(अनुसंधान टाईटल पान २ थी चालु)
छे, तेने जाणतां सर्वे ज्ञानीओनुं द्रव्य जणाई जाय छे, अंतरमां तेनी रुचि थतां आखा जगतनी रुचि
टळी जाय छे, अने अंतरमां तेनुं परिणमन थतां, अहो! ज्ञायक भगवाननी प्रसन्नता ने प्राप्ति थाय छे. आ
समयसार आनंदमय विज्ञानघन आत्माने प्रत्यक्ष देखाडनारुं अद्वितीय जगच्चक्षु छे. सद्गुरुगमे जे कोई तेना
परम गंभीर अने सूक्ष्म भावोने हृदयगत करशे तेने ते जगच्चक्षु आत्मानुं प्रत्यक्ष दर्शन करावशे... माटे रात
दिवस ए ज मंथन अने ए ज पुरुषार्थ कर्तव्य छे. भगवान सूत्रकार पोते छेल्ली गाथामां समयसारना
अभ्यासनुं फळ कहे छे के–
आ समयप्राभृत पठन करीने, अर्थ–तत्त्वथी जाणीने, ठरशे ‘अरथ’ मां आतमा जे, सौख्य उत्तम ते थशे.
माटे हे भव्य जीवो!
तमे पोताना कल्याणने अर्थे आ समयसारनो अभ्यास करो, आनुं श्रवण करो, निरंतर आनुं ज स्मरण
अने ध्यान राखो, के जेथी अविनाश सुखनी प्राप्ति थाय. आवो श्री गुरुओनो उपदेश छे.
एवा महिमावंत श्री समयसार उपर पू. गुरुदेवश्रीए आठ वखत विशाळ प्रवचनो कर्यां छे. आजथी
पंदर वर्ष पहेलां–वीर सं. २४६० ना भादरवा सुद ८ थी व्याख्यानमां समयसारना वांचननी पहेल वहेली
मंगळ शरूआत थई. त्यारथी आजसुधी लगभग निरंतर तेनुं वांचन थाय छे. एकंदर आठ वखत प्रवचनो
थया, ते नीचेनी तिथिए शरू थया हता–
पहेलीवार वी. सं. २४६० ना भादरवा सुद ८ पांचमीवार वी. सं. २४६७ ना मागसर सुद ७
बीजीवार ,, २४६३ ना भादरवा सुद ३ छठ्ठीवार ,, २४६८ ना जेठ वद १२
त्रीजीवार ,, २४६५ ना चैत्र सुद ८ सातमीवार ,, २४७० ना श्रावण सुद १३
चोथीवार ,, २४६६ ना चैत्र सुद १३ आठमीवार ,, २४७२ ना जेठ सुद ५
उपर मुजब आठ वखत समयसार उपर प्रवचनो थया, तेमांथी छठ्ठी वखतना प्रवचनो लखी लेवामां
आव्यां छे अने ते छपाईने प्रसिद्ध थाय छे. अत्यार सुधीमां समयसार–प्रवचनोना चार भाग प्रसिद्ध थई गया
छे अने हजारो जीवो तेनो लाभ लई रह्या छे. श्री जिनागमना अतिशय गंभीर आशयोने समयसार–प्रवचनो
द्वारा यथार्थपणे अने अत्यंत स्पष्टपणे प्रगट करीने पू. गुरुदेवे वीतरागी विज्ञाननी झंखाती ज्योतने सतेज
करी छे. जिनागमोमां भरेलां परम निधानो जोई शकवानी द्रष्टि पू. गुरुदेवश्रीना समागम अने प्रवचन श्रवण
विना अम अल्प बुद्धिजीवोने केम प्राप्त थात! साचा उपदेष्टाओनी अतिशय न्यूनताने लीधे मोक्षमार्ग बहु ज
ढंकाई गयो हतो त्यारे पू. गुरुदेवश्रीए भेदज्ञानना बळथी जिनागमना मर्मोने खोली मोक्षमार्गने खूल्लो कर्यो
छे ने जिनशासननो उद्धार करीने तेनी महा प्रभावना करी छे. ए रीते हजारो–हजारो जीवो पर तेओश्रीए
अथाग उपकार कर्यो छे. स्वानुभूतिना पंथने प्रकाशती गुरुदेवश्रीनी वाणी जयवंत रहो.
स्वरूप सुधाने प्राप्त करवा ईच्छता जीवोए पू. गुरुदेवश्रीना समयसार प्रवचनोनुं वारंवार श्रवण–मनन
करवा योग्य छे. संसारना मूळने छेदवानुं ते अमोघ शस्त्र छे. आ दुर्लभ मनुष्यभवनुं प्रथममां प्रथम कांई
कर्तव्य होय तो ते शुद्धात्मानुं बहुमान, प्रतीति ने अनुभव छे. ते माटे आ प्रवचनोनो अभ्यास बहु उपकारी
छे. मुमुक्षुओ अतिशय उल्लासपूर्वक तेनो अभ्यास करी, ऊग्र पुरुषार्थथी तेमां कहेला भावोने संपूर्ण रीते
हृदयमां उतारी, शुद्धात्मानी रुचि, प्रतीति अने अनुभव करी शाश्वत परमानंदने पामो.
जयवंत वर्तो श्री समयसार अने तेना प्रभावक श्री सद्गुरुदेव!
समयसार प्रवचनोना चार भाग प्रसिद्ध थया छे ते नीचे प्रमाणे
भाग १ : गाथा. १ थी १३ किं ३–०–० भाग ३ : गाथा. २३ थी ६८ किं ३–०–०
भाग २ : गाथा. १४ थी २२ किं १–८–० भाग ४ : गाथा. ६९ थी १४४ किं ३–०–०
प्रािप्त स्थान : – श्री जैन स्वाध्याय मंदिर, सोनगढ
• समयसार–प्रवचनोनो पहेलो भाग हिंदी भाषामां पण छपायो छे, तेनी किंमत रू।. ६–०–०