शेनी नास्ति छे तेनुं पण ज्ञान होय ज, अर्थात् जेने स्वपदार्थनुं ज्ञान तेने पर पदार्थोनुं ज्ञान पण होय ज.
एकाग्रतावडे पोतानी चैतन्यशक्तिनो विकास करीने पोते ज ईश्वर थई शके छे. –आवुं जाणनारा ज आस्तिक
छे, बीजा खरेखर नास्तिक छे.
उत्तर:– आ जगतमां जेटला पदार्थो छे ते पदार्थो पोते ज पोताना स्वभावथी ज व्यवस्थितपणे
नथी. जेम घउंने वाववाथी तेमांथी घउं ज ऊगे छे, पण घउंमांथी बाजरो ऊगतो नथी. तेम जीव सदा जीवरूपे
रहीने ज परिणमे छे, पण जीव परिणमीने कदी जड थई जतो नथी. पदार्थो पोते पोताना स्वभावथी ज
पोताना मूळस्वरूपमां टकी रहे छे. तेवी ज रीते जड पदार्थो पलटीने कदी जीवरूपे थई जता नथी. जीव पोतानुं
जीवपणुं कदी छोडतो नथी ने जड पोतानुं जडपणुं कदी छोडतुं नथी.
आवी रीते दरेक पदार्थोमां व्यवस्थित फेरफार (–उत्पाद्–व्यय) थया ज करे छे; कोई ईश्वर ते फेरफारना कर्ता
नथी पण पदार्थो पोताना स्वभावथी ज तेवा छे. उत्पाद् स्वभाव वस्तुमां कांईक नवा कार्यनी उत्पति करे छे,
व्यय स्वभाव वस्तुना जुना कार्यनो नाश करे छे अने ध्रुव स्वभाव वस्तुने तेनां मूळस्वरूपमां सदा टकावी राखे
यथार्थ वस्तुस्वभावने जाणीने, परना कर्तापणानो अभिप्राय छोडवो ने ज्ञातापणे रहेवुं ते ज धर्म छे, तेमां ज
सुख–शांति छे, ते ज परमात्मा थवानो उपाय छे.
अचेतन छे.
थाय ते पण मिथ्याश्रुतज्ञान छे, तेथी अचेतन छे. कर्मने तथा तेना कहेनारा केवळी भगवान, गुरु तथा शास्त्रने
माने त्यां सुधी पण मिथ्याश्रुत छे, केम के ते ज्ञान परना आश्रये थाय छे; ते ज्ञाने स्वभावमां एकता नथी करी
वधीने ते ज्ञान अत्यंत हीणुं थईने निगोददशा थशे. पण ते ज्ञान आत्मामां एकता करीने केवळज्ञान तरफ नहि
ढळे. पूर्ण चैतन्य स्वभावनो आश्रय करीने जे श्रुतज्ञान थाय छे ते आत्मामां एकता करीने, क्रमे क्रमे वधीने
केवळज्ञान प्रगट करे छे.
समय पूरतो विकार छे, तेमां कर्म निमित्तरूपे छे एटले विकारने अने कर्मने एक समय पूरतो निमित्तनैमित्तिक
संबंध छे; आम जाणवुं जोईए. परंतु, जो कर्मनुं लक्ष राखीने ज एम जाणे तो सम्यक्श्रुतज्ञान थाय नहि एटले
के धर्म थाय नहि. त्रिकाळी चैतन्यस्वभाव कर्मथी ने रागथी भिन्न छे, क्षणिक पर्याय जेटलो पण नथी–एम
जाणीने ते स्वभाव साथे एकता करतां जे ज्ञान थाय ते सम्यग्ज्ञान छे. ते ज्ञान कर्मने जाणती वखते पोताना
ज्ञानस्वभाव साथे एकता राखीने जाणे छे तेथी ते वखते पण तेने शुद्धतानी वृद्धि ज थाय छे. –आनुं नाम धर्म
छे. एवुं स्वभाव तरफ वळतुं ज्ञान ज आ आत्माने मुक्तिनुं कारण छे, ते ज्ञानथी ज आ आत्मा पोते
भगवान्–परमात्मा थाय छे.