बधायने जाणनार सळंग ज्ञानस्वभावी हुं छुं–एम न मानतां, एक पण ठेकाणे मारा निमित्तनी अपेक्षा छे एम
जेणे मान्युं छे तेणे त्रणे काळना बधाय पदार्थोनी स्वतंत्रताने उडाडी छे. अने बधाने जाणनार पोतानो सर्वज्ञ
स्वभाव तेने पण उडाडयो छे, तेने सर्वज्ञ भगवाननी श्रद्धा नथी, सर्वज्ञ भगवाने शुं कह्युं तेनी पण श्रद्धा नथी.
‘पर वस्तुओ पराधीन छे, परवस्तुने मारी अपेक्षा छे’ एम अज्ञानी माने भले, पण तेथी कांई पर वस्तु
पराधीन थई जती नथी, मात्र ते अज्ञानीने तेना ऊंधा अभिप्रायथी अनंत संसार भाव वधे छे.
परिणाम होय तो सत्यभाषा बोलाय’ आवा प्रकारनी मान्यता ते अज्ञान छे. अज्ञानने लीधे ज तेने परनुं
करवापणुं अने पर साथेनो संबंध देखाय छे. खरेखर एम छे नहि. ३१९मा श्लोकमां आचार्यदेव कहे छे के– आ
अज्ञानने पामीने जे जीवो परथी परनां मरण, जीवन, सुख, दुःख देखे छे अर्थात् माने छे तेओ अहंकार–रसथी
कर्म करवानां ईच्छुक छे अने तेओ नियमथी मिथ्याद्रष्टि छे, पोताना आत्मानो ज तेओ घात करे छे. ऊंधी
मान्यताने लीधे, जेवुं स्वरूप छे तेवुं देखातुं नथी पण बधुं ऊंधुं ज भासे छे. एकबीजानुं कांई करे एवुं वस्तु
स्वरूप छे नहि छतां अज्ञानने लीधे ज अज्ञानीने तेवुं भासे छे. मारे लीधे परने कांई थाय ने परने लीधे मने
कांई थाय–एम अज्ञानथी ज देखाय छे. आ जगतमां जे कांई बंधन अने दुःख छे ते अज्ञानथी ज छे. ज्ञानीने
बंधन नथी–दुःख नथी.
देखाय छे. जे वस्तुने जुए ते वस्तुरूपे ज पोताने मानी ले छे. पण वस्तु एम नथी. फक्त अज्ञानथी ज एम
भासे छे. जो अज्ञान छोडीने ज्ञानभावथी जुए तो स्वतंत्रता भासे. अज्ञानने लीधे ज स्वतंत्रता भासती नथी.
आ लाकडुं ऊंचुं थयुं. त्यां ‘आ हाथे लाकडाने ऊंचुं कर्युं’ एम अज्ञानथी ज भासे छे, बे द्रव्योनी एकतारूप
मान्यताथी ज एम लागे छे. ज्ञानीओने सम्यग्ज्ञानथी एम भासे छे के लाकडुं ते वखतना पोताना पर्यायना
स्वभावथी ज ऊंचुं थयुं छे, हाथने लीधे थयुं नथी. तेवी ज रीते मारा हिंसा के दयाना भावने लीधे पर जीव
मर्यो के बच्यो–ईत्यादि प्रकारनी जेटली मान्यताओ छे ते सर्वे अज्ञानने लीधे ज छे. बधाय जीवो पोत पोतानी
ते ते वखतनी स्वतंत्र अवस्थाथी ज सुखी के दुःखी थाय छे. पोता सिवाय बीजा सर्वे पदार्थोनी जे जे अवस्था
थाय छे ते बधाय पर द्रव्यना भावो छे, पोताना भावो नथी. पोतावडे पर द्रव्यना भावोने करी शकवा अशक्य
छे. माटे, अज्ञानीना अध्यवसाननो ‘परमां कांईक करुं’ एवो जे आशय छे ते मिथ्या छे, अने ते ज बंधनुं
कारण छे. जेम–आकाशने फूल होतां ज नथी तेथी, ‘हुं आकाशना फूलने चूंटु छुं’ एवो अभिप्राय मिथ्या छे–
खोटो छे; तेम परवस्तुमां परवस्तुनो व्यापार ज नथी, पर वस्तुना भावो पोतामां असत् छे तेथी, ‘हुं
परवस्तुमां कांईक करुं’ एवो जे अज्ञानीनो अध्यवसाय छे ते चोक्कसपणे मिथ्या छे, खोटो छे, जुठ्ठो छे, निरर्थक
छे. जीवनी जे खोटी मान्यता छे ते मान्यता प्रमाणे परमां बनतुं नथी माटे ते खोटी मान्यता परमां निरर्थक छे,
अने ते खोटी मान्यताथी पोतानो आत्मा हणाय छे तेथी ते खोटी मान्यता पोतामां अनर्थक छे; पोताना
आत्माने अनंत संसारमां रखडाववा माटे ते मान्यता सार्थक छे, पण परमां तो तद्न निरर्थक छे.
कराय. ज्ञानी कहे छे के भाई, व्यवहारथी पण परनुं कंई तुं करी शकतो नथी. व्यवहार शुं कहेवाय तेनुं पण तने