Atmadharma magazine - Ank 065
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 17

background image
: फागण : २४७प : आत्मधर्म : ९९ :
श्रद्धा अपेक्षाए ब्रह्मचारी छे. पहेलांं पर संयोग अने विकार साथे आत्मानी एकता मानीने तेमां जोडातो ते
मैथुन सेवन हतुं. हवे ज्ञान अने आत्मामां एकपणानी श्रद्धा करीने विकार अने संयोगोथी जुदापणुं जाण्युं
एटले तेणे आत्मा साथे एकता करीने पर साथेनी एकतारूप जोडाण तोडयुं, ते परमार्थे ब्रह्मचारी छे.
स्वभावनी नि:शंकतामां आवतो अपरिग्रह धर्म
हुं ज्ञानमात्र छुं, ए सिवाय परनो एक अंश पण मारो नथी–एम माननार जीव खरेखर अपरिग्रही छे.
तेने बहारमां चक्रवर्ती राजनो संयोग होवा छतां अंतरना अभिप्रायमां एक अंशने पण पोतानुं मानता नथी,
ज्ञान स्वभाव सिवाय बीजे क्यांय अंशमात्र एकता मानता नथी, तेथी ज्ञानीओ तेने निष्परिग्रही कहे छे. अने
जेने आत्मस्वभावमां एकता प्रगट करी नथी ने बहारना पदार्थोमां अंश मात्र एकता छे ते जीव बाह्यमां
त्यागी होय तो पण अनंत परिग्रही छे.
उत्तम क्षमा धर्म
उत्तम क्षमा वगेरे दसधर्मो अनादिना छे. तेमां आजे उत्तम क्षमाधर्मनो दिवस छे. हुं त्रिकाळ अशरीरी
निर्विकारी तत्त्व छुं, ज्ञान साथे अभेद छुं–एवी रुचि अने प्रतीत करवी ते महानक्षमा छे. कोई आवीने गाळ दे
के मारे त्यारे क्रोध न करवो,–ते तो शुभराग छे, एवी क्षमानी अहीं वात नथी. आत्माने विकारवाळो ने शरीर
वाळो माने तेणे आत्माना स्वभाव उपर अनंत क्रोध कर्यो छे; अने ज्ञानस्वभावथी परिपूर्ण आत्माने माने
तेणे पोताना आत्मा उपर उत्तम क्षमा करी छे.
नि:शंकतानुं फळ केवळज्ञान, अने शंकानुं फळ अनंत संसार
जेणे आत्मा अने ज्ञानमां जरा य जुदापणुं मान्युं छे ते जीव ज्ञानथी जुदो ने जुदो रहेशे एटले विकारमां
एकता करी करीने ते अनंत संसारमां रखडशे; ते पोताना ज्ञानने आत्मामां अभेद करशे नहि. अने जेणे आत्मा
अने ज्ञाननी संपूर्ण एकता मानी छे ते जीव पर्याये पर्याये आत्मामां ज्ञाननी एकता करे छे ने विकारथी जुदो ज
रहे छे. ते जीव अल्पकाळे ज्ञान अने आत्मानी संपूर्ण एकता प्रगट करी केवळज्ञान पामीने मुक्त थशे.
आत्मा अने ज्ञानने जरा य भेद नथी एवी जेने निःशंकद्रष्टि थई छे ते जीव कोई प्रसंगे आत्माने
ज्ञानथी जुदो मानतो नथी एटले आत्मस्वभावनो आश्रय कदी छोडतो नथी, ने विकार साथे ज्ञाननी एकता
कदी मानतो नथी; ते कोई समये आत्माने विकारवाळो मानतो नथी. तेथी ते जीवनुं ज्ञान क्षणे क्षणे
आत्मस्वभाव साथे जोडातुं जाय छे ने विकारथी छूटतुं जाय छे एटले तेने समये समये ज्ञान अने
वीतरागतानी वृद्धि थती जाय छे. आनुं नाम साधकदशा छे. अज्ञानी एम माने छे के वाणीना कारणे ज्ञान थाय
छे. एटले तेणे आत्मा साथे ज्ञाननी एकता न मानी, ज्ञानने आत्मा साथे न जोडयुं पण पर द्रव्य साथे एकता
मानीने विकार साथे ज्ञानने जोडयुं, ते जीव आत्माना ज्ञानस्वभावनो खूनी–आत्मघातकी छे. तेणे ज्ञानने
आत्माथी जुदुं मान्युं होवाथी तेना आत्माने ज्ञानथी अत्यंत जुदाई (एटले के एकेन्द्रिय दशा) थई जशे.
ज्ञानने अने आत्माने ज एकता छे एटले ज्ञान आत्माना आश्रये ज स्व–परने जाणनार छे, रागादिनुं कर्ता
नथी, –एमां जे जीव जरा य शंका करतो नथी ते जीवना ज्ञानने आत्माथी जरा य जुदाई रहेशे नहि ने
विकारनो जरा य संबंध रहेशे नहि एटले के तेनुं ज्ञान आत्माना आश्रये ज परिपूर्णपणे परिणमीने केवळज्ञान
प्रगट थशे ने विकारनो सर्वथा अभाव थशे. आचार्य भगवान कहे छे के आत्माने अने ज्ञानने जुदाई हशे एवी
जरा पण शंका करवी नहि. आवी आत्मस्वभावनी निःशंकता ने
रुचिरूपी तारद्वारा आ वात आत्मामां झट ऊतरी जाय छे.
अहो, ज्ञाननी परिपूर्णता स्वतंत्रतानी आ वात छे. जेने चैतन्य स्वभावनी रुचि नथी तेने
आ वात बेसती नथी. पण–जेम मोटा मकान उपर तांबानो एवो तार गोठवे छे के उपरथी वीजळी
पडे तो मकानने नुकसान कर्या वगर ते तार द्वारा सीधी जमीनमां ऊतरी जाय. तेम जेणे चैतन्यनी
रुचिरूप तार आत्मा साथे जोड्यो छे तेने चैतन्यनी स्वाधीनतानी आ वात रुचिद्वारा आत्मामां
झट ऊतरी जाय छे; स्व–परनुं भेदज्ञान थतां वस्तुनी स्वतंत्रताने जराय नुकसान कर्या वगर तेनुं
ज्ञान चैतन्य तरफ वळी जाय छे.
समयसार गा. ३९० थी ४०४ उपरना प्रवचनमांथी