वस्तुनो स्वभाव उत्पाद्–व्ययरूप होवाथी तेमां दरेक समये नवुं नवुं कार्य थया ज करे छे. पहेला
ने बीजा समये सम्यकत्वदशा प्रगटे छे. त्यां जेनी द्रष्टि वस्तुना स्वभाव उपर नथी पण संयोग उपर छे एवो
अज्ञानी जीव एम माने छे के–“अमुक निमित्त आव्युं माटे आ कार्य थयुं. सद्गुरु वगेरे निमित्तो मळ्या माटे
सम्यक्त्व थयुं, जो पोतानी मेळे ज कार्य थतुं होय तो पहेलां केम न थयुं?” आ अज्ञानीनो मोटो भ्रम छे. अने
ए भ्रम ज उपादान–निमित्त संबंधी भूलनुं मूळ कारण छे. ए भ्रमने लीधे ज (अर्थात् स्वभावद्रष्टिथी च्यूत
थईने संयोगद्रष्टिने लीधे ज) जीव अनादिकाळथी संसारसमुद्रमां गोथां खाई रह्यो छे. वस्तुनुं यथार्थस्वरूप
तेना दरेके दरेक पर्यायनी संपूर्ण स्वाधीनता अने परपदार्थोथी तद्न उदासीनता बतावीने आ ग्रंथ अज्ञानीना
ते महान भ्रमनुं खंडन करे छे.
होवाथी थाय छे. बे जीवोमांथी एकने सम्यक्त्वदशा छे ने बीजाने मिथ्यात्वदशा छे, तेनुं कारण कोण? बंने
जीवना द्रव्य–गुण तो सरखां छे, बंनेने पूर्वना पर्यायनो तो वर्तमान अभाव छे अने अनादिथी परिणमता
परिणमता बंने वर्तमानकाळ सुधी आव्या छे; छतां एकने सम्यक्त्वरूप परिणमन अने बीजाने मिथ्यात्वरूप
परिणमन, तेनुं कारण शुं? कारण ए ज के–बंने द्रव्यना परिणमननी ते समयनी योग्यता ज तेवी छे. ए खास
ध्यान राखवुं के कार्य थवानी योग्यता त्रिकाळ रूप नथी, पण वर्तमानरूप छे. एटले द्रव्यनी जे समये जे कार्यरूप
परिणमवानी लायकात होय ते ज समये ते द्रव्य ते कार्यरूपे परिणमे छे; पण तेनाथी आगळ के पाछळ ते कार्य
थतुं नथी. एक जीवने पूर्वे मिथ्यात्वदशा हती ते समये तेनी तेवा ज परिणमननी लायकात हती, तेथी ज ते
मिथ्यात्वदशा हती,–नहि के कुदेवादिना कारणथी! अने बीजा समये ते जीवने सम्यक्त्वदशा थई, त्यारे ते जीव
पोताना ते समयना परिणमननी लायकातथी ज ते रूपे परणम्यो छे,–नहि के सद्गुरु वगेरेना कारणथी!
धोळारंगरूपे परिणमे. बंनेने द्रव्य–गुण तो समान छे, पूर्वपर्याय पण बंनेने समान हतो अने अनादिथी
परिणमता–परिणमता बंने वर्तमानकाळ सुधी ज आव्या छे, छतां परिणाममां फेर पडे छे. केम के ते ते
परमाणुना परिणमननी ते समयनी लायकात स्वतंत्र छे.
पर्यायो पण सत् छे, बीजानी अपेक्षा वगरना छे. दरेक समयनो पर्याय पोतानी स्वतंत्र लायकात धरावे छे.–
आनुं ज नाम उपादान. द्रव्य–गुणनी स्थिति सदा एक सरखी होय, परंतु पर्यायो सदा एक सरखा होय नहि.
एकताबुद्धि टळीने सम्यग्ज्ञान थाय छे. परंतु ‘आ निमित्त–पदार्थने लीधे उपादाननुं कार्य थयुं के निमित्त आव्युं
माटे कार्य थयुं, निमित्ते कांई असर करी, मदद करी, प्रेरणा करी’ एवा प्रकारनो कांई पण संबंध मानवो ते
उपादान–निमित्तनुं यथार्थ ज्ञान नथी पण मिथ्याज्ञान छे.
एटले के वस्तुनी पराधीनतानी मिथ्याकल्पना कर्या वगर रही शकता नथी. अने एवी जे वस्तुना स्वरूपथी
विपरीत कल्पना छे ते ज मोटो अधर्म छे. “मूळमां भूल” नामनुं पुस्तक यथार्थ वस्तुस्वरूप बतावीने
भव्यजीवोने ते अधर्मथी छोडावे छे.