समजीने पराश्रय छोडीने स्वाश्रयमां टकवुं ते ज मुक्तिनो उपाय छे.
अनंत दुःखनुं कारण छे, तो ते भावने सारा कोण माने? पहेलां तुं वस्तुस्वरूप समजीने तारो अभिप्राय तो साचो
कर, साचो अभिप्राय थया पछी शुभ के अशुभ भाव आवशे तेनुं कर्तापणुं तने नहि रहे, अने तेमां एकताबुद्धि
नहि थाय. माटे सौथी पहेलां बधाय परनो आश्रय छोडीने, बधायथी निरपेक्ष तारा स्वभावने समज.
निमित्त थवा खातर तें राग कर्यो छे? शुं सामो जीव समजण माटे तारा शुभरागनी अपेक्षा राखे छे? तने जे
राग थयो छे ते परने निमित्त थवा माटे थयो नथी पण तारा ज दोषथी थयो छे. आ बेमां मोटुं अंतर छे. राग
वखते, जेनी स्वाश्रितद्रष्टि छे ते जीव पोतानी पर्यायनी लायकात जुए छे, अने जेनी पराश्रित द्रष्टि छे ते जीव
परनी लायकात जुए छे अने परना कारणे राग माने छे. पर वस्तु मात्र ज्ञाननुं ज निमित्त छे तेने बदले
अज्ञानी तेना कारणे राग माने छे. पोतानो राग परने निमित्त थवा माटे थतो नथी तेमज परवस्तुने ते
थाय छे’ ए मान्यता खोटी छे. राग करीने परनुं निमित्त थवानी जेनी द्रष्टि छे तेने रागमां अने परमां ज
एकत्वबुद्धि छे. तेने सदाय पर उपरना लक्षे राग कर्या करवो छे ने परनुं निमित्त थवुं छे. पर साथेनो संबंध
राख्या करवो छे. पण पर साथेनो संबंध तोडीने आत्माना स्वभावनो आश्रय करवो नथी. पर साथेना
संबंधनी द्रष्टि ए ज बंधनुं मूळ छे, ने ए ज संसारनुं कारण छे, ए ज मिथ्यात्व छे अने परनी अपेक्षा रहित
निजस्वभावनो आश्रय ते ज मुक्तिनुं कारण छे.
संवर–निर्जरा थता नथी. पर्यायमां चेतनपणुं–चेतन साथे एकपणुं–थया वगर संवर–निर्जरा क्यां थाय? अने
राग घट्यो पण न कहेवाय. राग रहित स्वभावना स्वीकार पूर्वक, रागथी आत्मानी भिन्नता जाणीने जो राग
घटे तो राग घट्यो कहेवाय. रागने ज जे पोतानुं स्वरूप माने तेने राग घट्यो केम कहेवाय?
प्रयत्न करे तेने रागादि घट्या वगर रहे ज नहि. परंतु राग घट्यो तेनी मुख्यता नथी पण आत्मज्ञाननी
मुख्यता छे–ए भूलवुं न जोईए, एटले के मंद रागने धर्म मानवो न जोईए. आनो अर्थ एम नथी के आत्मा
न समजाय त्यां सुधी तो स्वच्छंदपणे वर्तवुं ने एवां ने एवा तीव्र पाप कर्या करवां, अने विषयकषाय जरा य
छोडवां ज नहि. अहो! पुण्य–पण आत्मानुं स्वरूप नथी एवी वात जेने रुचे–एटले के पुण्य रहित
आत्मस्वभाव जेने रुचे ते जीवो पापने तो केम आदरे? तेवा जीवोने विषय–कषायनी रुचि न होय, सत्
स्वभाव प्रत्ये अने सत् निमित्तो प्रत्ये बहुमान आवतां संसार तरफनो अशुभराग घणो ज मंद थई जाय छे.
ए सिवाय तो धर्मी थवानी पात्रता पण होती नथी. जेने आत्मानुं ज्ञान थयुं न होय तेणे तो घणो ज प्रयत्न
करीने अशुभ रागादि घटाडीने आत्मानी समजणनो अभ्यास करवो जोईए. जो एम न करे अने एम ने एम