समयनी अस्तित्वताने पण पकडी शकतो नथी; अने जे राग थाय छे ते एकेक समये बदले छे, ते एकेक
समयनी राग अवस्थाने पण ज्ञाननो उपयोग पकडी शकतो नथी––जाणी शकतो नथी, तो ते ज्ञान परद्रव्यनी
एकेक समयनी अवस्थाने पकडे एम त्रणकाळमां बनतुं नथी.
एकेक समयनी अवस्थाने जुदी पाडीने ज्ञाननुं वर्तमान कार्य जाणी शकतुं नथी. हे अज्ञानी! तु ज्ञाननुं वर्तमान
कार्य सामा पदार्थनी एकेक समयनी अवस्थाने जुदी पाडीने जाणतुं पण नथी, तो पछी तारुं थान ते पदार्थोमां
कांई करे के पकडे–एम केम बने?
पकडी शके छे. पोतामां पण श्रद्धा वगेरे गुणो एकेक समये कार्य करे छे. परंतु ते श्रद्धा एकेक समयनी अवस्थाने
पण ज्ञाननो उपयोग जाणी शककतो नथी. ज्ञान–दर्शन उपयोग एकेक समये कार्य करे छे पण ते पोते पोताना
एकेक समयना परिणमनने पकडी शकतो नथी; तो पछी आत्मा परने पकडे एम तो त्रणकाळमां बनतुं नथी.
बदलीने अवस्था धारण करे छे, तेना स्पर्शादि अनंतगुणोनी एकेक समयनी अवस्थाओ छे; ते तो ज्ञनना
ख्यालमां आवतुं नथी. ज्यारे घणा समय एवुं ने एवुं स्थूळ परिणमन रहे छे त्यारे मांड ज्ञानना ख्यालमां ते
आवे छे. ज्ञानमां परद्रव्यनी एक अवस्थाने लक्षमां लेवा जाय छे त्यां तो ते द्रव्यमां असंख्य पर्यायो पलटी जाय
छे. तो ज्ञान तेने कई रीते पकडे? पदार्थना स्थूळ रूपनो जे ख्याल आवे छे ते यथार्थ क्यारे कहेवाय? अज्ञानीनो
उपयोग तो परपदार्थमां एकत्वपणे काम करे छे तेथी तेने तो यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. ज्ञानीने स्वभावनी श्रद्धा
ने रुचिना जोरे रागनो अभाव थई, ज्ञाननुं आत्मस्वभावमां एकत्व थतां द्रव्य–गुण–पर्याय अभेद थईने कार्य
करे छे, तेथी तेनुं ज्ञान यथार्थ जाणे छे.
लंबाय छे, उपयोगनुं परिणमन तो एकेक समयनुं ज छे पण तेमां असंख्य समय सुधी तेनुं कार्य लंबाय छे;
श्रद्धा–चारित्र वगेरे गुणोमां तेम थतुं नथी, श्रद्धा वगेरेनुं कार्य एकेक समयनुं ज छे, एक समय पछी बीजो
समय तेनुं कार्य लंबातुं नथी. छद्मस्थजीवने ज्ञाननो उपयोग असंख्य समयनो छे, ते उपयोग जो परलक्षे जाणे
तो तेना एकेक समयने पकडी शके नहि. पण ते उपयोग जो पोताना स्वभावमां एकाग्र थाय तो ज्ञाननी शुद्धता
वधतां वधतां एकेक समयने पण पकडी शके अने पोते एकेक समयमां कार्य करे–एवुं सामर्थ्य प्रगटे अर्थात्
केवळज्ञान थाय. परंतु पोताना स्वभावनुं लक्ष करीने एकाग्र थया सिवाय ज्ञाननो उपयोग एकेक समयनी
अवस्थाने जाणी शके नहि अने ते उपयोग पोते एकेक समयमां जाणवानुं कार्य करी शके नहि. आ रीते आत्मा
एकेक समयनी पोतानी अवस्थाने पण पकडी शकतो नथी अने पर चीजनी एक समयनी वर्तमानदशाने पण
जाणी शकतो नथी. परथी भिन्न रहीने पण ज्ञानमां परने जाणी शकतो नथी, तो ते राग करीने के पर साथे
एकमेक थईने परने पकडे–एम तो बने ज नहि. अज्ञानी जीव पोताना उपयोगने आत्मामां वाळीने
आत्मस्वभावने श्रद्धामां न ग्रहतां, पर वस्तुने ग्रहण करवानी रुचिथी अनंत पर पदार्थना कर्तृत्वनुं अभिमान
करे छे, ने तेथी संसारमां रखडे छे. साधक ज्ञानीने जाणवानुं तो स्थूळ कार्य छे, एकेक समयने ते जाणी शकता
नथी, छतां श्रद्धामां तो एकेक समये पूरुं जाणे एवा आत्म स्वभावने पकड्यो छे; श्रद्धागुणना एकेक समयना
परिणमनने उपयोग पकडी शकतो नथी. परंतु श्रद्धा तो एकेक समये पूरा आत्मस्वभावनी प्रतीतिनुं कार्य करे ज
छे. ते श्रद्धा वगेरेना