रेलावी रह्या छे, अने पोतानुं ऊंडुं आध्यात्मिक ज्ञान भव्य जीवोने आपी रह्या छे; तेथी आजे सौराष्ट्रमां ठेर ठेर
तत्त्वचर्चा चाले छे अने अनेक पात्र जीवो साचुं तत्त्व ज्ञान समजता थया छे. जेम जेम लोको सत्य तत्त्वज्ञान
समजता जाय छे तेम तेम श्रीवीतराग शासनना देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये तेमने बहुमान अने भक्ति जागता जाय
छे. अने श्री वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनी प्रभावना दिन दिन वधती जाय छे. एना परिणामे सौराष्ट्रमां अनेक
स्थळे श्रीवीतरागी जिनबिंबनी स्थापना थई छे ने थती जाय छे; तेम ज श्री गुरुभक्ति अने शास्त्र प्रचार पण
वधता जाय छे. ए रीते सौराष्ट्र देशमांथी श्रीजिनेन्द्र शासनना जयनाद गाजी रह्या छे.
वैशाख वद ११ थी प्रतिष्ठाविधि शरू थई हती. सवारमां भगवान श्री महावीर प्रभुनी श्रीमंडपमां पधरामणी
थई अने श्री समवसरण मंडलविधाननी शरूआत थई, तथा सवा लाख जापनी शरूआत थई. वद १२ तथा १३
ना रोज समवसरण मंडलनुं पूजन चालु रह्युं. वद १३ ना रोज बपोरे लाठीना भाईश्री छगनभाई अने
भवानभाईए पोत पोताना धर्मपत्नी सहित पू. गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी. रात्रे
भक्ति भावना थई हती.
पवित्र गुणोनुं स्मरण–पूजन ने बहुमान करे छे. रात्रे बाळकोए ‘चालो, दादाने दरबार” ए विषयनो
वैराग्यगर्भित संवाद भजव्यो हतो. भरत महाराजाना नानी नानी उंमरना पुत्रो रमवा गया छे. त्यां तत्त्वचर्चा
करी रह्या छे; एवामां सेनापति जयकुमारनी दीक्षाना समाचार सांभळीने ते बधा बाळको त्यां ज वैराग्य पामे छे
अने दीक्षा लईने मुनि थवा माटे त्यांथी सीधा भगवान श्री आदिनाथ प्रभुश्री समवसरणमां एटले के दादाना
दरबारमां चाल्या जाय छे–एवुं वैराग्य द्रश्य संवादमां बताववामां आव्युं हतुं, ए उपरांत डांडियारास साथे भक्ति
थई हती.
हतो. रात्रे गर्भकल्याणिकनी पूर्व क्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं; तेमां श्रीशांतिनाथ प्रभु माताना गर्भमां आव्या पहेलांं
छ महिना सुधी रत्नवर्षा अने देवो द्वारा मातानी सेवा वगेरे द्रश्य हतुं, जेठ सुद बीजने दिवसे सवारे गर्भ
कल्याणिकनुं द्रश्य हतुं. तेमां माताजीने १६ स्वप्नो आवे छे, दिग्कुमारी देवीओ माताजीनी सेवा करे छे, माताने
तत्त्वचर्चाना प्रश्नो पूछे छे ने माताजी तेना विद्वत्ता भरेला जवाबो आपे छे तथा देवो माता–पिताने वस्त्रोनी
भेट करे छे–ए वगेरे द्रश्यो थया हता. प्रतिष्ठाविधि करावनार पंडितजी प्रसंगोचित विवेचन करीने दरेक
प्रसंगनी समजण आपता हता.
श्रीतलकचंदभाईए एक प्रसंगोचित काव्यद्वारा पोतानी भक्तिभावना व्यक्त करी हती. रात्रे बाळकोनो संवाद
“चालो दादाने दरबार” ए फरीथी थयो हतो.