Atmadharma magazine - Ank 061
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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श्री परमात्म – प्रकाश पर प्रवचनो आत्मधर्म : प :
भारे वस्तु होय ते पाणीमां डूबी जाय छे, परंतु सिद्धभगवान ज्ञान अपेक्षाए सौथी मोटा होवा छतां
संसाररूपी समुद्रमां डूबतां नथी अर्थात् सिद्धदशा थया पछी कदी अवतार होतो नथी.
ग्रंथकार पोते संतमुनि छे अने सिद्धोने नमस्कार करतां पोताने उल्लास आव्यो छे तेथी कहे छे के–जे
मुनिओ हस्तकमलवत् आत्माने जाणीने, वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञानथी सिद्ध थया तेमने हुं नमस्कार
करुं छुं. एवा कोण कोण सिद्ध थया छे? के श्रीऋषभादि तीर्थंकर देवो, सुकुमार मुनि, भरत चक्रवर्ती, सगर
चक्रवर्ती पांडवो, रामचंद्र वगेरे अनंत जीवो निर्विकल्प स्वसंवेदनना जोरे सिद्ध थया छे. अहीं निर्विकल्पपणुं ते
रागनी नास्ति बतावे छे अने स्वसंवेदन ते स्वरूपनी एकाग्रतारूप अनुभवनी अस्ति बतावे छे. पूर्वे
स्वसंवेदनना जोरे निज शुद्धात्म स्वरूपने पामीने जेओ परमसमाधानरूप मोक्षपदमां बिराजे छे तेमने नमस्कार
हो! जेटले अंशे आत्मानुं समाधान तेटली शांति छे, संपूर्ण आत्मसमाधान ते मोक्ष छे.
।।।।
गाथा प
ते पुणु वंदउं सिद्धगण जे अप्पाणि वसंत।
लोयालाउ विस्रयलु इहु अच्छहिं विमलु णियंत।।
५।।
अर्थ:–फरीथी हुं ते सिद्धोना समूहने समस्कार करुं छुं के जेओ निश्चयनयथी पोताना आत्मस्वरूपमां
बिराजे छे अने व्यवहारनयथी समस्त लोकालोकने संशय रहित प्रत्यक्ष देखता थका बिराजे छे.
() जा िश्चव् : केवली प्रभु लोकालोकने जाणे एम कहेवुं ते व्यवहार छे; अने आत्मा
वडे पोताना आत्माने ज जाणे छे–ते परमार्थ छे, जो परमार्थ परने जाणे छे एम होय तो तो नारकीने जाणता
नारकीनुं वेदन पण ज्ञानमां आवी जाय! माटे परने जाणवुं ते व्यवहार छे.
() ज्ञ ? : सिद्धभगवानने तो पूरु प्रमाणज्ञान छे, तेमना ज्ञानमां नय नथी, पण
तेमने जाणतां साधक जीवना ज्ञानमां नय पडे छे तेनी वात छे. ‘सिद्ध लोकालोकने जाणे छे,’ एम ज्यारे साधक
जाणे त्यारे ते साधकना ज्ञानमां व्यवहारनय छे अने ‘सिद्ध पोते पोताना आत्माने जाणे छे’ एम जाणे त्यारे
ते निश्चयनय छे.
() त् ह्य ? : सिद्धभगवानने रहेवानुं क्षेत्र शुं? परमार्थे पोते पोताना आत्मामां ज
बिराजे छे. सिद्धशिला उपर वसे छे ते व्यवहार छे. अहीं संसारी आत्मा पण शरीरना क्षेत्रे रह्यो छे ते व्यवहार
छे. परमार्थे पोते पोतामां ज रह्यो छे.
मधुर वाणी छूटे छे
मधुर वाणी छूटे छे, आतमराम जागे छे.......
अनंत गुणना पिंड अमे, अनंत गुणना पिंड तमे.
मारामां ये अनंतगुण, तारामां पण अनंतगुण...मधुर वाणी.
जीवमां पण अनंतगुण, अजीवमां पण अनंतगुण.
जीव बधायने जाणे छे, छतां बधायथी जुदो छे...मधुर वाणी.
भगवानमां पण अनंतगुण, मारामां पण अनंतगुण.
हाथीमां छे अनंतगुण, कीडीमां ये अनंतगुण....मधुर वाणी.
मधुर वाणी सांभळे छे, आतमराम डोले छे.
झट झट साचुं समजे छे, झट झट मुक्ति पामे छे....मधुर वाणी.