परवस्तुओथी स्पष्टपणे भिन्न अनुभववुं.
परनुं कांई पण ग्रहण–त्याग ज्ञानमां नथी. तत्त्वार्थ राजवार्तिकमां कह्युं छे के आत्माने कांई हाथ पग नथी के ते
पर वस्तुओने पकडे छोडे. परमार्थ तो आत्मा विकारनो य ग्रहनार के त्यागनार नथी. ‘हुं विकारी छुं’ एवी
ऊंधी श्रद्धानो त्याग थयो ते ज विकारनो त्याग छे अने विकार रहित शुद्धस्वभाव छे’ एवी श्रद्धा करी ते ज
स्वरूपनुं ग्रहण छे. अज्ञानदशामां जीव परनुं ग्रहण–त्याग करवानुं माने छे पण परनुं ग्रहण के त्याग करी तो
अने पछी ते कहे के ‘हवे हुं आ पाणीने छोडी दउं छुं. ’ त्यां ते मनुष्ये खरेखर पाणीने पकडयुं पण नथी ने
छोड्युं पण नथी. पाणी तो तेना प्रवाहमां वह्युं ज जाय छे. ते माणसे पाणीनुं ग्रहण–त्याग करवानी मात्र
मान्यता करी हती, पण पाणीने तो ग्रहण के त्याग कर्युं नथी. माणस तो पाणीना ग्रहण त्याग रहित छे. आ
द्रष्टांते ज्ञानने पण ग्रहण–त्याग रहित समजवुं, आ जगतना पदार्थो सौ पोत पोताना स्वभाव क्रममां परिणमे
छे. त्यां ज्ञान तो तेनाथी जुदुं रहीने तेने जाणे छे, पण तेनुं ग्रहण के त्याग करतुं नथी. परमार्थथी तो ज्ञानमां
विकारनुं पण ग्रहण त्याग नथी. ‘विकारने छोड, विकारना निमित्तोने छोड, कुसंगने छोड!’ –एवो उपदेश
चरणानुयोगमां आवे, ते कथन निमित्तनां छे. उपदेशमां तो एवां वचनो आवे पण वस्तुस्वभाव ज पर–
वस्तुना ग्रहण अने त्याग वगरनो छे, ज्ञानमां परवस्तुनुं ग्रहण–त्याग नथी, एवो स्वभाव छे.
स्वभाव ज परमां कांई करवानो नथी. ज्ञान तो आत्मामां जाणवानी ने ठरवानी क्रिया करे, ए सिवाय परमां
कांई ग्रहण–त्याग करी शके नहि. जेम दुकानमां अरीसो टांग्यो होय तेमां अनेक प्रकारना मोटर, गाडी, माणसो
वगेरेना प्रतिबिंब पडे अने पाछा चाल्या जाय; त्यां अरीसाए ते वस्तुओने ग्रही के छोडी नथी, तेम ज्ञानमां
बधुं जणाय छे पण ज्ञान कोईने ग्रहतुं के छोडतुं नथी. एवा ग्रहण–त्यागरहित, साक्षात समयसार भूत
शुद्धज्ञानने अनुभववुं. एवो अहीं उपदेश छे.
कांई न करी शके. जो आम यथार्थपणे समजे तो पर तरफथी पाछो फरीने पोताना
ज्ञानस्वभाव तरफ वळे, ने रागनो पण कर्ता थाय नहि. हे भाई, तने प्रत्यक्ष देखाय छे के
तारो राग परमां कांई ज करी शकतो नथी. जेम परने माटे तारो राग व्यर्थ छे, तेम ते राग
आत्माने पोताने पण कांई लाभ करतो नथी. जो स्त्री पुत्र–शरीर वगेरे पदार्थो तारां होय तो
तेना उपर तारो अधिकार केम न चाले? अने तारी ईच्छा प्रमाणे ज ते पदार्थो केम न
परिणमे? माटे तुं तारा ज्ञानमां एम निर्णय कर के मारुं ज्ञानस्वरूप बधाय पदार्थोथी जुदुं छे,
पर पदार्थो तरफना वलणथी रागनी उत्पत्ति थाय तेनाथी पण जुदुं छे, ने पर तरफ वळीने
रागमां जे ज्ञान अटकी जाय तेनाथी पण मारुं ज्ञानस्वरूप जुदुं छे;–एम जाणीने तारा
श्रद्धा कर, तेनो ज अनुभव कर. निरंतर ते ज एक करवा जेवुं छे.