प्रश्न:– ‘आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, आत्मा परनुं कांई करी शकतो नथी,’ –आवुं सांभळनारा अने
तेवो आ सांभळनारा पण करे तो छे, तो पछी अमारामां ने तेमनामां फेर शुं पड्यो?
पोताना करतां कंईक सारुं करे छे–एम मानवुं नथी–एवा जीवो पोतानो स्वछंद पोषवा एम बचाव करे छे के
सत्य समजनारा पण अमारा जेवा ज छे? पोते अंतरना भावने तो समजतो नथी तेथी ते जीव बहारना
संयोग देखीने तेना उपरथी धर्मनुं माप टांके छे. एवा जीवने शास्त्रोमां बहिरात्मा कहेवाय छे. एवा बहिरात्मा
जीवने उपरनो प्रश्न ऊठे छे. तेनुं अहीं समाधान करे छे. ‘जेवो वेपार–धंधो अमे करीए छीए तेवो सत्य
सांभळनारा पण करे छे’ एम तें प्रश्नमां कह्युं, परंतु हे भाई! सौथी पहेली मूळ वात तो ए छे के बहारमां
वेपार–धंधा वगेरे के जडनी कोई पण क्रियाओ तो तुं पण नथी करतो ने बीजा आत्माओ पण नथी करता.
ज्ञानी के अज्ञानी कोई पण आत्मा जडनी क्रिया तो करतो ज नथी, मात्र आदरना भाव करे छे. अने ते अंदरना
भाव उपरथी ज धर्म–अधर्मनुं माप थई शके छे. बहारना संयोग उपरथी धर्म–अधर्मनुं माप थई शकतुं नथी.
कोईक जीव वेपार–धंधो, घर–बार बधुं छोडीने नग्न थईने जंगलमां रहे, छतांय मोटो अधर्मी होय ने अनंत
संसारमां रखडे. अने कोई जीवने बहारमां वेपार–धंधो के राजपाटनो संयोग होय छतां अंतरमां
आत्मस्वभावनुं भान छे, ओळखाण छे, तो तेवा जीव महा धर्मात्मा ने एकावतारी के ते ज भवे मुक्त जनार
पण होय. माटे अंदरना भाव जोतां शीखवुं जोईए, बहारथी धर्मनुं माप न होय. बाह्यसंयोग सरखा छतां
एकने क्षणे क्षणे धर्म, बीजाने क्षणे क्षणे पाप.
भिन्न श्रद्धे छे. ने बहारमां कार्यने हुं करी शकुं–एम मानता नथी, तेथी तेमने राग–द्वेष घणा ज अल्प होय छे.
अने ते वखते य, रागथी भिन्न आत्मानी श्रद्धा होवाथी तेमने धर्म थाय छे. राग–द्वेषनुं पाप घणुं अल्प छे.
अने जेने सत्यनी दरकार नथी एवो जीव ते वेपारादि जडनी क्रियाने पोतानी माने छे ने तेना कर्तापणानुं
अभिमान करे छे तेथी तेने अज्ञाननुं घणुं मोटुं पाप क्षणे क्षणे बंधाय छे. आ रीते बहारना संयोग सरखा
होवा छतां अंतरमां आकाश–पाताळ जेटलो महान तफावत छे, संयोग द्रष्टिथी जोनार जीव ते तफावतने कई
रीते समजशे?
तेनो अहंकार करतो, पण साची समजण थतां एम जाण्युं के आत्मा सर्वे परथी जुदो छे, एटले त्रणे लोकना
सर्वे पदार्थोमांथी पोतापणानी ऊंधी मान्यता छोडी दीधी, ते ज मिथ्यात्वरूप अधर्मनो त्याग छे, ए त्याग
अज्ञाने देखातो नथी. बहारनुं त्याग के ग्रहण आत्मा करतो नथी, अंतरमां सत्य भावोनुं ग्रहण ने ऊंधा
भावोनो त्याग करे ते धर्म छे.
समजवानी दरकार नथी, सत्यनी रुचि नथी, ने ऊलटा सत्यनो अनादर करे छे; जुओ! बंनेना अंतरना
परिणाममां