Atmadharma magazine - Ank 063-064
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: पोष–माह : २४७५ : आत्मधर्म : ७९ :
शरीरादिथी जुदो ने रागादि विकारथी पण जुदो शुद्ध चैतन्यमय परिपूर्ण आत्मा छे तेने जे जाणे–माने–
अनुभवे ते आस्तिकयवादी छे, ते ज साचो जैन छे. जेने स्वरूपनी अस्तिनुं ज्ञान होय तेने, स्वरूपमां शेनी
शेनी नास्ति छे तेनुं पण ज्ञान होय ज, अर्थात् जेने स्वपदार्थनुं ज्ञान तेने पर पदार्थोनुं ज्ञान पण होय ज.
आ रीते, जगतना दरेक पदार्थो स्वतंत्र, स्वयंसिद्ध, कोईना बनाव्या वगरना अने परिपूर्ण छे; जगतमां
अनंत आत्माओ छे, तेमां दरेक स्वतंत्र छे. कोईपण आत्मा पोताना स्वरूपनी पूर्णताने ओळखीने, तेमां
एकाग्रतावडे पोतानी चैतन्यशक्तिनो विकास करीने पोते ज ईश्वर थई शके छे. –आवुं जाणनारा ज आस्तिक
छे, बीजा खरेखर नास्तिक छे.
प्रश्न:– जो ईश्वर आ जगतना कर्ता नथी तो आ जगतनी बधी व्यवस्था कई रीते चाले छे?
उत्तर:– आ जगतमां जेटला पदार्थो छे ते पदार्थो पोते ज पोताना स्वभावथी ज व्यवस्थितपणे
परिणम्या करे छे, कदी कोई पदार्थ अव्यवस्थित परिणमतो ज नथी. कदी कोई पदार्थ पोताना स्वरूपने छोडतो
नथी. जेम घउंने वाववाथी तेमांथी घउं ज ऊगे छे, पण घउंमांथी बाजरो ऊगतो नथी. तेम जीव सदा जीवरूपे
रहीने ज परिणमे छे, पण जीव परिणमीने कदी जड थई जतो नथी. पदार्थो पोते पोताना स्वभावथी ज
पोताना मूळस्वरूपमां टकी रहे छे. तेवी ज रीते जड पदार्थो पलटीने कदी जीवरूपे थई जता नथी. जीव पोतानुं
जीवपणुं कदी छोडतो नथी ने जड पोतानुं जडपणुं कदी छोडतुं नथी.
बधा पदार्थोमां उत्पाद्व्ययध्रुवत्व नामनी शक्ति छे, तेथी बधा पदार्थो पोताना स्वरूपथी ज नवी नवी
हालतरूपे ऊपजे छे, जुनी जुनी हालतोनो नाश थाय छे अने पदार्थ पोताना मूळ स्वरूपे सदाय टकी रहे छे.
आवी रीते दरेक पदार्थोमां व्यवस्थित फेरफार (–उत्पाद्–व्यय) थया ज करे छे; कोई ईश्वर ते फेरफारना कर्ता
नथी पण पदार्थो पोताना स्वभावथी ज तेवा छे. उत्पाद् स्वभाव वस्तुमां कांईक नवा कार्यनी उत्पति करे छे,
व्यय स्वभाव वस्तुना जुना कार्यनो नाश करे छे अने ध्रुव स्वभाव वस्तुने तेनां मूळस्वरूपमां सदा टकावी राखे
छे. बधी वस्तुओमां स्वभावथी ज आ प्रमाणे थया करे छे. वस्तुस्वभाव पोते ज पोतानो ईश्वर छे. आवा
यथार्थ वस्तुस्वभावने जाणीने, परना कर्तापणानो अभिप्राय छोडवो ने ज्ञातापणे रहेवुं ते ज धर्म छे, तेमां ज
सुख–शांति छे, ते ज परमात्मा थवानो उपाय छे.
आत्मानुं ज्ञान अने कर्मनुं ज्ञान
आत्मानो आश्रय छोडीने जे ज्ञान कर्मने जाणवामां रोकाय ते अचेतन छे. कर्मना लक्षे जे कर्मने
जाणवानो उघाड थयो ते आत्मानो स्वभाव नथी. कर्म मने नडे छे एम जेणे मान्युं छे तेनुं कर्मने जाणनारुं ज्ञान
अचेतन छे.
अज्ञानीओ कहे छे के पहेलां आत्मानुं नहि पण कर्मनुं ज्ञान करवुं जोईए. अहीं आचार्य भगवान कहे
छे के कर्मना ज्ञान उपर धर्मनुं माप नथी. कर्मने जाणवाथी धर्म थतो नथी. मंद कषायथी कर्मना लक्षे जे ज्ञान
थाय ते पण मिथ्याश्रुतज्ञान छे, तेथी अचेतन छे. कर्मने तथा तेना कहेनारा केवळी भगवान, गुरु तथा शास्त्रने
माने त्यां सुधी पण मिथ्याश्रुत छे, केम के ते ज्ञान परना आश्रये थाय छे; ते ज्ञाने स्वभावमां एकता नथी करी
पण रागमां ने परमां एकता करी छे; स्वभावमां एकता नथी पण विकारमां एकता छे तेथी क्रमेक्रमे विकार
वधीने ते ज्ञान अत्यंत हीणुं थईने निगोददशा थशे. पण ते ज्ञान आत्मामां एकता करीने केवळज्ञान तरफ नहि
ढळे. पूर्ण चैतन्य स्वभावनो आश्रय करीने जे श्रुतज्ञान थाय छे ते आत्मामां एकता करीने, क्रमे क्रमे वधीने
केवळज्ञान प्रगट करे छे.
आठे प्रकारना कर्मो अचेतन छे, ने ते अचेतनना लक्षे थतुं ज्ञान पण अचेतन छे. आत्मा परिपूर्ण
चैतन्य स्वरूप छे, तेना द्रव्य–गुण तो त्रिकाळ एकरूप छे, तेमां कर्मनी अपेक्षा नथी; पण वर्तमान पर्यायमां एक
समय पूरतो विकार छे, तेमां कर्म निमित्तरूपे छे एटले विकारने अने कर्मने एक समय पूरतो निमित्तनैमित्तिक
संबंध छे; आम जाणवुं जोईए. परंतु, जो कर्मनुं लक्ष राखीने ज एम जाणे तो सम्यक्श्रुतज्ञान थाय नहि एटले
के धर्म थाय नहि. त्रिकाळी चैतन्यस्वभाव कर्मथी ने रागथी भिन्न छे, क्षणिक पर्याय जेटलो पण नथी–एम
जाणीने ते स्वभाव साथे एकता करतां जे ज्ञान थाय ते सम्यग्ज्ञान छे. ते ज्ञान कर्मने जाणती वखते पोताना
ज्ञानस्वभाव साथे एकता राखीने जाणे छे तेथी ते वखते पण तेने शुद्धतानी वृद्धि ज थाय छे. –आनुं नाम धर्म
छे. एवुं स्वभाव तरफ वळतुं ज्ञान ज आ आत्माने मुक्तिनुं कारण छे, ते ज्ञानथी ज आ आत्मा पोते
भगवान्–परमात्मा थाय छे.
–श्री समयसार गा. ३९० थी ४०४ उपरना प्रवचनोमांथी.