Atmadharma magazine - Ank 067
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: १३२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४२५ :
अने ते धर्मोनी अपेक्षाए आत्मा चेतनात्मक छे. ज्ञानदर्शन सिवायना प्रमेयत्व, सुख वगेरे जेटला धर्मो
छे ते धर्मो स्व–परने चेतना नथी, –जाणता नथी तेथी तेओ जीवना अचेतनधर्मो छे, ते धर्मोनी अपेक्षाए
आत्मा अचेतनात्मक छे. आ रीते, आत्मा पोते ज चेतन–अचेतनात्मक छे–एम स्याद्वादथी सिद्ध थयुं. माटे हे
जीव, तुं बहारना चेतन के अचेतन पदार्थोना अवलंबनने छोडीने तारा आत्मतत्त्वने ज अवलंब.
–३–
हवे ज्ञान साथे आत्माने कथंचित् एकपणुं अने कथंचित् जुदापणुं छे एम बतावीने अनेकांत सिद्ध करे छे:–
ज्ञानाद्भिन्नो न चाभिन्नो, भिन्नाभिन्नः कथंचन।
ज्ञानं पूर्वापरीभूतं सोऽयमात्मेति कीर्तितः।।
४।।
सामान्य अर्थ:– आ आत्मा ज्ञानथी सर्वथा (एकांतपणे) भिन्न नथी तेम ज एकांतपणे ज्ञानथी
अभिन्न पण नथी; परंतु कथंचित् भिन्न अने कथंचित् अभिन्न छे केम के पहेलांं–पछीना ज्ञानस्वरूप आ आत्मा
छे–एम कहेवामां आव्युं छे.
भावार्थ:– आत्मामां मात्र एक ज्ञानगुण ज नथी पण ज्ञान सिवायना सुख, अस्तित्व वगेरे गुणो पण
छे. जो आत्मा ज्ञानथी सर्वथा जुदो होय तो ज्ञानरहित आत्मा जड थई जाय, माटे आत्मा अने ज्ञान अभेद छे,
तेने प्रदेशभेद नथी अने जो ज्ञानथी सर्वथा अभेद होय तो ज्ञानगुण ज आत्मद्रव्य थई जाय अने तेथी
आत्मामां ज्ञान सिवाय बीजा गुणोनो अभाव ठरे; माटे ज्ञान अने आत्माने लक्षण वगेरेथी भेद पण छे. ए
रीते ज्ञानथी कथंचित् भिन्नपणुं अने कथंचित् अभिन्नपणुं–एवा बंने धर्मो आत्मामां एक साथे अविरुद्धपणे
रहेला होवाथी आत्मा ज्ञानथी कथंचित भिन्नाभिन्न छे. कथंचित् गुणगुणी भेद छे ए अपेक्षाए आत्मा ज्ञानथी
जुदो छे. अने कंथचित गुणगुणी अभेद छे ए अपेक्षाए आत्मा ज्ञानथी अभेद छे.
वळी बीजी रीते ज्ञानथी कथंचित् भिन्न–अभिन्नपणुं आ प्रमाणे पण छे: आत्मामां ज्ञानगुण सदाय
रहेतो होवा छतां ते ज्ञान सदाय परिणम्या करे छे, सदाय एक ज प्रकारनुं ज्ञान रहेतुं नथी पण तेनी जुदी जुदी
दशाओ थया करे छे. ज्ञाननी कोई एक दशा जेटलो ज आत्मा नथी पण पहेलांंनी अने पछीनी सर्वे ज्ञानदशाओ
ते आत्मा छे. आत्मा कोई एक ज्ञानदशा जेटलो नथी ए अपेक्षाए ज्ञानथी भिन्न छे अने सर्वे ज्ञानदशाओ ते
आत्मा छे ए अपेक्षाए ज्ञानथी अभिन्न छे. आ रीते आत्मानुं अनेकांत स्वरूप छे. त्यां, ज्ञान अने आत्मा
भिन्न छे ए व्यवहार छे; ज्ञानलक्षणद्वारा आत्माने लक्षमां लेवो ते तेनुं प्रयोजन छे. ज्ञान अने आत्मा एवा
बंनेना जुदा जुदा विचारथी तो रागरूप विकल्प ऊठे छे. ज्ञान अने आत्मा अभेद छे–ए निश्चय छे. गुण अने
गुणीना जुदा जुदा विकल्परहित अभेदरूप एक आत्मस्वरूपना अनुभवथी राग तूटे छे ने वीतरागता थाय छे.
कथंचित् भिन्न–अभिन्नपणोनो संबंध पर साथे नथी; परद्रव्योथी तो आत्मा तद्न जुदो ज छे. पोताना
आत्मामां ज कथंचित् भिन्न–अभिन्नपणारूप अनेकांत स्वभाव स्वयं प्रकाशमान छे.
–४–
[अनुसंधान पान १२९ थी चालु]
परिणमे छे, पण वाणी परिणमे त्यारे ज्ञानने अने वाणीना परिणमनने
निमित्तनैमित्तिक संबंध छे. जे वाणीमां सम्यग्ज्ञाननुं निमित्त होय ते वाणी ज अन्य
जीवोने प्रथम सम्यग्ज्ञान प्रगट करवामां निमित्तरूप थई शके. पण जे वाणीमां
मिथ्याज्ञाननुं निमित्त होय ते वाणी अन्य जीवोने प्रथम सम्यग्ज्ञान प्रगट करवानुं
निमित्त थाय नहि.
(विशेष माटे जुओ, मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ट १प)
आजीवन ब्रह्मचर्य
बोटादना भाईश्री हरगोविंदभाई गोपाणी तथा तेमना धर्मपत्नी, अने
जगजीवनभाई पारेख तथा तेमना धर्मपत्नी–ए दरेके पू. गुरुदेवश्री पासे माह वद १० ना
रोज बोटाद शहेरमां आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे. ते माटे ते दरेकने
अभिनंदन घटे छे. (आ समाचार प्रसिद्ध थवामां विलंब थयो, ते बदल ग्राहको क्षमा करे.)