: पोष–माह : २४७५ : आत्मधर्म : ७३ :
वीर सं. २४७१ कारतक
सुद २ नुं व्याख्यान
“जे आगम मोक्षमार्गनो प्रकाश करे ते ज आगम वांचवा–सांभळवा योग्य छे, कारण के संसारमां जीव
अनेक प्रकारनां दुःखोथी पीडित छे. जो शास्त्ररूपी दीपक वडे ते मोक्षमार्गने पामे तो ते मोक्षमार्गमां गमन करी
ए दुःखोथी मुक्त थाय. हवे मोक्षमार्ग तो एक वीतरागभाव छे माटे जे शास्त्रोमां कोई प्रकारे रागद्वेष मोह
भावोनो निषेध करी वीतरागभावनुं प्रयोजन प्रगट कर्युं होय ते ज शास्त्रो वांचवा–सांभळवा योग्य छे.”
(मोक्षमार्ग प्रकाशक पा. १५)
सत्शास्त्रोनुं प्रयोजन वीतरागभाव पोषवानुं ज छे
सत्शास्त्रोमां गमे ते वात करी होय पण तेमां राग–द्वेष–मोह मटाडवानुं अने वीतरागभावने पोषवानुं
ज प्रेयोजन छे. भक्ति, शास्त्रश्रवण, दान ईत्यादि करवानी वात करी होय त्यां पण तेमां जे राग छे तेनो तो
निषेध ज कर्यो छे. देव–गुरु–शास्त्रनी भक्ति वगेरेमां शुभराग होय छे परंतु तेमां कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्र प्रत्येना
रागनो पहेले ज धडाके निषेध आवे छे, तेथी त्यां पण राग टाळवानुं प्रयोजन सिद्ध थाय छे, साचा देव–गुरु–
शास्त्रनी भक्ति, पूजा वगेरेनुं कथन होय त्यां वीतरागी स्वरूपनी द्रष्टिपूर्वक जे अशुभराग टळ्यो ते प्रयोजन
छे, पण जे शुभराग रह्यो छे तेनुं प्रयोजन नथी, तेनो तो निषेध छे.
सत्शास्त्र वांचतां शुभराग होय छे पण शास्त्रोनुं प्रयोजन तो ए बताववानुं छे के, आ शुभराग पण
आत्मानुं स्वरूप नथी तेथी ते पण राखवा जेवो नथी. स्वरूपनी द्रष्टि सहितना शुभभाव होय ते अशुभभावथी
बचावे छे तेथी तेना वडे वीतरागभावरूप प्रयोजन अंशे सिद्ध थाय छे. कोई पण जातनो राग राखवानुं शास्त्रो
बतावतां नथी, पण कोईने कोई प्रकारे राग टाळवानुं ज शास्त्रो बतावे छे. शास्त्रो आत्मानी स्वतंत्रता बतावे
छे के तुं स्वतंत्र छो, ताराथी तुं परिपूर्ण छो, अमारुं अवलंबन पण तने नथी. ए रीते शास्त्रो आत्मानी
स्वतंत्रता बतावीने मोह तथा राग–द्वेष छोडावे छे. जेटलो राग घटीने वीतरागभाव थयो तेटलुं प्रयोजन
सधायुं छे अने जे राग रह्यो ते राखवा जेवो नथी.
जेमां कोई पण प्रकारे राग करवानुं प्रयोजन बताव्युं होय ते सत्शास्त्रो नथी. सत्शास्त्रो कोई पण प्रकारे
राग करवानुं प्रयोजन कहे ज नहि.
भक्ति वगेरे शुभरागनो उपदेश होय त्यां पण वीतरागतानुं ज प्रयोजन
प्रश्न:– भगवाननी भक्ति ते शुभराग छे छतां सत्शास्त्रमां तो ते करवानो उपदेश आवे छे?
उत्तर:– सत्शास्त्रमां भगवाननी भक्ति करवानुं कह्युं होय त्यां प्रयोजन अशुभराग टाळवानुं छे, अने
जे शुभराग रही जाय छे तेने पण राखवानो उपदेश नथी. सत्शास्त्रनुं पूर्ण प्रयोजन तो अशुभ तेम ज शुभ
बंने राग छोडावीने संपूर्ण वीतरागता करवानुं ज छे, पण ज्यां ते प्रयोजन पूर्णपणे सिद्ध न थतुं होय त्यां
एकदेश प्रयोजन सिद्ध करवा माटे अशुभथी छोडववा शुभनो उपदेश आपवामां आवे छे.
सत्शास्त्र रागथी अने कुमागर्थी छोडावे छे
सत्शास्त्रमां कोई वार तो एम पण कह्युं होय के तुं जिनेन्द्र भगवानने मान, तो तारुं वांझियापणुं
टळशे–तने पुत्रप्राप्ति थशे. आमां पण कोईक अंशे राग घटाडवानुं ज प्रयोजन छे. जो के पुत्रप्राप्तिनी ईच्छाथी
वीतरागदेवने माने त्यां तो मिथ्यात्व ज छे, छतां पण लौकिक हनुमान, शीकोतेर, पीर वगेरे कुदेवने मानवाथी
जीवने अति तीव्र राग छे तेनाथी छोडाववानुं प्रयोजन विचारीने साचा देवने मानवानुं कह्युं छे. पुत्रप्राप्तिनी
ईच्छाए पण कुदेवादिने छोडीने साचा देवने मानवाथी राग कांईक मंद पडे छे; तेम ज कुदेवादि पासे तो तेने सत्
समजवानो अवकाश ज न हतो, हवे सुदेवादिने मानवाथी कोईक वार पण तेने सत् समजवानो अवकाश छे.
आ रीते, जे राग मंद पडे छे तेटलुं ज शास्त्रनुं प्रयोजन छे, राग रह्यो ते तो छोडवा योग्य ज छे.
सत्शास्त्रो प्रथम तो पूर्णतानो ज उपदेश आपे छे के तारो स्वभाव सर्व प्रकारे परिपूर्ण छे, तेनी श्रद्धा–
ज्ञान–स्थिरता करीने आ क्षणे ज पूर्ण परमात्मा थई जा. मिथ्यात्व अने रागमात्र काढीने चिदानंद वीतराग