धर्मो एक ज वखते रहेला छे
तोपण वचन वडे बंने धर्मो एक साथे कही शकाता नथी तेथी कोई प्रकारे वस्तु अवक्तव्य छे–४. अस्तित्वपणे
वस्तु–स्वरूप कही शकाय छे, पण अस्ति–नास्ति बंने धर्मो वस्तुमां एक साथे रहेला छे तेथी वस्तु कही शकाती
नथी, आ रीते वस्तु वक्तव्य पण छे अने अवक्तव्य पण छे तेथी अस्तित्व–अवक्तव्य छे–प. ए ज प्रमाणे वस्तुने
स्यात् नास्तित्व– अवक्तव्य कहेवी–६. वळी बंने धर्मो क्रमे कही शकाय पण एक साथे कही शकाय नहि तेथी वस्तुने
स्यात् अस्तित्व–नास्तित्व–अवक्तव्य कहेवी– ७. ए रीते सात ज भंग कोई प्रकारथी संभवे छे.
(२) ए प्रमाणे एकत्व, अनेकत्व वगेरे सामान्य धर्मो पर ते सात भंग विधि–निषेधथी लगाडवा.
ज्यां जे अपेक्षा संभवे ते लगाडवी. वळी ते ज प्रमाणे जीवत्व, अजीवत्व आदि विशेष धर्मोमां ते भंगो
लगाडवा. जेम के–जीव नामनी वस्तु छे ते स्यात् जीवत्व छे, स्यात् अजीवत्व छे ईत्यादि प्रकारे सात भंग
लगाडवा. त्यां आ प्रमाणे अपेक्षा समजवी के–जीवनो पोतानो जीवत्वधर्म जीवमां छे तेथी जीवत्व छे, परनो–
अजीवनो अजीवत्वधर्म जीवमां नथी तोपण जीवना बीजा (ज्ञान सिवायना) धर्मोने मुख्य करीने कहीए त्यारे
ते धर्मोनी अपेक्षाए अजीवत्व छे; ईत्यादि सात भंग लगाडवा. तथा अनंत जीवो छे तेनी अपेक्षाए एटले के
पोतानुं जीवत्व पोतामां छे अने परनुं जीवत्व पोतामां नथी तेथी पर जीवोनी