Atmadharma magazine - Ank 068
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 16 of 17

background image
: जेठ : २४७५ : आत्मधर्म : १५३ :
(अनुसंधान टाईटल पान – २ थी चालु)
परनुं कांई करे तेवी त्रेवड नथी पण जाणवानी अपार शक्ति छे.
अज्ञानीने एम लागे के अमारे चा अने बीडी वगर चाले नहि, ने अमारामां आटली बधी शक्ति केम होय?
पण भाई, तने तारा स्वभावनी खबर नथी. तेथी तने एम लागे छे के चा–बीडी वगर न चाले. हुं उगामेडीनो अने
हुं फलाणा गामनो–एम माने छे, पण भाई, आत्मा कोई गामनो नथी. आत्मानुं स्वरूप तो बधाने जाणे तेवुं छे.
पहेलांं जो आवो निर्णय करे तो धर्म थाय छे.
जेम आ माता छे, अने आ स्त्री छे–एम निर्णय कर्यो त्यां जनेता तरफनी विकारीद्रष्टि फरी गई, तेम आत्मा
कोण ने विकार कोण–तेनी ओळखाण करे तो द्रष्टि फरी जाय के विकार मारुं स्वरूप नथी, हुं तो ज्ञानस्वरूप छुं. एम जो
निर्णय करे तो ज्ञाननी मर्यादा ओळंगीने आघो न चाले. आत्माने पर साथे जाणवापूरतो ज संबंध छे. ज्ञानस्वरूपी
आत्मा बधानो जाणनार छे, ते सिवाय तेनो करनार माने तो ते अज्ञानी छे. आत्मामां पुण्य–पापना भावो थाय ते
पण आत्मानुं स्वरूप नथी पण आत्मा तेनो जाणनार छे. दया–दानादिना के हिंसादिना भावो थाय पण ते ज्ञाननुं
स्वरूप नथी, तेनी साथे जाणवापूरतो संबंध छे–एम जाणे तो आत्मामां सद्बोधरूपी चंद्रमा ऊगे. जेम कोई स्त्रीने
जोतां विकार थाय पण ज्यां ओळखाण थई के आ तो मारी बेन थाय छे! त्यां तरत ज विकार द्रष्टि टळी गई के
आनी साथेनो मारो संबंध भाई–बहेननो छे, तेम अनंत काळथी आत्माने भूली गयो छे, ने पर साथे संबंध मानी
बेठो छे. पण ज्यां भान थयुं के आत्मा तो ज्ञानस्वरूप छे, ने पदार्थो तो जाणवापुरता छे ते जुदा छे. एम ज्यां
ओळखाण थई त्यां परने करवानुं के भोगववानुं अभिमान टळ्‌युं. ज्ञान साथेना संबंधनी ओळखाण थतां पर साथेनो
संबंध तूटयो; अने भाई–बहेननी जेम मात्र ज्ञाता–ज्ञेय तरीके संबंध रह्यो.
आत्मानो स्वभाव वाणीथी पार छे. आ वाणी ते ज्ञान नथी, वाणी तो जड छे. वाणीवडे ज्ञान अपातुं नथी.
जेम घीनो स्वाद ज्ञानथी जणाय छे पण वाणीथी पूरो कहेवातो नथी तेम आत्मानो स्वभाव ज्ञानथी जणाय छे, पण
वाणीथी पूरो कहेवाय तेवो नथी. हजार वाणी भेगी थाय तोय ते पूरो कही शकाय नहि. श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–
जे पद श्री सर्वज्ञे दीठुं ज्ञानमां कही शक्या नहि ते पण श्री भगवान जो.
तेह स्वरूपने अन्यवाणी तो शुं कहे, अनुभवगोचर मात्र रह्युं ते ज्ञानजी........
आवो वचनातीत ज्ञानस्वभाव छे; ज्ञानस्वभावी आत्मानो एवो महिमा छे के बधी वाणी भेगी थाय तोय
तेनो महिमा पूरो न कही शके. एवा आत्माने ओळखो. ए विना बधुं नकामुं छे.
“ज्यां लगी आतमा तत्त्व चिन्यो नहि. त्यां लगी साधना सर्व जुठ्ठी” आत्माने जाण्या विना “अरिहंत,
अरिहंत” एवा जाप करे तोय धर्म थाय नहि. पात्र जीवने ज्ञानीना समागमे आत्मा जणाय छे. अनंत काळमां
आत्माने एक सेकंड मात्र जाण्यो नथी. एक सेकंड पण आत्माने जाणे अने कल्याण न थाय एम बने नहि माटे
आत्मानी ओळखाण करो.
वीतराग थया पहेलांं शुभभाव तो थाय पण तेने धर्म मानी लेवो ते अज्ञान छे. ज्ञानीने शुभराग थाय तेने
ते धर्म माने नहि. तीथ्थरा मे पस्सीयंतु एटले हे तीर्थंकरो मारा उपर प्रसन्न थाओ–एम बोलवानी रीत छे, कांई
भगवान कोई उपर प्रसन्न थता नथी, पण पोते भगवान प्रत्ये नम्रताथी तेम बोले छे. आत्मानुं साचुं ज्ञान करे तो
विकारनी रुचि छूटी जाय. आत्माना साचा ज्ञाननो प्रयत्न करो; भाई! आ देह तो छूटी जशे, तेनाथी छूटो आत्मा छे
तेनी ओळखाण करो.
जीभ अने वाणी तो जड छे, तेने कांई खबर पडती नथी. साकर गळी छे एम कांई जीभ नथी जाणती, पण
ज्ञान ज तेने जाणे छे. लोकोमां मृत्यु टाणे मरनारने शांति थाय ते माटे साकर खाय छे. पण खरेखर ते साकरथी
आत्माने शांति नथी थती, पण आत्मा चिदानंद मूर्ति छे, निर्मळ छे–एवा आत्मानी ओळखाण रूपी अमृत पीए तो
आत्मा एकावतारी थाय. हे भाई! आ वात ताराथी समजाय तेवी छे, सत्समागमे आत्मानी ओळखाण करवा मागे
तो सौ करी शके तेम छे. ज्यारे ज्यारे तेनुं भान करवा मांगे त्यारे तुं करी शके छे. एवुं आत्मानुं भान जयवंत वर्ते छे.
तुं समजवानो प्रयत्न कर, तो तारो जय थशे. आ काळे पण तारो जय थशे. आत्मा सदाकाळ आ लोकमां जयवंत वर्ते
छे. एनी ओळखाणनो प्रयत्न कर, रुचि कर. कर्मो तने नडता नथी. जगतमां बधा परनो दोष काढे छे. भूवो कहे भूत
नडे छे, जोशी कहे पनोती नडे छे, अज्ञानी कहे–कर्म नडे छे, ने ज्ञानी कहे छे–हे भाई तने कोई पर नडतुं नथी पण तारी
ज भूल ज तने नडे छे. तुं आत्माने समजवानो प्रयत्न कर, तो तारो जय ज छे.
मुद्रक: चुनीलाल माणेकचंद रवाणी. शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, सौराष्ट्र ता. ४ – ६ – ४९
प्रकाशक: श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया, सौराष्ट्र