पर पदार्थनुं काम तेना पोताथी थयुं ते तो ते पदार्थनो निश्चय छे अने तेना कार्य वखते निमित्तरूप बीजा
पदार्थनी हाजरीने तेनुं निमित्त कहेवुं ते तेनो व्यवहार छे. एटले के दरेके दरेक पदार्थ स्वतंत्र छे–निरपेक्ष छे, ते
निश्चय छे अने एक पदार्थमां बीजा पदार्थनुं निमित्त कहेवुं ते व्यवहार छे. परंतु एक पदार्थमां बीजा पदार्थे कांई
उत्तर:– बोलवानी क्रिया तो जडनी छे, भाषा जड छे. बोलवा उपर जेनी द्रष्टि छे ते अज्ञानी छे. ज्यारे
होय तो धर्म छे, खोटो अभिप्राय होय तो अधर्म छे. अंतरना अभिप्रायने तो देखतो नथी अने ‘आम
बोलाय, ने तेम बोलाय’ एम भाषाने वळगे छे ते बहिरद्रष्टि छे.
मारे परवस्तुनो आश्रय नथी ने परवस्तुने मारो आश्रय नथी–आवी द्रष्टिमां संसार रह्यो नहि विकार कदी
एटले ज्ञानीने स्वाश्रयद्रष्टिमां मुक्ति ज छे. अने ‘मे परनुं कर्युं, व्यवहारथी हुं परनुं करुं’ एवी अज्ञानीना
अभिप्रायमां परमां एकत्वबुद्धिरूप मिथ्यात्वभाव भरेलो छे. हुं परने निमित्त थाउं एटले शुं? एनो अर्थ तो
ए थयो के मारुं लक्ष स्वाश्रयमां न टके पण क्यांक परमां लक्ष जाय, मारो राग परमां वळे अने हुं ते परनो
निमित्त थांउं, त्यारे ते परनी अवस्था थाय–आवी अज्ञानीनी बुद्धिमां राग साथे अने पर साथे एकता ऊभी
छे. तेने क्यांयथी छूटा पडवानो अभिप्राय नथी. हुं तो ज्ञानरूप छुं, ज्ञाननुं कार्य मात्र जाणवानुं ज छे, पण राग
करीने परने निमित्त थवानुं काम ज्ञाननुं नथी. ज्ञानस्वभाव तो परथी निरपेक्ष छे. –आम जे पोताना
स्वभावने नथी जाणतो, अने पर साथेनी लप ऊभी करे छे ते जीव साचा ज्ञानपरिणामने ओळखतो नथी,
अने देव–गुरु–शास्त्रना कथननुं जे मूळ प्रयोजन छे तेने पण ते समजतो नथी. एकलो निरपेक्ष ज्ञानभाव
अशुभ परिणाम करे ते बधाय फक्त पोताने ज अनर्थनुं कारण थाय छे, परमां तो तेनाथी किंचित्मात्र थतुं
नथी. हिंसा के अहिंसाना जे शुभ–अशुभ परिणाम छे ते खरेखर संसारनुं मूळ कारण नथी पण ते परिणाममां
एकत्वबुद्धि ज संसारनुं मूळ कारण छे. शुभ परिणाममां एकत्वबुद्धि वगर तेनाथी धर्म माने ज नहि. अने हुं
परने मारी–बचावी शकुं एम, परमां एकत्वबुद्धि वगर माने ज नहि. हुं परने सुखी करी दउं–एवी मान्यताथी
पर जीव तो कांई सुखी थई जता नथी पण ते मान्यताथी पोते ज दुःखी थाय छे. परनुं भलुं करवानी
मान्यताथी मात्र पोतानुं ज अनर्थ ज थाय छे, परनुं तो कांई ज थतुं नथी. परनुं भलुं–बूरुं तेना पोताना
परिणामने आधीन छे.
पर जीवोने कांई करी शकतो नथी, माटे तेनी मान्यता निरर्थक होवाथी मिथ्या छे, अने ते ज बंधनुं कारण छे शुं
परवस्तुना पर्यायनुं परिणमन तारी अपेक्षा राखे छे? के ते पोते पोताना द्रव्यत्वनी अपेक्षाथी ज परिणमे छे?
ए द्रव्य एना पोताथी स्वतंत्रपणे परिणमतुं होवा छतां तुं एम मान के तेना परिणमनमां मारी अपेक्षा छे–तो
तारी ते मान्यता तने ज दुःखनुं कारण छे. तारी परमां एकत्वबुद्धिथी ज संसार छे. तारो जे अभिप्राय छे ते
प्रमाणे वस्तुमां तो बनतुं नथी; परनुं करवानो तारो अभिप्राय अने परिणाम तो व्यर्थ जाय छे–निरर्थक छे–
खोटां छे अने तने ज ते बंधनुं कारण छे.
विषय नथी अर्थात् तेनी मिथ्यामान्यता प्रमाणे वस्तुनुं स्वरूप नथी. जगतमां परवस्तुओ छे खरी परंतु
अज्ञानीना