
सत्यार्थ माने अने एकने सर्वथा असत्यार्थ माने तो मिथ्याश्रद्धा होय छे. माटे त्यां पण ‘कथंचित्’ जाणवुं.
एम कहीए त्यारे, माटीना घडाना आश्रये घी भरेलुं छे तेमां व्यवहारी जनोने आधार–आधेयभाव भासे छे
तेने प्रधान करीने (घीनो घडो) कहेवामां आवे छे. जो ‘घीनो घडो छे’ एम ज कहीए तो लोक समजे अने
‘घीनो घडो’ मंगावे त्यारे ते लई आवे; माटे उपचार विषे प्रयोजन संभवे छे. तेवी रीते ज्यां अभेदनयने
मुख्य करवामां आवे त्यां अभेदद्रष्टिमां भेद देखाता नथी, छतां ते वखते तेमां (अभेदनयनी मुख्यतामां) ज
पडे त्यारे ते एक धर्मने ज सर्वथा वस्तु मानीने वस्तुना अन्य धर्मोने तो सर्वथा गौण करीने असत्यार्थ माने
आ पंचमकाळमां अत्यारे आ कथनीनुं रहस्य समजावनार गुरुनुं निमित्त सुलभ नथी. (पण ज्यां ते मळी शके
त्यां) तेमनी पासेथी मुमुक्षुओए आ स्वरूप समजवुं. अने ज्यां न मळी शके त्यां शास्त्र समजवानो निरंतर
उद्यम राखीने आ समजवुं योग्य छे. केम के मुख्यपणे आना आश्रये सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थाय छे. जो के
श्रीजिनेन्द्रदेवनी प्रतिमानुं दर्शन तथा प्रभावना अंगनुं दर्शन ईत्यादि सम्यक्त्वनी प्राप्तिनां कारण छे (पण ते
गौण छे) अने शास्त्रनुं श्रवण करवुं, वांचवुं, भावना करवी, धारणा करवी, हेतु युक्तिवडे स्वमत–परमतनां
भेदने जाणीने नय विवक्षा समजवी अने वस्तुना अनेकान्त स्वरूपनो निश्चय करवो ते सम्यग्दर्शननुं मुख्य
कारण छे. तेथी भव्य जीवोए निरंतर तेनो उपाय राखवो योग्य छे.
छे: ते मिथ्याभावरूप मोह आत्मानुं स्वरूप नथी. ते थाय छे चैतन्यनी अवस्थामां, पण तेमां परनुं निमित्त छे,
ते आत्मानो स्वभाव नथी माटे ते जड छे.
मींडां वाळे छे, तो करवुं शुं?–एवी जे मूंझवण ते मोह छे. भाई! न समजाय तेवी मूंझवण तारा स्वरूपमां छे ज
नहि. यथार्थ तत्त्वनी ओळखाणे तत्त्वनी अप्राप्तिरूप मोह–मूंझवण टळी शके छे. मूंझाईश नहि भाई! भगवान
आत्मा मूंझवणनो मारनार छे, मूंझवणनो रक्षक नथी. समजातुं नथी, घड बेसती नथी ते बधी मोहनी मूंझवण
छे, माटे आत्मतत्त्वनी जिज्ञासा करी यथार्थ तत्त्वने ओळख. पछी ए बधा मोहनां मडदां मरेलां ज पडयां छे.
मोह तारा स्वरूपमां नथी माटे मुंझाईश नहि. निराकुळपणे पुरुषार्थ कर तो समजाय तेवुं छे अने सत्य
समजणथी ते मोह टळी शके एवो छे.