आधारे ज्ञाननी निर्मळता थतां थतां एक समयमां बधुंय प्रत्यक्ष जाणे एवुं ज्ञान प्रगटे. अंतरमां पोताना
स्वभावने जुए नहि ने बहारमां पर सामे जोया करे ते जीव बहिरद्रष्टि छे, तेने ज्ञाननी निर्मळता थती नथी.
तेनुं कार्य लंबाय छे. ज्ञाननी अवस्था तो एकेक समयनी ज छे पण तेना उपयोगनुं कार्य असंख्य समय सुधी
लंबाय एवी तेनी लायकात छे. जे ज्ञाननो उपयोग राग सहित तेने एक समयमां आखी वस्तु लक्षमां आवती
समयनुं छे–ज्ञान एकेक समये परिणमे छे छतां ते ज्ञाननो उपयोग एकेक समयमां जाणवानुं कार्य न करे तो ते
ज्ञान भेदावळुं छे, स्वभावमां पूरुं अभेद थईने ते ज्ञान कार्य करतुं नथी. पर्यायरूपे ज्ञाननी हयाति एक
समयनी छे पण ज्ञाननो उपयोग असंख्य समयनो छे. ते ज्ञान जो स्वभाव तरफ वळे तो साधक थईने
मलिनता अने निर्मळतानो विवेक करी शके, पण एकेक समयनी मलिनताने के निर्मळताने जाणी शके नहि; तेम
ज ज्ञानादि गुणोमां एकेक समयनुं परिणमन छे–एम सामान्यपणे ज्ञानना ख्यालमां आवे पण एकेक समयने
ते ज्ञान पकडी शके नहि. तो पछी ज्ञान आहारादि परवस्तुने के रागने तो त्रण काळमां छोडे मूके नहि.
जड छे, तेमां कांई आत्मा रहेलो नथी. ते भाषानी पाछळ ज्ञाननो शुं आशय हतो ते आशयने समजे तो ते
केवळी भगवानने, ज्ञानीओने अने शास्त्रने समज्यो कहेवाय; मात्र भाषाना शब्दोने ज पकडे तो तेने ज्ञानीना
कथननो आशय समजाय नहि. अनंत गुणना पिंड आत्माने पकडे नहि ने मात्र भाषाने पकडे तो तेणे
निमित्तनी अपेक्षाए परवस्तुने लेवा–मूकवानां कथनो आवे, पण ‘आत्मा परवस्तुमां जरा पण ग्रहण–त्याग
करी शकतो नथी’ एवो वस्तुस्वभाव छे ते लक्षमां राखीने तेनो आशय समजवो जोईए.
एक समयने जाणतुं नथी. बहारमां प्रभु पासे चोखा मूकवा वगेरे क्रिया तो कोई आत्मा स्वभावथी के विकारथी
पण करवा समर्थ नथी. हुं परनुं करुं–एवी ऊंधी मान्यताथी के राग–द्वेषथी पण परवस्तुने तो जीव कांई ज करी
शकतो नथी. अज्ञानी जीव रागादिने ज पोतानुं स्वरूप माने छे तेथी रागथी जुदो पडीने श्रद्धारूपे आत्मामां
अभेद थतो नथी, अने ज्ञानीए श्रद्धाथी तो आत्मस्वभावमां अभेदपणुं प्रगट कर्युं छे पण हजी स्थिरताथी
आत्मामां अभेदपणुं थयुं नथी त्यां सुधी तेने राग थाय छे; परंतु अज्ञानी के ज्ञानी रागना सामर्थ्यथी पण
परमां कांई ग्रहण–त्याग करवा असमर्थ छे. आत्मा वडे परनुं ग्रहण–त्याग थवुं अशक्य छे. आवा
विशुद्धता वधती जाय, राग टळतो जाय अने निमित्तरूप कर्मो खरतां जाय. –आ ज संवर–निर्जरारूप धर्म छे, ने
आ ज मोक्षनो मार्ग छे.
स्वभावमां वाळीने