छोडतुं नथी तो पछी आत्मा शरीरने छोडे, आहारने छोडे, वस्त्र पैसा वगेरेने छोडे–ए वात तो क्यां रही?
ज्ञानथी के रागथी पण परनो त्याग करवानुं वस्तुस्वभावमां नथी.
समये समये वधती जाय छे, अने एकेक पर्यायने पूर्ण पकडे एवो निर्मळ उपयोग प्रगटे छे. एक पर्यायने पूर्ण
पकडतां केवळज्ञान थई जाय छे, पण पर्यायना लक्षे पर्यायने री पकडाती नथी, अभेद द्रव्यस्वभावमां ढळतां
एकेक पर्यायने जाणे–एवुं केवळज्ञान प्रगटे छे. ज्यां स्वभावमां एकता करीने ज्ञान कर्युं त्यां ज्ञान आत्माने ग्रहे
एवो भेद पण नथी.
हे भाई, तारा वर्तमान ज्ञानमां परनी एक समयनी वर्तमान अवस्थाने जाणवानी पण ताकत नथी, तो पछी
आहारादि परद्रव्यने ग्रहवानी के छोडवानी वात क्यांथी लाव्यो? आहारनुं ग्रहण के त्याग तारा द्रव्यमां नथी,
गुणमां नथी, पर्यायमां पण नथी अने राग करीने पण तुं आहारने तो ग्रही के छोडी शकतो नथी. आहार तो
अनंत परमाणुनो स्थूळ स्कंध छे, ने तारा ख्यालमां तेनुं स्थूळ परिणमन आवे छे. आहारनो कोळियो
थाळीमांथी मोढा सुधी आव्यो, तेटला वखतमां तो तेना अनंता गुणोनी असंख्य पर्यायो बदलाई गई छे, ते
तो एकेक समये परिणमे छे, पण तेमां दर्शन अने ज्ञान ज एवा छे के जेनो उपयोग छद्मस्थने असंख्य समय
सुधी लंबाय छे. श्रद्धा वगेरे पर्यायोनुं कार्य एकेक समयमां ज थाय छे, ते एक पर्याय पछी बीजी पर्यायमां
लंबातुं नथी. ज्ञाननुं कार्य परिपूर्ण थाय त्यारे तो ते एकेक समयमां ज जाणवानुं कार्य करे छे, पण अधूरुं ज्ञान
तेनुं कार्य लंबातुं नथी. ज्ञान, ज्यारे शुद्धनयना बोध अनुसार आत्माने जाणीने स्वभावमां ढळे छे त्यारे तेनी
साथे सम्यक्श्रद्धा होय छे, ते सम्यक् श्रद्धा पोते एक समये पूरा आत्माने प्रतीतमां लेवानुं काम करे छे, पण
ज्ञान ते श्रद्धाने असंख्य समये जाणे छे; श्रद्धा एक समयनी होवा छतां ज्ञान तेने एक समयमां पकडी शकतुं
नथी. ज्ञाननो उपयोग स्वभावमां ढळतां राग अने ज्ञाननी एकताबुद्धि टळीने द्रव्य–गुण साथे एकत्व थाय छे
ने मिथ्यात्व सहेजे टळे छे. खरेखर ज्ञान मिथ्यात्वने छोडे–एम कहेवुं ते पण उपचार छे. अने आत्मा कोई पर
वस्तुने भोगे–फोडे के दूर–नजीक करे ए वात त्रणकाळमां बनती नथी. अज्ञानी जीव स्वभाव तरफना ज्ञानने
चूकीने, राग अने निमित्तमां ज्ञाननी एकता मानीने स्थूळ बुद्धिथी स्थूळ पदार्थोने पकडवानुं के छोडवानुं माने
जाणे तेवुं ज्ञान प्रगटतुं नथी ने तेवा ज्ञान सामर्थ्यनी प्रतीत पण होती नथी.
परिणमन ख्यालमां आवे छे. आ रीते आराधक जीव पण एकेक समयना परिणामने जाणी शकता नथी, तो
परने मूके के ल्ये एवो तो स्वभाव ज नथी, ने विभावथी पण तेम बनतुं नथी.
परिणामने पकडी शकता नथी, जे समये जे परिणाम थाय ते ज समये तेने पकडी शकता नथी; तो पछी तेमने
परवस्तुनुं ग्रहण–त्याग क्यांथी होय?