Atmadharma magazine - Ank 067
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: १३० : आत्मधर्म : वैशाख : २४२५ :
[श्री आचार्यदेवे आ स्वरूपसंबोधन पचीसीमां गूढ अध्यात्मतत्त्व भरी दीधुं छे, अने तेमां स्याद्वाद
शैलीने खूब मलावीने आमतत्त्वनुं वर्णन कर्युं छे; आमां करेल आत्मतत्त्वनुं वर्णन खास समजवा योग्य छे.
मात्र पचीच श्लोकोना आ नानकडा ग्रंथमां नीचेना विषयो सुंदर रीते वर्णव्या छे––
पहेला श्लोकमां मंगलाचरण तरीके आत्मानुं वर्णन करीने तेने नमस्कार कर्या छे. त्यारपछी नव श्लोको
द्वारा आत्मानुं स्वरूप स्याद्वादद्रष्टिथी घणी सुंदर रीते वर्णव्युं छे. पछी एवा आत्मस्वरूपनी प्राप्तिना उपायनुं
वर्णन ११ थी १प सुधीना पांच श्लोकोमां कर्युं छे. त्यार पछीना पांच श्लोकोमां आत्मचिंतवनमां तन्मय रहेवानी
प्रेरणा करी छे. अने त्यार पछीना चार श्लोकोमां मोक्षार्थी जीवे शुं करवुं जोईए ते जणाव्युं छे, तेमां कह्युं छे के–
परमानंदमय आत्मसुख आत्माधीन होवाथी सुलभ छे माटे मोक्षार्थीओए आत्मध्यानथी उत्पन्न एवा
परमानंदपदने प्राप्त करवुं जोईए. छेवटे पचीसमा श्लोकमां उपसंहार करतां आ ग्रंथनो महिमा जणाव्यो छे के आ
स्वरूप–संबोधन पचीसीमां वर्णवेला आत्मतत्त्वनी जे भावना करशे ते परमार्थ संपत्ति (मोक्ष दशा) प्राप्त करशे.
–मुमुक्षुओ आ स्वरूप–संबोधन पचीसीमां वर्णवेला आत्मतत्त्वने ओळखीने पोते पण स्वरूपनुं
संबोधन करो.]
× × ×
मंगलाचरण
(अनुष्टुप)
मुक्ताऽमुक्तैकरूपो यः कर्मभिः संविदादिना ।
अदयं परमात्मानं ज्ञानमूर्ति नमामि तम् ।।
१।।
सामान्य अर्थ:– जे पोताना ज्ञानादि गुणोथी अमुक्त छे अने कर्मोथी मुक्त छे तथा जे एकरूप अक्षय छे
एवा ज्ञानमूर्ति परमात्माने हुं नमस्कार करुं छुं.
भावार्थ:– श्री आचार्यदेवे मंगलाचरण तरीके आत्मस्वरूपने ज नमस्कार कर्या छे. आत्मा पोताना ज्ञान,
सुख वगेरे गुणोथी कदी छूटतो नथी तेथी ते पोताना गुणोथी अमुक्त स्वरूपी छे; अने आत्मस्वभाव शरीरादि
नोकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म तथा रागद्वेषादिक भावकर्मोथी सदाय जुदो छे तेथी ते मुक्त–स्वरूपी छे. ए रीते
आत्मा कथंचित् मुक्त–अमुक्त स्वरूपी छे; आम कहीने आचार्यदेवे स्याद्वाद सिद्ध कर्यो छे. वळी ते आत्मस्वरूप
सदाय एकरूप छे, तेनो कदी नाश नथी तेथी ते अक्षय छे. पोते बीजा बधाथी जुदो छे अने पोताथी एकमेक छे
तेथी एक छे. पोते पोताथी ज परिपूर्ण छे, आत्मस्वभावथी ऊंचुं बीजुं कांई नथी तेथी ते ज परमात्मा छे; ते
सदाय ज्ञाननी मूर्ति छे. आवा पोताना आत्मस्वरूपने ओळखीने तेने नमस्कार कर्या छे.
आ ग्रंथनुं नाम ‘स्वरूप–संबोधन’ छे. स्वरूप संबोधन एटले स्वरूपनी जागृति करवी ते. पोतानुं शुद्ध
आत्मस्वरूप जेवुं छे तेवुं जाणवुं अने ते तरफनी जागृति करवी तेनुं नाम ज स्वरूपनुं संबोधन छे. ते माटे
सौथी पहेलांं ‘स्वरूप’ शुं छे तेनो सम्यक्बोध करवो जोईए. स्वरूपनो बोध कराववा माटे पहेली ज गाथामां
तेनुं वर्णन करीने तेने नमस्कार कर्या छे.
जेवुं पोतानुं स्वरूप छे तेवुं तेने जाणीने, पछी वारंवार तेनुं संबोधन करवाथी–जागृति करवाथी जे पोतानुं
स्वरूप छे ते ज रही जाय छे ने पोतानुं स्वरूप नथी ते बधुं छूटी जाय छे एटले के आत्मानी मुक्तदशा थाय छे.
घणा अज्ञानी जीवो आत्माने कर्मवाळो ज मानता होय छे, तेथी अहीं ‘आत्मा कर्मथी मुक्तस्वरूपी छे’
एम समजाव्युं छे. केटलाक जीवो आत्माने गुणवगरनो (निर्गुण) माने छे तेथी अहीं ‘आत्मा पोताना गुणोथी
अमुक्त स्वरूप छे’ एम समजाव्युं छे. आत्मा पोताना गुणोथी कदी छूटयो नथी तेथी पोतानी निर्मळदशा प्रगट
करवा माटे कोई बहारनो आश्रय नथी पण पोताना गुणोने ओळखीने तेनो आश्रय करवाथी निर्मळदशा प्रगट
थाय छे. केटलाक जीवो आत्माने क्षणिक ज माने छे तेथी अहीं ‘आत्मस्वरूप अक्षय छे’ एम समजाव्युं छे.
केटलाक जीवो आत्मा अने परमात्मा जुदा छे एम माने छे तथा परमात्मदशा थाय एटले