हुं परनी क्रियामां निमित्त थउं त्यारे परनी क्रिया थाय छे–एम जेनी मान्यता छे, ते मिथ्याद्रष्टि छे. पर
ज्ञान वगर व्यवहारनुं पण साचुं ज्ञान होय नहि. हुं परने निमित्त थई शकुं एटले के हुं निमित्त थईने बीजाने
साचुं समजावी दउं–एवी मान्यतामां तो व्यवहारथी निश्चय आव्यो, एटले के पराश्रयबुद्धिरूप मिथ्याभाव
आव्यो. पर वस्तुनुं कार्य तेनाथी ज स्वयं थाय छे, हुं निमित्त थउं–एवी अपेक्षा तेने नथी–एम निश्चयनुं ज्ञान
साथे राखीने, जे वखते जे निमित्त होय तेनुं ज्ञान करे तो तेमां निश्चयपूर्वकनो व्यवहार आव्यो, त्यां पराश्रयनी
बुद्धि न रही. ‘हुं परनो कर्ता छुं’ एवी बुद्धि अथवा तो ‘हुं निमित्त थईने बीजाने समजावी दउं’ एवी बुद्धि,
अने ‘व्यवहार करतां करतां निश्चय प्रगटे’ एवी बुद्धि–ए त्रणे समान छे.
पोते पोताथी समज्यो त्यारे तेने माटे ते निश्चय प्रगट्यो, अने त्यारे ते जीव एम कहे के मने अमुक निमित्त
हतुं, ए व्यवहार छे. ए रीते निश्चयपूर्वक व्यवहार छे. आ तो, जे राग थयो तेने परमां निमित्त क्यारे कहेवाय
तेनी वात करी.
पोते निश्चयने पमाडे छे? रागने पोताने तो कांई खबर नथी. पण ते रागनो निषेध करीने–रागनो आश्रय
छोडीने, स्वभावने. आश्रये निश्चय श्रद्धा–ज्ञान प्रगट्यां त्यारे रागथी जुदुं पडेलुं सम्यग्ज्ञान एम जाणे छे के पूर्वे
आ राग निमित्त हतो, अथवा आ प्रकारनो व्यवहार हतो. ए रीते निश्चयपूर्वक व्यवहार होय छे.
बीजाने निमित्तपणानो आरोप आवे छे. आमां स्वाश्रय ने पराश्रयनो मोटो सिद्धांत छे. स्वाश्रय द्रष्टि ते
सिद्धदशानुं कारण छे ने पराश्रयद्रष्टि ते निगोददशानुं कारण छे. अज्ञानी एम माने छे के हुं परने निमित्त थउं,
एमां तेनो पराश्रयभाव छे. ज्ञानी एम जाणे छे के पर पदार्थोमां ज्यारे तेना पोताना उपादाननुं कार्य थाय छे
त्यारे आरोपथी मने निमित्त कहे छे, –एमां तो स्वाश्रयपणुं टकावी राखीने स्व–परनुं ज्ञान कर्युं. उपादान
सहित निमित्तनुं ज्ञान यथार्थ छे, पण निमित्तना आश्रये उपादाननुं ज्ञान यथार्थ होय नहि. ज्यारे रागनो
निषेध करीने स्वभावना लक्षे निश्चय प्रगट कर्यो त्यारे रागने उपचारथी व्यवहार कह्यो. अथवा तो स्वभावना
आश्रयरूप शुद्ध उपादान प्रगट्युं त्यारे रागादिने निमित्त तरीके जाण्या. पण कोई एम माने के हुं आ राग करुं
छुं ते मने वीतरागतानुं निमित्त थशे–तो ते मिथ्याद्रष्टि छे, केम के तेना अभिप्रायमां रागनो आश्रय छे पण
स्वभावनो आश्रय नथी. तेवी ज रीते कोई एम माने के हुं जे व्यवहार करुं छुं ते मने निश्चय श्रद्धाज्ञान
प्रगटवानुं कारण थशे–तो ते पण व्यवहारना आश्रयमां अटकेलो मिथ्याद्रष्टि छे. रागनो आश्रय छोडे त्यारे तेने
व्यवहारनो आरोप आवे छे, रागादिनुं लक्ष छोडीने उपादान प्रगट करे त्यारे तेने निमित्तपणानो आरोप आवे
छे. पण जे राग अने निमित्तना आश्रयमां ज अटक्यो छे तेने तो उपचार पण होतो नथी.