Atmadharma magazine - Ank 063-064
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: पोष–माह : २४७५ : आत्मधर्म : ६९ :
पर्यायबुद्धिवाळो जीव समजी शके नहि, अध्यात्म द्रष्टिवाळा–अंतर्दष्टिवाळा कोई समजे, बीजाने तेमां पत्तो खाय
नहि अने आ वात समजे तेने क्षायिक भाव प्रगट्या वगर रहे नहि.
“अरिहंत भगवानने योगनुं कंपन अने विहार दिव्यध्वनि वगेरे होय छे, ते बंधनुं कारण नथी पण
मुक्तिनुं कारण छे तेथी ते क्षायिक–क्रिया छे” आ प्रमाणे अरिहंत भगवाननी वात ४५ मी गाथामां चालती हती
अने भावार्थ बाकी हतो, त्यां ज वच्चे बराबर आ प्रवचनसारनी प्रभावनानो प्रसंग बन्यो छे. तीर्थंकरोना
उपदेशनी अने विहारनी वात चालती हती त्यां आ प्रवचनसारनी प्रभावनानो उदय थयो छे–ए वात पण
कंईक मेळ सूचवे छे.
प्रवचनसारना अभ्यासनुं फळ
जे जीव, श्री कुंदकुंदाचार्य भगवानना आ समयसार–प्रवचनसार वगेरे परमागम शास्त्रोनो सद्गुरुगमे,
महिमा लावीने, स्वच्छंद छोडीने, आत्महितनी बुद्धिथी अने ‘आमां अपूर्व स्वभावनी वात छे’ एम
स्वभावना लक्षे निरंतर अभ्यास करशे ते जीव अल्पकाळे परम पदने पामशे अने पोते ज अतींद्रिय ज्ञान अने
आनंदरूप थई जशे.

अपूर्व भेदज्ञान माटे

अहा! आचार्यदेवे ज्ञानस्वभावनी अपूर्व वात करी छे. वाणी अचेतन छे, तेना आधारे ज्ञान नथी;
ज्ञानस्वभावना आधारे ज ज्ञान थाय छे अहो! आ भेदविज्ञाननी परम सत्य वात छे, आत्मकल्याणनो मार्ग
छे. पण जेने पोताना कल्याणनी दरकार नथी अने जगतना मान–आबरूनी दरकार छे एवा तुच्छबुद्धि जीवोने
आ वात नथी रुचती, एटले खरेखर तेने पोतानो ज्ञान–स्वभाव ज नथी रुचतो, ने विकारभाव रुचे छे; तेथी
आवी अपूर्व आत्मस्वभावनी वात काने पडतां एवा जीवो पोकार करे छे के ‘अरे, आत्मा परनुं कांई करे नहि–
एम कहेवुं ते तो झेरनां ईन्जेक्शन आपवा जेवुं छे!’ अहो, शुं थाय!! आ भेदज्ञाननी परम अमृत जेवी वात
पण तेने झेर जेवी लागी!! आ एना पर्यायनुं परिणमन पण स्वतंत्र छे. आत्मा ज्ञान स्वरूप छे, विकारनो
अने परनो ते अकर्ता छे–एवी भेदज्ञाननी वात तो, अनादिकाळथी जे मिथ्यात्वरूपी झेर चडयुं छे तेने उतारी
नांखवा माटे, परम अमृतनां ईन्जेक्शन जेवी छे. जो एक वार पण आत्मा ईन्जेक्शन ले तो तेने जन्म–
मरणनो रोग नाश थईने सिद्धदशा थया वगर रहे नहि. आत्मा अने विश्वना दरेक पदार्थ स्वतंत्र छे. परिपूर्ण
छे, निरावलंबन छे–आवो सम्यक्बोध ते तो परम अमृत छे झेर!! एवुं परम अमृत पण जे जीवने ‘झेरना
ईन्जेक्शन’ जेवुं लागे छे ते जीवने तेना मिथ्यात्वभावनुं जोर ज तेम पोकारी रह्युं छे! आ तो निजकल्याण
करवा माटेना अने मिथ्यात्वरूपी झेर दूर करवा माटेना अफर अमृतनां ईन्जेक्शन छे. पोताना परिपूर्ण
स्वभावनो विश्वास करे तो सम्यग्दर्शन प्रगटे एटले के धर्मनी पहेलामां पहेली शरूआत थाय. अने तेनो
विश्वास न करतां वाणीनो के रागनो विश्वास ज करे तो ते जीवने मिथ्यात्वरूप अधर्म ज थाय छे.
आचार्यदेव कहे छे के वाणीना आश्रये तारुं ज्ञान नहि प्रगटे. रागनी भूमिकामां वाणी तरफ लक्ष जाय
खरुं, परंतु जो वाणीनुं अवलंबन मानीने अटके तो मिथ्याज्ञान छे. वाणीना अवलंबन रहित पूरा
ज्ञानस्वभावना आश्रये ज सम्यग्ज्ञान प्रगटे छे. ज्ञान अने वाणी जुदा छे. ज्ञानमांथी वाणी नीकळती नथी,
अने वाणीमांथी ज्ञान प्रगटतुं नथी, ज्ञानमां जेवी लायकात होय तेवी वाणी निमित्तरूपे होय–एवो निमित्त–
नैमित्तिक संबंध छे, त्यां अज्ञानी जीव भ्रमथी एम माने छे के वाणीने कारणे ज्ञान थाय छे. तेथी ते वाणीनो
आश्रय छोडतो नथी ने स्वभावनो आश्रय करतो नथी, एटले तेने सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. –एवा जीवने
वाणीथी ज्ञाननी भिन्नता बतावे छे. ज्ञान चेतन छे. अने वाणी जडनुं परिणमन छे.
[स. गाथा ३९० थी ४०४ उपरना व्याख्यानोमांथी