Atmadharma magazine - Ank 069
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४७५ : आत्मधर्म : १६१ :
श्री पंचकल्याणिक
वर्तमानमां सौराष्ट्रदेशमां श्री जिनेन्द्र शासननी प्रभावनानो महान सुअवसर प्रवर्ती रह्यो छे परम
पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामी पोतानी भगवती वाणी वडे उपदेश आपीने सौराष्ट्रमां श्रुतगंगानो प्रवाह
रेलावी रह्या छे, अने पोतानुं ऊंडुं आध्यात्मिक ज्ञान भव्य जीवोने आपी रह्या छे; तेथी आजे सौराष्ट्रमां ठेर ठेर
तत्त्वचर्चा चाले छे अने अनेक पात्र जीवो साचुं तत्त्व ज्ञान समजता थया छे. जेम जेम लोको सत्य तत्त्वज्ञान
समजता जाय छे तेम तेम श्रीवीतराग शासनना देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये तेमने बहुमान अने भक्ति जागता जाय
छे. अने श्री वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनी प्रभावना दिन दिन वधती जाय छे. एना परिणामे सौराष्ट्रमां अनेक
स्थळे श्रीवीतरागी जिनबिंबनी स्थापना थई छे ने थती जाय छे; तेम ज श्री गुरुभक्ति अने शास्त्र प्रचार पण
वधता जाय छे. ए रीते सौराष्ट्र देशमांथी श्रीजिनेन्द्र शासनना जयनाद गाजी रह्या छे.
जेठ सुद प–श्रुतपंचमीना मंगळ दिवसे श्री लाठी शहेरमां भगवान श्री सीमंधरादि जिनदेवना वीतरागी
प्रतिमानी पंचकल्याणिक प्रतिष्ठानो महोत्सव हतो. ए महामंगळ प्रसंगे पू. गुरुदेवश्री लाठीमां पधार्या हता.
वैशाख वद ११ थी प्रतिष्ठाविधि शरू थई हती. सवारमां भगवान श्री महावीर प्रभुनी श्रीमंडपमां पधरामणी
थई अने श्री समवसरण मंडलविधाननी शरूआत थई, तथा सवा लाख जापनी शरूआत थई. वद १२ तथा १३
ना रोज समवसरण मंडलनुं पूजन चालु रह्युं. वद १३ ना रोज बपोरे लाठीना भाईश्री छगनभाई अने
भवानभाईए पोत पोताना धर्मपत्नी सहित पू. गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी. रात्रे
भक्ति भावना थई हती.
वैशाख वद १४: सवारे मृत्तिकानयनविधि थयो. व्याख्यान बाद हरिचंदभाईए सजोडे ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
लीधी. बपोरे अंकूरारोपण विधि थई. आवा विधविध प्रसंग निमित्ते खरेखर तो भक्तो भगवान श्री जिनदेवना
पवित्र गुणोनुं स्मरण–पूजन ने बहुमान करे छे. रात्रे बाळकोए ‘चालो, दादाने दरबार” ए विषयनो
वैराग्यगर्भित संवाद भजव्यो हतो. भरत महाराजाना नानी नानी उंमरना पुत्रो रमवा गया छे. त्यां तत्त्वचर्चा
करी रह्या छे; एवामां सेनापति जयकुमारनी दीक्षाना समाचार सांभळीने ते बधा बाळको त्यां ज वैराग्य पामे छे
अने दीक्षा लईने मुनि थवा माटे त्यांथी सीधा भगवान श्री आदिनाथ प्रभुश्री समवसरणमां एटले के दादाना
दरबारमां चाल्या जाय छे–एवुं वैराग्य द्रश्य संवादमां बताववामां आव्युं हतुं, ए उपरांत डांडियारास साथे भक्ति
थई हती.
वैशाख वद ०) ) नी सवारे श्री समवसरणमंडलविधान पूर्ण थईने श्रीजिनेन्द्र अभिषेक थयो हतो.
अभिषेकनुं जळ भरवा माटे जलयात्रानो वरघोडो नीकळ्‌यो हतो तथा ध्वजदंड, कळश अने वेदीशुद्धि थई हती.
जेठ सुद एकमथी पंचकल्याणिकनी शरूआत थई हती. प्रतिष्ठामां मूळनायक श्रीसीमंधर भगवान हता
अने विधिनायक श्री शांतिनाथ प्रभु हता. एकमना दिवसे ईन्द्र प्रतिष्ठा थई अने तेनो भव्य वरघोडो नीकळ्‌यो
हतो. रात्रे गर्भकल्याणिकनी पूर्व क्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं; तेमां श्रीशांतिनाथ प्रभु माताना गर्भमां आव्या पहेलांं
छ महिना सुधी रत्नवर्षा अने देवो द्वारा मातानी सेवा वगेरे द्रश्य हतुं, जेठ सुद बीजने दिवसे सवारे गर्भ
कल्याणिकनुं द्रश्य हतुं. तेमां माताजीने १६ स्वप्नो आवे छे, दिग्कुमारी देवीओ माताजीनी सेवा करे छे, माताने
तत्त्वचर्चाना प्रश्नो पूछे छे ने माताजी तेना विद्वत्ता भरेला जवाबो आपे छे तथा देवो माता–पिताने वस्त्रोनी
भेट करे छे–ए वगेरे द्रश्यो थया हता. प्रतिष्ठाविधि करावनार पंडितजी प्रसंगोचित विवेचन करीने दरेक
प्रसंगनी समजण आपता हता.
व्याख्यान बाद लाठीना शेठ श्री लालजीभाई, तलकचंदभाई, मगनभाई अने जमनादासभाई–ए
चारेए पोत पोताना धर्मपत्नी सहित ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी हती. ब्रह्मचर्यविधि बाद
श्रीतलकचंदभाईए एक प्रसंगोचित काव्यद्वारा पोतानी भक्तिभावना व्यक्त करी हती. रात्रे बाळकोनो संवाद
“चालो दादाने दरबार” ए फरीथी थयो हतो.