वर्णन करवुं के सांभळवुं ते विकथा नथी परंतु तेनी रुचिपूर्वक के रागपूर्वक सांभळवुं ते विकथा छे. आचार्यो–संतो
वर्णवे छे ते तो वैराग्यपोषक कथा छे. आथी भाव अनुसार वीतरागी कथा के विकथा कहेवाय छे, पण मात्र शब्द
उपरथी तेनुं माप नथी. सत्शास्त्रोमां जे वर्णन कर्युं होय ते कोईने कोई प्रकारे वीतरागभावने ज पोषे छे; तेथी
हिंसा युद्धादिक पोषी द्वेषभावनुं अने अतत्त्वश्रद्धान पोषी मोहभावनुं प्रयोजन प्रगट कर्युं होय ते शास्त्र नथी
पण शस्त्र छे. कारण के राग–द्वेष–मोहभाव वडे जीव अनादिथी दुःखी थयो, तेनी वासना तो जीवने वगर
शीखडाव्ये पण हती ज, अने वळी आ शास्त्रो वडे तेनुं ज पोषण कर्युं. त्यां भलुं थवानी तेमणे शुं शिक्षा
आपी? मात्र जीवना स्वभावनो घात ज कर्यो.”
शस्त्र छे, केमके ते जीवना सम्यग्दर्शनादि गुणोनो घात करे छे अने मिथ्यात्वादिने पोषे छे. जेमां राग–द्वेष–मोहनुं
पोषण कर्युं होय ते शास्त्र नथी; केमके राग–द्वेष–मोह तो जीव अनादिथी ज करे छे. अनादिना राग–द्वेष–मोहथी
छोडावीने मोक्षमार्गमां लगाडवा माटे सत्शास्त्र निमित्त छे.
आ फळ वगेरे वस्तुओ प्रत्येनो मारो राग घटाडुं छुं, अने मोक्षफळ प्राप्तिनी भावना करुं छुं’ –एवी भावनाथी
वीतरागदेवरूप निमित्तना लक्षे पोतानो राग घटाडे छे, फळ वगेरे मूकवानी क्रिया स्वयं तेनी योग्यताथी थाय छे.
उपर तो कांई पण चढाववामां आवतुं ज नथी. परंतु पोतानी ज वीतराग थवानी भावनाथी भगवाननी पूजा
करवामां आवे छे. आत्मानी ओळखाण थया पहेलां पण जिनपूजा वगेरेनो शुभराग करीने अशुभराग टाळे–
तेनो कांई निषेध नथी. तेम ज ‘भगवान एक आत्मा हता अने हुं पण आत्मा छुं, जेवुं परिपूर्ण स्वरूप
भगवाननुं छे तेवा ज स्वरूपे हुं छुं’ –एम पूर्ण स्वभावनुं भान थया पछी पण, पोते साक्षात् वीतराग थयो
नथी अने वर्तमान साक्षात् वीतरागदेव निमित्त तरीके हाजर (उपस्थित) नथी तेथी वीतरागमुद्रित
प्रतिमाजीमां वीतरागदेवनी स्थापना करीने अने तेनी पूजा करीने वर्तमानमां पोतानो अशुभराग टाळे छे अने
शुभरागने पण टाळीने वीतराग थवानी भावना करे छे. आ रीते जैनशास्त्रोमां वीतरागतानो ज उपदेश छे
मात्र अशुभरागने टाळवा माटे छे. सत्शास्त्रोनुं मूळ प्रयोजन जीवोने मोक्षमार्गमां लगाडवानुं ज छे.
सद्गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा लीधी छे.