Atmadharma magazine - Ank 067
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: १२६ : आत्मधर्म : वैशाख : २४२५ :
आत्मा तो चैतन्य छे, तेने शरीर केवुं ने पैसा केवा? कर्म केवा? आत्मा तो ज्ञानघन चीज छे. एम अंतरमां
ओळखीने एकाग्र थवुं ते ज सुखनुं साधन छे. बधा विकार भावोथी रहित आत्मा प्रकाशमान छे. पुण््य–पाप
होवा छतां श्रद्धा–ज्ञानमां एम आववुं जोईए के ते कोई भावो मारुं स्वरूप नथी. अहो, आत्माना स्वभावना
भान विना जगतने परनी अने पुण्यनी प्रीति छे ते अज्ञान छे. एकवार भरोसामां एम आववुं जोईए के
विकार मारामांथी नीकळी जाय छे माटे ते मारा सुखनुं साधन न होय. अंतरमां जे कायमी ज्ञानानंदी स्वभाव
छे ते ज साधन छे. एने ओळख्या वगर जे त्याग, तप के ज्ञान करे ते बधुं य “छार उपर लींपणुं” जाणो.
पुण्यने लाभदायक माने ते भ्रांति छे, ते भ्रांति मोटुं पाप छे.
आत्मा परवस्तुनो द्रष्टा छे एनो अर्थ ज ए थयो के आत्मा परमां कांई करनारो नथी, जेम थाय तेम
तेने देख्या करे. आत्मा परनुं कांई करे एम जे माने तेणे आत्माने द्रष्टा नथी मान्यो. आ समज्या विना
उपवास, त्याग, क्रियाकांड वगेरे कष्टो सहन कर्यां, पण धर्म न थयो. केम के आत्मा कष्टथी प्राप्त थाय तेम नथी
पण सहज वस्तु छे. अनंतकाळमां चैतन्यनी प्रीति करीने तेने समजवानो प्रयत्न कर्यो नथी. आचार्यदेव कहे छे
के बधा विकारी भावोनो विलय थतां आत्माना ज्ञाननो विकास ने प्रकाश थाय छे, अंतरमां एकाग्र थतां थतां
सम्यग्ज्ञान प्रगटीने केवळज्ञान थाय छे, ए सिवाय बीजा कोई भावोथी मुक्ति थती नथी सर्वे विकारभाव रहित
आत्मानी श्रद्ध–ज्ञान ने एकाग्रता ते समाधि छे. ते आधि व्याधि ने उपाधि ए त्रणेथी रहित समाधि छे. उपाधि
एटले बहारनी वस्तुओ, व्याधि एटले शरीरमां रोग वगेरे ने आधि एटले मनना संकल्प–विकल्प; ते बधाथी
पार चैतन्य–मूर्ति आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रता ते समाधि छे.
जेम आंख स्थिर छे, ने पाणीनां पूर तो दोडयां ज जाय छे, तेम नित्य स्थिर एवा आत्म स्वभावनी
जेने खबर नथी ते जीव अनित्य एवा शरीरादि संयोगो दोडया जाय छे तेने कायम राखवा मथे छे. पण ते एक
सेकंड पण आत्मानां थतां नथी. जीवने परथी भिन्नपणानुं भान नथी तेथी ते परना अहंकारमां अटक्यो छे,
अनादिथी स्व–परनुं भेदविज्ञान एक सेकंड पण कर्युं नथी, अने बहारनी करणीमां धर्म माने छे, तथा कहे छे के
“करणी कांई वांझणी होय नहि”. पण भाई रे, आत्माना भान वगरनी तारी बधी करणी ते विकारी करणी छे,
ने ते संसारमां रखडवानुं कारण छे. पण एक वार परथी भिन्न पोते परमात्म स्वरूप छे. तेनो विश्वास करे तो
सम्यग्ज्ञानरूपी बीजनो चंद्र प्रगटे ने तेमांथी क्रमेक्रमे विकास थतां पूर्ण परमात्मदशा प्रगटे.
माह वद २] [ता. १५–र–४९ बुध


जो ज्ञानशक्तिथी जुओ तो आ जड शरीरथी जुदो चैतन्य आत्मा छे. शरीर जड छे ने हुं चैतन्य छुं–एम
भिन्न जात जाण्या वगर चैतन्यनी द्रढता थाय नहि ने जडनो अहंकार टळे नहि. जेम तलमां तेल छे, परंतु
तलमां पूरी तळाय नहि, पण तलमांथी तेल काढीने पछी तेमां पूरी तळाय छे. पहेलांं तलमां तेल छे एवो
निर्णय कर्या वगर तलमांथी तेल काढवानुं लक्ष थाय नहि, अने तलमां तेल छे एवो निर्णय कर्या पछी तेल
नीकळतां वार लागे छतां तेनां निर्णयमां शंका पडती नथी. तेम आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, तेनामां परमात्मा
थवानुं सामर्थ्य छे. पहेलांं तेनो निर्णय कर्या वगर परमात्मा थवानो उपाय करे नहि. अने शरीरथी भिन्न
परमात्म स्वभावनो निर्णय कर्या पछी परमात्म दशा प्रगट थतां वार लागे तो पण निर्णयमां शंका पडती नथी.
कोई कहे के–कोई जन्ममां एम ने एम कल्याण थई जशे. तो एम कहेनारने पण एटलुं तो आवी ज गयुं
के ‘कल्याण करवा जेवुं छे, कल्याण करवानी रुचि छे.’ –तो कल्याण करवानी रुचि छे तेटली अत्यारे शरूआत
थई छे के नहि? जो खरेखर सारुं करवानी रुचि होय तो वर्तमान कल्याण शुं ने अकल्याण शुं