Atmadharma magazine - Ank 063-064
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: पोष–माह : २४७५ : आत्मधर्म : ६७ :
महान परमागम श्री प्रवचनसारनुं
भादरवा सुद बीजने दिवसे श्री प्रवचनसार परमागमनुं गुजराती भाषामां प्रकाशन थयुं,
ते प्रसंगे पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमांथी
प्रवचनसारनो गुजराती अनुवाद अने तेना अनुवादक
आजे आ प्रवचनसार बे हजार वर्षे गुजराती भाषामां बहार पडे छे. आजथी लगभग बे हजार वर्ष
पहेलां भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे समयसार–प्रवचनसार–नियमसार वगेरे महान शास्त्रो रचीने आ
भरतक्षेत्रमां श्रुतनी अपूर्व प्रतिष्ठा करी, त्यारबाद लगभग एक हजार वर्षे श्री अमृतचंद्र आचार्यदेव थया;
तेओ श्रीए समयसार, प्रवचनसारादि शास्त्रोनी संस्कृत टीका रचीने तेना गंभीर भावो खोल्यां; त्यारबाद,
आजथी लगभग १५० वर्ष पहेलां जैपुरनिवासी पं. जयचंद्रजीए समयसारनुं हिंदी भाषांतर कर्युं हतुं. अने
आठेक वर्ष पहेलां समयसारनो गुजराती अनुवाद बहार पड्यो छे ते अनुवाद भाईश्री हिंमतलाल जेठालाल
शाह (
B. Sc.) ए कर्यो छे. श्री प्रवचनसार परमागमना केटलाक साधारण भावो लईने श्री पांडे
हेमराजजीए हिंदीमां बालावबोधभाषाटीका करी हती, परंतु तेमां मूळ टीकाना पूरा भावो न हता. अत्यारे आ
प्रवचनसार अक्षरश: गुजराती भाषामां अनुवाद सहित आ हिंदमां बे हजार वर्षे बहार पडे छे, ते महा
प्रभावनानुं कारण छे. आ अक्षरश: अनुवाद भाईश्री हिंमतलाल जेठालाल (
B. Sc.) ए कर्यो छे, तेथी
तेमनो आ संस्था उपर अने जिज्ञासु जीवो उपर महान उपकार छे.
प्रवचनोना श्रवणमनथी तेमज तेमना पोताना श्रद्धा–वैराग्य–उत्साह अने होंशथी भाईश्री
हिंमतभाईए आ प्रवचनसारना अक्षरश: अनुवादनुं जे काम कर्युं छे तेनी कोई किंमत न थई शके; तेमणे तो
पोताना आत्मा खातर आ कार्य कर्युं छे.
समजनार जीवोना महाभाग्य
आजे बीज अने रविवार छे. बीज एटले चंद्र, ने रवि एटले सूर्य. आ संस्था साथे संबंध धरावता
घणा प्रसंगोमां रविवार अने बीज आवे छे. आजे आ महा मांगळिक प्रसंगनो दिवस छे. भगवान श्री
कुंदकुंदाचार्यदेवनुं आ प्रवचनसार आजे हिंदुस्तानमां महा अपूर्व श्रुत्र प्रभावना माटे बहार पडे छे; अने ते,
समजनार जीवोना महाभाग्य अने पात्रता सूचवे छे. आवा प्रवचनसारनो योग मळ्‌यो ते महाभाग्य छे, ते
पूर्वना पुण्य छे अने तेना भावो अंतरमां समजवा ते महा पात्रता छे, तेमां पोतानो वर्तमान पुरुषार्थ छे. ए
रीते पुण्य अने पुरुषार्थनी संधि छे.
प्रवचनसार एटले दिव्यध्वनिो सार
श्री सर्वज्ञदेवना दिव्यध्वनिने ‘प्रवचन’ कहेवाय छे, तेनो ‘सार’ आ परमागममां भरेलो छे तेथी आनुं
नाम ‘प्रवचनसार’ छे. सर्वज्ञ भगवानना दिव्यध्वनिमांथी आ शास्त्र आवेलुं छे. महाविदेहक्षेत्रमां बिराजमान
तीर्थंकरदेव श्री सीमंधरभगवानना समवसरणमां कुंदकुंदप्रभु गया हता अने त्यां एक अठवाडियुं रहीने
भगवाननो दिव्यध्वनि सांभळ्‌यो हतो; तेना सार रूपे तेमज श्री महावीरभगवाननी परंपराथी मळेला ज्ञान
वडे कुंदकुंदाचार्यदेवे आ शास्त्र रच्युं छे. आ शास्त्रना कथनो अक्षरे अक्षर सत्य छे; परम सत्य छे, जो सर्वज्ञ
भगवाननुं ज्ञान फरे तो आ शास्त्रना अक्षर फरे, अने कुंदकुंदआचार्यभगवान सीमंधरभगवान पासे गया हता
ए वात निःसंदेह एम ज छे;
श्रुतनी महा प्रतिष्ठा करनार विभु कुंदकुंद
महा विदेहमांथी आठ दिवस सुधी दिव्यध्वनिनुं श्रवण करीने कुंदकुंदआचार्यदेव पोताना आत्मामां अपूर्व
ज्ञान लई आव्या. पहेलां पोते मुनिदशामां तो हता ज अने महावीर भगवाननी परंपराथी मळेलुं ज्ञान तो
तेमने हतुं, पण सीमंधर भगवान पासे जवाथी तेमना ज्ञाननी निर्मळता घणी वधी गई. अने श्री समयसार,
प्रवचनसार, नियमसार, वगेरे शास्त्रोनी रचना करीने तेओ श्रीए आ भरतक्षेत्रमां श्रुतज्ञाननी महाप्रतिष्ठा
करी. ते श्रुत अत्यारे घणुं बहार आवतुं जाय छे, ने वर्तमानमां जीवोने पण तेना भाग्यनो योग छे. चंद्रगिरि
पर्वत उपरना एक शिलालेखमां लख्युं छे के ‘जे पवित्र आत्माए भरतक्षेत्रमां श्रुतनी प्रतिष्ठा करी छे, ते विभु
कुंदकुंद आ पृथ्वी पर कोनाथी वंद्य नथी?’