[परमात्म – प्रकाश गाथा ३–४–५ शास्त्र उपर पू. श्री सद्गुरुदेवनां व्याख्यानोनो सार]
अंक ५६ थी चालु] वीर सं. २४७३ द्वि० श्रावण वद ११ बुधवार [लेखांक ४
(२६) नमस्कारनुं स्वरूप : – ग्रंथकार कहे छे के हुं सिद्धभगवानने नमस्कार करुं छुं. परमार्थे कोई जीवो परने
नमस्कार करता नथी पण पोताना ज आत्माने नमस्कार करे छे. अहीं कई रीते सिद्धने नमस्कार करे छे? सिद्ध
जेवो पोतानो वीतरागी स्वभाव छे तेनी ओळखाण करीने वीतरागी स्वसंवदेन करे छे, ते ज सिद्धने
भावनमस्कार छे. बहारमां नमस्कार करवानुं कहेवुं ते व्यवहार छे. स्वभावना भानपूर्वक नमस्कारनो विकल्प
ऊठयो ते द्रव्य नमस्कार छे.
(२७) नमस्कर कण कर? : – प्रश्न:–जो पोते पोताने ज नमस्कार करे छे तो सद्धि भगवान पण पोताना
स्वरूपने ज अनुभवे छे तेथी शुं सिद्ध पण पोते पोताने नमस्कार करे छे?
उत्तर:–नमस्कार करवुं ते छद्मस्थने ज होय छे. सिद्ध भगवानने संपूर्णता प्रगटी गई छे तेथी हवे तेमने
स्वरूप तरफ वळवानुं बाकी रह्युं नथी. जे जीव स्वभावना वलण तरफ वळे छे ते ज सिद्धनी स्तुति करे छे.
स्वरूपमां जे अंशे ढळ्या छे अने विशेष ढळे छे तेने नमस्कार कहेवाय छे. स्वरूपमां पूर्ण ढळी गया पछी विशेष
ढळवानुं होतुं नथी माटे केवळी के सिद्ध भगवान नमस्कार करता नथी.
प्रश्न:–बारमा गुणस्थाने क्षायिकभाव प्रगटयो छतां त्यां स्तुति कही छे? त्यां राग तो नथी.
उत्तर:–त्यां पण हजी स्वरूपमां संपूर्णपणे परिणम्या नथी तेथी हजी स्वरूपमां ढळे छे, माटे तेमने पण
स्तुति कहेवामां आवी छे. साक्षात् तीर्थंकरने वंदन करवुं ते तो राग छे ते द्रव्यस्तुति छे; तेमां अशुभथी बचीने
शुभराग थाय छे, ते रागथी धर्म थतो नथी. बारमा गुणस्थाने राग नथी छतां हजी स्वरूपमां पूर्णपणे ढळ्या
नथी, तेथी ज केवळज्ञान थयुं नथी. ते जीव पण हजी स्वरूपमां विशेष विशेष ढळे छे माटे त्यां भाव नमस्कारनो
सद्भाव छे.
वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदनरूप भाव ते साची स्तुति छे, तेमां ईन्द्रिय के मननुं अवलंबन नथी,
रागनी अपेक्षा नथी, एकलुं स्वसंवेदन एटले के पोताना आत्मानुं ज वेदन करे छे ते ज स्तुति छे. स्वरूपमां
लीनता वधती जाय अने सिद्ध भगवान जेवो आनंद क्रमे क्रमे वधतो जाय ते साची भावस्तुति छे. परंतु सिद्ध
तो पूर्णपणे स्वरूपमां जामी गया छे तेथी हवे तेमने स्तुति नथी. अधूरी लीनता होय अने विशेष लीनता करे
त्यारे नमस्कार कहेवाय छे. ते बारमां गुणस्थान सुधी छे. त्यारपछी पूर्णता प्रगटी गई छे तेथी स्तुति होती
नथी.
वंद्यवंदक भावनो विकल्प तो छठ्ठा गुणस्थान सुधी ज होय छे, पण स्वरूपमां ढळवारूप भावस्तुति
बारमा गुणस्थानना छेडा सुधी होय छे, रागरहित परमात्मस्वरूपनुं भान थया पछी ते स्वरूपमां ढळीने जेटली
जेटली स्थिरता थती जाय तेटली भावस्तुति छे.
बारमे गुणस्थाने भावस्तुति कही, पण त्यां विकल्प नथी, मात्र हजी स्वरूपमां परिणमवानुं बाकी छे
अने विशेषपणे परिणमे छे तेथी त्यां भावस्तुति छे. सम्यग्द्रष्टिजीव साक्षात् वीतराग तीर्थंकर देवने नमस्कार
करे तेमां पण जे राग छे ते परमार्थस्तुति नथी. अहीं संतमुनि दशामां झूली रहेला मुनि पोते साचा नमस्कार
करवानी रीत कहे छे के–हुं मारा स्वरूपनी एकाग्रतारूप वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञानरूप परमार्थ
सिद्धभक्तिवडे सिद्धोने नमस्कार करुं छुं.
(२८) नमस्कारनुं तात्पयर् : – वर्तमानमां महाविदेहक्षेत्रमां श्री सीमंधरस्वामी वगेरे अरहंतपदे बिराजे छे
तेमने अहीं सिद्धभगवान तरीके वंदन कर्या छे. तेओ वर्तमानमां केवळज्ञानादि गुणो सहित छे. घातिकर्मोनो तो
क्षय कर्यो छे अने अघातिनो पण समये समये क्षय करीने वर्तमानमां सिद्धदशा प्राप्त करी रह्या छे, तेथी तेमने,
वर्तमानमां सिद्धपद तरीके नमस्कार कर्या छे. तेओ सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूपी अभेदरत्नत्रय मय छे. तेमने
नमस्कार कर्या, तेनुं तात्पर्य ए छे के एवी अभेदरत्नत्रयरूप निर्विकल्प समाधि ज मारे उपादेय छे, ए सिवाय
कोई पण राग–विकल्पने हुं उपादेय मानतो नथी.