Atmadharma magazine - Ank 069
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: १६२ : आत्मधर्म : अषाड : २४७५ :
जन्म कल्यणक महत्सव
जेठ सुद ३ ना रोज सवारे ६।। थी ९।। सुधी जन्म कल्याणिक महोत्सव थयो हतो. ए प्रसंग घणा
उत्साहथी भव्य रीते उजवायो हतो. सवारमां श्री अचिरा माताजीनी कुंखे भगवान श्री शांतिनाथनो जन्म थाय
छे, देवीओ भगवानना जन्मनी वधाई आपे छे ने चारे बाजु मंगळनाद गाजी ऊठे छे. प्रभुजन्मनां उत्साहमां
देवांगनाओ नृत्य करे छे. ईन्द्र–ईन्द्राणी जन्मोत्सव करवा आवे छे अने बाळ भगवान शांतिकुमारने मेरू पर्वत
उपर लई जाय छे. जन्माभिषेक करवा माटे भगवानने मेरू उपर जती वखतनो महान भव्य वरघोडो नीकळ्‌यो
हतो. पू. गुरुदेवश्री, ईन्द्रध्वज, चांदीना रथमां समयसारजी तथा भक्तिथी नाची रहेला मुमुक्षुसंघनी वच्चे हाथी
उपर बाल–प्रभुजी बिराजता हता. चारे बाजु ईन्द्र–ईन्द्राणीओ भक्ति करता हता. अमरविलासमां मेरू पर्वतनी
रचना करवामां आवी हती. त्यां पहोंच्या बाद मेरू पर्वतने त्रण प्रदक्षिणा करी. ए वखते जयकार ध्वनिथी
वातावरण गूंजतुं हतुं. पछी भगवानने मेरू उपर बिराजमान करीने ईन्द्रोए जन्माभिषेक शरू कर्यो.
क्षीरसमुद्रमांथी कळश भरी भरीने देवो ईन्द्रोने आपे छे ने ईन्द्रो अभिषेक करे छे. ए वखते अभिषेक करवा माटे
उल्लसी रहेला भक्तोना टोळांने मेरू पर्वत पण नानो पड्यो हतो! मेरू उपर बिराजमान ए बाळकनी दिव्य मुद्रा
जोतां भक्तोने अंतरमां एम थतुं हतुं के; “अहो, आ आत्माए जन्म पूरा करी लीधा, हवे एने फरीथी आ
संसारमां जन्म नहि थाय. एक छेल्लो जन्म हतो ते
पूरो करीने भगवान जन्म रहित थई गया. अपूर्व
आत्मदर्शनना प्रतापे तेमने जन्म मरणनो अंत
आव्यो; एवा भगवानना भवरहितपणाना आ
महोत्सव उजवाय छे.” जन्माभिषेक बाद ईन्द्राणीए
प्रभुने वस्त्रालंकार पहेराव्या. अने पछी
जन्माभिषेकनी महारथयात्रा पाछी फरी. पाछा
आव्या बाद ईन्द्र ‘अब तो मिले जगतके नाथ’ एवी
स्तुति सहित प्रभु सन्मुख तांडवनृत्य कर्युं.
“शांतिकुंवर झुले पारणीये.”
बपोरे भगवान शांतिकुमारनुं पारणुं झूलाववानी क्रिया थई. चांदीना पारणिये झुली रहेला ए
भगवानने जोतां एम थतुं हतुं के ‘अहा! आ पारणे झुलता बाळकनो आत्मा ज्ञानी छे, ए मोटो थईने मुनि
थशे ने आत्माना आनंदमां झुलतां झुलतां संसारथी मुक्त थशे.’
रात्रे युवराजश्री शांतिनाथकुमारनो राज्याभिषेक थयो. विश्वसेन महाराजाए पोतानो राजमुगट
उतारीने श्रीशांतिनाथकुमारने पहेराव्यो. श्रीशांतिनाथभगवान कामदेव, चक्रवर्ती अने तीर्थंकर–ए त्रण महान
पदवीओना स्वामी हता. थोडीवार पछी महाराजा शांतिनाथ भगवाननो राजदरबार भरायो. राजदरबारनो
देखाव घणो भव्य हतो. राजदरबारनी मध्यमां चक्ररत्न शोभी रह्युं हतुं. राज दरबारमां देशो–देशना राजा–
महाराजाओ आवता हता अने उत्तम प्रकारनी वस्तुओ लावीने भगवानने भेट धरता हता.
दादाना दरबारमां
[भरतजीना वैरागी पुत्रो दीक्षा लेवा माटे भगवाना समसरणमां जाय छे त्यारे बोले छे]
चालो, दादाने दरबार.... मारा मुक्तिमां घरबार....
मारे जावुं पेले पार.... मारे मारो छे आधार....
मने गमे नहि संसार.... माटे छोडु सब संसार....
चालो, दादाने दरबार.... चालो, दादाने दरबार....
–बाळकोना संवादमांथी.