Atmadharma magazine - Ank 063-064
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: ७४ : आत्मधर्म : पोष–माह : २४७५ :
था. जो संपूर्ण वीतरागता न थई शके तो संपूर्ण वीतराग स्वभावनी श्रद्धा कर, ज्ञान कर, अने जो तत्क्षण श्रद्धा
ज्ञान पण न थई शके तो तेनी जिज्ञासा राखीने सत्देव–गुरु–शास्त्रना अवलंबन वडे कुदेवादि प्रत्येना रागने
छोड.
आमां जे शुभराग थाय छे ते राग कराववानुं शास्त्रनुं प्रयोजन नथी, पण जेटले अंशे राग टळ्‌यो तेटलुं
ज प्रयोजन छे. शास्त्रनुं मूळ प्रयोजन तो जीवने मोक्षमार्गमां लगाडवानुं छे. साचा शास्त्रो कोई पण प्रकारे
जीवने रागथी अने कुमार्गथी छोडावे छे. रागनी के कुदेवादिनी पुष्टि करावनारुं कथन कोई पण वीतरागी
शास्त्रमां होय नहि. ‘ताराथी शुभराग न थाय तो तुं पाप करजे अथवा तो कुदेवादिने मानजे’ –एवुं वचन
कोई पण सत्शास्त्रमां होय ज नहि.
न् स्त्र त्स्त्र ?
प्रश्न:– सत्शास्त्रोमां राग घटाडवानुं प्रयोजन छे–एम कह्युं परंतु अन्य शास्त्रोमां पण राग घटाडवानुं तो
कह्युं छे, तेथी तेने पण सत्शास्त्र कहेवां पडशे.
उत्तर:– सत्शास्त्रोना कोईपण कथन रागनी पुष्टि करावनारां होय ज नहि. अन्य शास्त्रोमां कोईवार तो
राग घटाडवानुं कहे छे अने कोईवार राग करवानुं पण कहे छे अर्थात् एक प्रकारनो राग घटाडवानुं कहीने
बीजा प्रकारना रागनी पुष्टि करावे छे, एटले ते तो रागनी पुष्टि करावे छे. भगवाननी भक्तिमां जे शुभराग
छे ते राग करवानी अन्य शास्त्रो पुष्टि आपे छे तेथी ते शास्त्रोमां राग घटाडवानो उपदेश यथार्थ नथी.
शुभराग करतां करतां धर्म थशे एम जे शास्त्रो कहे ते राग करवानी ज पुष्टि आपे छे, सत्शास्त्रो कदी पण
रागथी धर्म मनावो ज नहि. राग टाळतां टाळतां धर्म थाय, पण राग करतां करतां धर्म थाय नहि. साचां
जैनशास्त्रोमां तो रागना एक अंशथी ते संपूर्ण राग छोडवानो ज उपदेश छे. रागनो एक अंश पण राखवानो
उपदेश जैनशास्त्रोमां होय ज नहि. शुभराग करवानी वात करी होय त्यां पण, जे राग छे ते कराववानुं
प्रयोजन नथी परंतु तीव्र राग हतो ते घटाडवानुं प्रयोजन छे. वीतरागी शास्त्रोमां राग छोडवानो ज आदेश छे,
राग करवानो आदेश नथी. राग कहेतां मिथ्यातव, अज्ञान अने कषाय त्रणे समजवा. मिथ्यात्व पूर्वकनो राग ते
ज अनंतानुबंधी राग छे, ते मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधी राग–द्वेष प्रथममां प्रथम छोडवा जेवा छे.
त्स्त्र त् क्षर् प्र . र्
प्रश्न:– सत्शास्त्रो तो मोक्षमार्गनो प्रकाश करनार होय छे, तो पछी शास्त्रमां ज्यां अज्ञानीने शुभराग
करवानी वात आवे त्यां मोक्षमार्गनुं प्रतिपादन कई रीते आव्युं? सम्यग्दर्शन वगर तो मोक्षमार्ग होय नहि!
उत्तर:– अज्ञानीने शुभराग करवानुं कह्युं होय त्यां रागनुं प्रयोजन नथी पण कुदेवादिनी मान्यताथी
छोडावीने साचा देव–गुरु–धर्मनी मान्यता कराववानुं प्रयोजन छे. त्यां तीव्र मिथ्यात्व अंशे मंद पड्युं ए
अपेक्षाए तेने व्यवहारमोक्षमार्ग कहेवाय छे. खरेखर तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षमार्ग छे, राग ते
मोक्षमार्ग नथी तेम ज ते रागथी धर्म नथी, पण कुदेवादिनी मान्यतामां जे तीव्र मिथ्यात्व छे ते वीतरागी देवने
मानतां मंद पडे छे, अने सत् निमित्तो होवाथी सत् समजवानो अवकाश छे तेथी तेने उपचारथी मोक्षमार्ग
कहेवाय छे. साचा देव–गुरु–शास्त्र एम जणावे छे के– हे आत्मन्! तुं स्वतंत्र छो, पूर्ण ज्ञान–स्वरूप छो; राग
तारुं स्वरूप नथी.
ज्ञानीओनो उपदेश जीवोने सीधी रीते के परंपराए मोक्षमार्गमां लगाडवा माटे छे
ज्ञानीनो उपदेश जीवोना कल्याण माटे होय छे. कोईवार कोई जीव मोक्षमार्ग समजवानी योग्यतावाळो
न होय तो तेने जे रीते राग घटे तेवो उपदेश आपे छे. जेम कोई मुनिराज पासे मांसाहारी भील आवीने
उपदेश सांभळवा बेठो, हवे जो श्री मुनि तेने मोक्षमार्गनो उपदेश आपवा मांडे तो तेमां तेने कांई समजण पडे
नहि. तेथी श्री मुनि तेने एम कहे के–जो भाई! हरणीयां वगेरे निर्दोष जीवोने मारी नांखवाथी पाप छे अने
तेना फळमां नरक छे, माटे तुं शिकार छोडी दे अने मांसभक्षण छोडी दे, तारुं कल्याण थशे!
मांस छोडी देवाथी कल्याण थशे–एम कह्युं, त्यां एवो आशय छे के ते दुर्गति न जतां स्वर्गादिमां जशे, ए
अपेक्षाए तेने कल्याण कही दीधुं छे. अने भविष्यमां