निर्विकल्प समाधि प्रगट करीने अनंतचतुष्टयमय परमात्मा थया. एवा परमात्माने ओळखीने नमस्कार कर्या छे.
शुद्ध कह्यो छे, वीतराग परमानंद स्वरूप आत्मा कह्यो छे’ एम श्रवण करे परंतु ज्ञाननो स्वभाव जेवो छे तेवो
पोताना ख्यालमां न ल्ये त्यां सुधी यथार्थ ज्ञाननी एकाग्रता थाय नहि. देवगुरु के शास्त्र सामे जोवाथी
स्वभावनुं ज्ञान ऊघडे नहि. ‘तुं ज्ञान छो, ते ओळखीने स्वभावमां ठर’ एम भगवाने उपदेश कर्यो छे. जाणवा
सिवाय आत्मानुं बीजुं कांई कर्तव्य नथी. क्षेत्रांतर थयुं ते जाणवा माटे छे, आत्मामां ज्ञान करवानी शक्ति छे.
‘मारुं क्षेत्रांतर थयुं ते मारा कारणे स्वतंत्र थयुं छे’ ए जाणवानुं पण प्रयोजन नथी केम के ते तो पर्यायद्रष्टि छे.
‘आत्मा ज्ञानस्वभाव ज छे’ एनी श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र ते मोक्षमार्ग छे. अहीं सिद्ध भगवानने ओळखीने तेमने
नमस्कार कर्या छे. हुं सिद्ध थवा माटे सिद्धने नमस्कार करुं छुं–एवा भावथी अहीं नमस्कार कर्या छे.
ए छे के–अरिहंतदेव केवळज्ञानादि गुणस्वरूप शुद्धात्मा छे, एवो शुद्धात्म स्वभाव ज आराधवा योग्य छे.
भगवानने नमस्कार करनार जीव विकारने आदरवा योग्य माने नहि.
होय छे तेथी तेनी वात करे छे. परमात्मा अरिहंत–सिद्धने नमस्कार करीने हवे आचार्य–उपाध्याय–ने साधुने
नमस्कार करे छे. पोताने अभेदरत्नत्रय प्रगटीने परमात्म प्रकाशनी शरुआत थई छे पण हजी अधुराश छे तेथी
भेदरत्नत्रय पण छे. पूर्ण दशामां भेदरत्नत्रय होता नथी. पण साधकदशामां अभेदरत्नत्रय साथे भेदरत्नत्रय
पण होय छे. तेथी हवे आचार्य–उपाध्यायने साधुने नमस्कार करतां भेद–अभेदरत्नत्रयनुं वर्णन पण सातमी
परमाणंदह कारणिण तिण्णि वि ते वि णवेवि।।
जिनेन्द्रदेवनी मूर्ति तो परमाणुना कारणे आवी छे. धर्मीजीवने आत्मस्वभावना भानपूर्वक ज्यारे विकल्प ऊठे
छे त्यारे परमार्थे तो ते राग वखते पोताना ज्ञानमां निक्षेप करीने भगवाननी स्थापना करे छे, अने बहारमां
प्रतिमा वगेरेमां भगवाननी स्थापनानो निक्षेप करवो ते उपचार छे. यथार्थ ज्ञान वगर व्यवहार केवो होय
तेनी खबर पडे नहि. मूर्ति तरफनी वृत्ति ते मनोगत परिणम छे, विकल्प छे, पण आत्म परिणाम नथी. मनथी
विकल्प ऊठे अने अशुभभाव टाळी शुभभाव थाय तथा प्रतिमा प्रत्ये लक्ष जाय त्यारे प्रतिमामां भगवाननी
स्थापना थई कहेवाय अने विकल्प तोडी नाखे तो तेने माटे प्रतिमामां निक्षेप नथी. राग अने निमित्तने यथार्थ
जाणनार जे होय तो तेने यथार्थ निक्षेप होय परमार्थ निक्षेप तो पोतामां छे के ‘हुं सिद्ध परमात्मा छुं.’ पण
तेवी दशा थई नथी अने विकल्प ऊठ्यो