Atmadharma magazine - Ank 070
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 17

background image
: १७८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४७५ :
ठर्युं ते वखते खरेखर राग होतो ज नथी तो ते छोडे कोने? आ रीते स्वभावमां एकाग्र थयेलुं ज्ञान रागने पण
छोडतुं नथी तो पछी आत्मा शरीरने छोडे, आहारने छोडे, वस्त्र पैसा वगेरेने छोडे–ए वात तो क्यां रही?
ज्ञानथी के रागथी पण परनो त्याग करवानुं वस्तुस्वभावमां नथी.
ज्ञानमूर्ति आत्मानो वर्तमान असंख्य समयनो रागवाळो उपयोग छे; श्रद्धा वगेरे गुणोनुं कार्य एकेक
समयनुं होवा छतां ज्ञाननो उपयोग तेने जाणी शकतो नथी. ते उपयोग स्वभावमां वळतां ज्ञाननी निर्मळदशा
समये समये वधती जाय छे, अने एकेक पर्यायने पूर्ण पकडे एवो निर्मळ उपयोग प्रगटे छे. एक पर्यायने पूर्ण
पकडतां केवळज्ञान थई जाय छे, पण पर्यायना लक्षे पर्यायने री पकडाती नथी, अभेद द्रव्यस्वभावमां ढळतां
एकेक पर्यायने जाणे–एवुं केवळज्ञान प्रगटे छे. ज्यां स्वभावमां एकता करीने ज्ञान कर्युं त्यां ज्ञान आत्माने ग्रहे
एवो भेद पण नथी.
(११) अनादिकाळथी एक समय मात्र पण जीवे पोताना अंतरमां आत्मानी रुचिथी विचार कर्यो नथी.
पोतानुं ज्ञानस्वरूप शुं छे तेनुं भान नथी तेथी परमां ग्रहण–त्याग करवानुं माने छे, ने तेथी संसारमां रखडे छे.
हे भाई, तारा वर्तमान ज्ञानमां परनी एक समयनी वर्तमान अवस्थाने जाणवानी पण ताकत नथी, तो पछी
आहारादि परद्रव्यने ग्रहवानी के छोडवानी वात क्यांथी लाव्यो? आहारनुं ग्रहण के त्याग तारा द्रव्यमां नथी,
गुणमां नथी, पर्यायमां पण नथी अने राग करीने पण तुं आहारने तो ग्रही के छोडी शकतो नथी. आहार तो
अनंत परमाणुनो स्थूळ स्कंध छे, ने तारा ख्यालमां तेनुं स्थूळ परिणमन आवे छे. आहारनो कोळियो
थाळीमांथी मोढा सुधी आव्यो, तेटला वखतमां तो तेना अनंता गुणोनी असंख्य पर्यायो बदलाई गई छे, ते
सूक्ष्म परिणमनने तो तारुं ज्ञान जाणतुं य नथी, तो तेमां तुं शुं करी शके?
(१२) आत्मामां ज्ञान सिवायना श्रद्धा–चारित्र वगेरे कोई गुणो जाणवानुं कार्य करी शकता नथी.
स्वभावनी रुचि थई होय तेने ज्ञान ज जाणे छे, रुचि पोते पोताने के परने जाणती नथी. आत्माना बधा गुणो
तो एकेक समये परिणमे छे, पण तेमां दर्शन अने ज्ञान ज एवा छे के जेनो उपयोग छद्मस्थने असंख्य समय
सुधी लंबाय छे. श्रद्धा वगेरे पर्यायोनुं कार्य एकेक समयमां ज थाय छे, ते एक पर्याय पछी बीजी पर्यायमां
लंबातुं नथी. ज्ञाननुं कार्य परिपूर्ण थाय त्यारे तो ते एकेक समयमां ज जाणवानुं कार्य करे छे, पण अधूरुं ज्ञान
होय ते असंख्य समयना उपयोगवाळुं छे, राग सहित होय त्यारे पण श्रद्धा वगेरे तो एकेक समये कार्य करे छे;
तेनुं कार्य लंबातुं नथी. ज्ञान, ज्यारे शुद्धनयना बोध अनुसार आत्माने जाणीने स्वभावमां ढळे छे त्यारे तेनी
साथे सम्यक्श्रद्धा होय छे, ते सम्यक् श्रद्धा पोते एक समये पूरा आत्माने प्रतीतमां लेवानुं काम करे छे, पण
ज्ञान ते श्रद्धाने असंख्य समये जाणे छे; श्रद्धा एक समयनी होवा छतां ज्ञान तेने एक समयमां पकडी शकतुं
नथी. ज्ञाननो उपयोग स्वभावमां ढळतां राग अने ज्ञाननी एकताबुद्धि टळीने द्रव्य–गुण साथे एकत्व थाय छे
ने मिथ्यात्व सहेजे टळे छे. खरेखर ज्ञान मिथ्यात्वने छोडे–एम कहेवुं ते पण उपचार छे. अने आत्मा कोई पर
वस्तुने भोगे–फोडे के दूर–नजीक करे ए वात त्रणकाळमां बनती नथी. अज्ञानी जीव स्वभाव तरफना ज्ञानने
चूकीने, राग अने निमित्तमां ज्ञाननी एकता मानीने स्थूळ बुद्धिथी स्थूळ पदार्थोने पकडवानुं के छोडवानुं माने
छे, पण अंतरमां सूक्ष्म आत्मस्वभाव तरफ ते पोताना ज्ञानना उपयोगने वाळतो नथी तेथी तेने एकेक समये
जाणे तेवुं ज्ञान प्रगटतुं नथी ने तेवा ज्ञान सामर्थ्यनी प्रतीत पण होती नथी.
ज्ञानीने पोताना पूरा ज्ञान सामर्थ्यनो विश्वास छे, अने स्वभाव तरफ ज्ञान वळ्‌युं छे, छतां एकेक
समयनी अवस्थानो वेपार जे समये वर्ते छे ते समये तेनो ख्याल आवतो नथी; पण असंख्य समयनुं स्थूळ
परिणमन ख्यालमां आवे छे. आ रीते आराधक जीव पण एकेक समयना परिणामने जाणी शकता नथी, तो
परने मूके के ल्ये एवो तो स्वभाव ज नथी, ने विभावथी पण तेम बनतुं नथी.
केवळीभगवान एकेक समयना परिणमनने पण जाणे छे, पण तेमने तो पर सामे लक्ष नथी ने परना
ग्रहण–त्यागनो विकल्प पण नथी; तेथी तेमने पण परनुं कांई ग्रहण–त्याग नथी. साधक जीव एकेक समयना
परिणामने पकडी शकता नथी, जे समये जे परिणाम थाय ते ज समये तेने पकडी शकता नथी; तो पछी तेमने
परवस्तुनुं ग्रहण–त्याग क्यांथी होय?
(१३) जीवने अधूरी दशामां राग थाय छतां ते रागने कारणे परने ग्रहवा–