निमित्त कहेवाय छे. कोई जीव बारअंग समजे तो तेने माटे बारअंगमां ते वाणीने निमित्त कहेवाय छे. कोई जीव
करणानुयोगनुं ज्ञान करे तो ते वखते तेने ते वाणी करणानुयोगना ज्ञानमां निमित्त कहेवाय छे. अने ते ज वखते
बीजो जीव द्रव्यानुयोगनुं ज्ञान करतो होय तो तेने ते वाणी द्रव्यानुयोगना ज्ञानमां निमित्त कहेवाय छे. अहो,
आमां ज्ञाननी स्वाधीनता सिद्ध थाय छे. जे जीव पोताना अंतर स्वभावना आधारे जेटलो श्रद्धा–ज्ञाननो विकास
करे तेटलो दिव्यध्वनिमां निमित्तपणानो आरोप आवे छे. माटे अहीं भगवान आचार्य देव कहे छे के ज्ञान अने
लीधे ज्ञान थतुं होय तो अजीववाणी कर्ता बने अने ज्ञान तेनुं कार्य ठरे, अजीवनुं कार्य तो अजीव होय, एटले
ज्ञान पोते अजीव ठरे? जे जीव पर वस्तुना आधारे पोतानुं ज्ञान माने छे ते जीवनुं मिथ्याज्ञान छे. तेने अहीं
अचेतन कह्युं छे. श्रुतना शब्दो जड छे, आत्माना ज्ञानमां ते अकिंचित्कर छे. ते द्रव्यश्रुतना अवलंबने आत्माने
बिलकुल ज्ञान के धर्म थतो नथी.
द्रव्य–गुण–पर्याय, निश्चय–व्यवहार, उपादान–निमित्त, नवतत्त्वो वगेरे संबंधी ज्ञाननो उघाड मात्र शास्त्रोना
लक्षे थाय अने स्वभावनुं लक्ष न करे तो ते ज्ञानना उघाडने पण द्रव्यश्रुतमां गणीने अचेतन कह्यो छे. शास्त्र
वगेरे पर द्रव्यो, तेना लक्षे थतो मंदकषाय अने तेना लक्षे कार्यकरतो वर्तमान पूरतो ज्ञाननो उघाड ते बधानो
आश्रय छोडीने तेनी साथेनी एकता छोडीने, त्रिकाळी आत्मस्वभावनो आश्रय करीने आत्मामां जे ज्ञान अभेद
थाय ते ज खरुं ज्ञान छे.
पोताना आत्मामां जे भेदज्ञान प्रगट्युं छे ते भाव श्रत जयवंत हो–एवी भावना छे; अने शुभ विकल्प वखते,
भेदज्ञानना निमित्तरूप वाणीमां आरोप करीने कहे छे के ‘श्रुत जयवंत हो, भगवाननी ने संतोनी वाणी
मारा आत्माने किंचित् लाभ थतो नथी.
कर्ता कर्म पणुं थई जाय छे. माटे ते मान्यता खोटी छे. तेम ज आत्मामां साचुं समजवारूप लायकात थाय त्यारे
कर्ता ठरे अने अचेतन वाणी तेनुं कार्य ठरे!
आव्या माटे वाणी छूटी–एम नथी, अने वाणी छूटवानी हती माटे गौतमस्वामी आव्या तेम पण नथी. वाणी
अने गौतमस्वामी बंनेनी क्रियाओ स्वतंत्र छे. भगवाननी वाणी छूटी माटे गौतमस्वामीने ज्ञान थयुं–एम पण
खरेखर नथी: वाणी अचेतन छे, तेनाथी ज्ञान थाय नहि;