Atmadharma magazine - Ank 061
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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वस्तुनो स्वभाव उत्पाद्–व्ययरूप होवाथी तेमां दरेक समये नवुं नवुं कार्य थया ज करे छे. पहेला
समयना पर्यायमां न होय एवुं कार्य बीजा समयना पर्यायमां प्रगटे छे. कोईने पहेला समये मिथ्यात्वदशा होय
ने बीजा समये सम्यकत्वदशा प्रगटे छे. त्यां जेनी द्रष्टि वस्तुना स्वभाव उपर नथी पण संयोग उपर छे एवो
अज्ञानी जीव एम माने छे के–“अमुक निमित्त आव्युं माटे आ कार्य थयुं. सद्गुरु वगेरे निमित्तो मळ्‌या माटे
सम्यक्त्व थयुं, जो पोतानी मेळे ज कार्य थतुं होय तो पहेलां केम न थयुं?” आ अज्ञानीनो मोटो भ्रम छे. अने
ए भ्रम ज उपादान–निमित्त संबंधी भूलनुं मूळ कारण छे. ए भ्रमने लीधे ज (अर्थात् स्वभावद्रष्टिथी च्यूत
थईने संयोगद्रष्टिने लीधे ज) जीव अनादिकाळथी संसारसमुद्रमां गोथां खाई रह्यो छे. वस्तुनुं यथार्थस्वरूप
तेना दरेके दरेक पर्यायनी संपूर्ण स्वाधीनता अने परपदार्थोथी तद्न उदासीनता बतावीने आ ग्रंथ अज्ञानीना
ते महान भ्रमनुं खंडन करे छे.
चेतन के जड बधी वस्तुओ दरेक समये पोताना परिणमनस्वभावथी ज नवा नवा परिणामे ऊपजे छे.
पूर्व समये अमुक दशा नथी होती, ने पछीना समये थाय छे, त्यां ते समयना पर्यायनी तेवी ज लायकात
होवाथी थाय छे. बे जीवोमांथी एकने सम्यक्त्वदशा छे ने बीजाने मिथ्यात्वदशा छे, तेनुं कारण कोण? बंने
जीवना द्रव्य–गुण तो सरखां छे, बंनेने पूर्वना पर्यायनो तो वर्तमान अभाव छे अने अनादिथी परिणमता
परिणमता बंने वर्तमानकाळ सुधी आव्या छे; छतां एकने सम्यक्त्वरूप परिणमन अने बीजाने मिथ्यात्वरूप
परिणमन, तेनुं कारण शुं? कारण ए ज के–बंने द्रव्यना परिणमननी ते समयनी योग्यता ज तेवी छे. ए खास
ध्यान राखवुं के कार्य थवानी योग्यता त्रिकाळ रूप नथी, पण वर्तमानरूप छे. एटले द्रव्यनी जे समये जे कार्यरूप
परिणमवानी लायकात होय ते ज समये ते द्रव्य ते कार्यरूपे परिणमे छे; पण तेनाथी आगळ के पाछळ ते कार्य
थतुं नथी. एक जीवने पूर्वे मिथ्यात्वदशा हती ते समये तेनी तेवा ज परिणमननी लायकात हती, तेथी ज ते
मिथ्यात्वदशा हती,–नहि के कुदेवादिना कारणथी! अने बीजा समये ते जीवने सम्यक्त्वदशा थई, त्यारे ते जीव
पोताना ते समयना परिणमननी लायकातथी ज ते रूपे परणम्यो छे,–नहि के सद्गुरु वगेरेना कारणथी!
आ ज प्रमाणे दरेक परमाणु पण तेनी स्वतंत्र लायकातथी ज परिणमी रह्यो छे. एक समये बे
परमाणुओ लालरंगरूप परिणम्या होय अने बीजा समये तेमांथी एक परमाणु काळारंगरूपे अने बीजो
धोळारंगरूपे परिणमे. बंनेने द्रव्य–गुण तो समान छे, पूर्वपर्याय पण बंनेने समान हतो अने अनादिथी
परिणमता–परिणमता बंने वर्तमानकाळ सुधी ज आव्या छे, छतां परिणाममां फेर पडे छे. केम के ते ते
परमाणुना परिणमननी ते समयनी लायकात स्वतंत्र छे.
आवी ज वस्तुनी स्वाधीनता छे अने आवा ज्ञानमां ज स्वभावनो पुरुषार्थ छे. जेम त्रिकाळी द्रव्य सत्
छे, तेनो कोई कर्ता नथी ने तेने कोईनी अपेक्षा नथी तेम तेना अनादि अनंत समयमां दरेक समयना एकेक
पर्यायो पण सत् छे, बीजानी अपेक्षा वगरना छे. दरेक समयनो पर्याय पोतानी स्वतंत्र लायकात धरावे छे.–
आनुं ज नाम उपादान. द्रव्य–गुणनी स्थिति सदा एक सरखी होय, परंतु पर्यायो सदा एक सरखा होय नहि.
त्रिकाळी द्रव्यने अने तेना पर्यायना एकेक समयना स्वतंत्र कार्यने जाणवुं ते उपादाननुं ज्ञान छे अने ते
वखते संयोगरूप अन्य द्रव्योनुं ज्ञान करवुं ते निमित्तनुं ज्ञान छे. ए बंनेने स्वतंत्र जाणे तो ज बे पदार्थोमां
एकताबुद्धि टळीने सम्यग्ज्ञान थाय छे. परंतु ‘आ निमित्त–पदार्थने लीधे उपादाननुं कार्य थयुं के निमित्त आव्युं
माटे कार्य थयुं, निमित्ते कांई असर करी, मदद करी, प्रेरणा करी’ एवा प्रकारनो कांई पण संबंध मानवो ते
उपादान–निमित्तनुं यथार्थ ज्ञान नथी पण मिथ्याज्ञान छे.
स्वभावथी दरेक पदार्थनी स्वाधीनता अने एक पछी एक दशारूपे थवानी तेनी स्वतंत्र लायकात, तेने
जे जीवो सूक्ष्म तत्त्वद्रष्टिना अभावने लीधे नथी जाणता तेओ एक पदार्थने बीजा पदार्थ साथे संबंध होवानी
एटले के वस्तुनी पराधीनतानी मिथ्याकल्पना कर्या वगर रही शकता नथी. अने एवी जे वस्तुना स्वरूपथी
विपरीत कल्पना छे ते ज मोटो अधर्म छे. “मूळमां भूल” नामनुं पुस्तक यथार्थ वस्तुस्वरूप बतावीने
भव्यजीवोने ते अधर्मथी छोडावे छे.