आत्मामां सुख छे, तेथी शरीरनो अभाव करीने पण सुखी थवा ईच्छे छे. पैसा वगेरेमांथी सुख लेवा मागे छे
पण तेमां सुख नथी. रप लाख रूपिया पड्या होय, स्त्री–पुत्र होय छतां ज्यां अपमान थाय छे त्यां दुःखी थाय
छे, माटे ते रूपियामां के स्त्री–पुत्रमां क्यांय सुख नथी. बळीने पण सुखी थवा ईच्छे छे एटले शरीर, लक्ष्मी,
स्त्री–पुत्र बधुं चाल्युं जाय तोपण पोते एकलो रहीने पण सुखी थाय छे. पण अज्ञानीने ए वातनो विश्वास
बेसतो नथी के सुख आत्मामां छे, तेथी ते बहारमांथी सुखने गोते छे. अज्ञानी पण बधुं जतुं करीने; एकलो
रहीने सुखी थवा ईच्छे छे पण सुख क्यां छे तेनी ओळखाण नथी. पण अव्यक्तपणे एटलुं तो आवे छे के आ
जे सामग्रीओ पडी छे तेमां सुख नथी. पण ते बधाना अभावमां सुख छे. पर वस्तुओ अने ते प्रत्येनो राग
तथा द्वेष पण जतो करीने सुखी थवा मागे छे. तो पर वस्तुओथी भिन्न तेम ज राग–द्वेष रहित एवो क्यो
पदार्थ छे तेने ओळखे तो तेना आधारे सुख प्रगटे. छ महिनानी बाळकी होय छतां ज्यां अपमान थाय त्यां ते
बाळकीना रागने छोडीने माता बळी मरे छे, ने शरीरना द्वेषने पण जतो करे छे. माटे एम नक्की थयुं के–सुख
नथी तो कोई पर चीज मां; नथी पर चीज प्रत्येना रागमां, के नथी पर चीज प्रत्येना द्वेषमां, पण राग–
द्वेषरहित आत्मानो ज्ञाताद्रष्टा स्वभाव छे, तेमां ज सुख छे.
धर्म छे, एने ज सुख छे.
तो पहेलांं नक्की करवुं जोईए. आत्माना सुख–शांति क्यांय बहारमांथी आवे नहि, रागमांथी न आवे, द्वेषमांथी
न आवे, ने जे दुःखदशा टाळवी छे तेमांथी पण सुख न आवे, सुख तो आत्मामां छे, ते स्वभावनी
ओळखाणथी ज सुख प्रगटे छे.
सुख आवे छे.
पण अंतर तत्त्वमां ज ज्ञान भर्युं छे तेमांथी आवे छे, पण अज्ञानीने तेनो विश्वास नथी आवतो. सुख
आत्माना अंतर स्वभावमां छे. –आ वात समजाववा माटे भगवानना दिव्यध्वनिनो उपदेश छे.
जे वस्तुनी हयाती माने तेने मेळववानो उपाय करे. तेम सुख छे अने ते सुखनो उपाय पण छे एम मान्युं छे
ते सुख मेळववा प्रयत्न करे छे. हवे ते सुख क्यां छे अने ते सुखनो साचो उपाय शुं छे? तेनी आ वात चाले
छे. जे आत्मामांथी अज्ञान अने रागद्वेष टळीने सर्वज्ञता ने वीतरागता थई गई ते परमात्मा छे. जुओ,
जीवोने राग ओछो थतो देखाय छे अने ज्ञान वधतुं देखाय छे, एम जेना रागद्वेष तद्न टळी गया ने पूरुं ज्ञान
थई गयुं एवा वीतराग सर्वज्ञ