ज उपादेयपणे अंगीकार करीने त्यां एकाग्र थतां मोक्षदशा सहज थाय छे.
सिवाय साते तत्त्वो हेय छे. माटे, आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य! तारे उपादेयस्वरूप तो एक आत्मस्वभाव छे
एम तुं समज, तेनी ओळखाण कर.
अने एनो ज अंगीकार करवानो छे; शुद्ध जीवने अंगीकार करवाथी शुद्धभाव प्रगटे छे. अंगीकार करवो एटले
तेनी श्रद्धा करवी, तेनुं ज्ञान करवुं अने तेमां लीन थवुं. ज्यां सात तत्वना भेदनी श्रद्धा छे त्यां एक स्वतत्त्व
अनुभवातुं नथी, ने एक स्वतत्त्वनी श्रद्धामां सात तत्वना विकल्पो नथी. सात तत्त्वना विचारमां क्रम पडे छे
अने राग थाय छे. एक स्वतत्त्वनी श्रद्धामां भेद नथी, राग नथी माटे पोतानुं एक शुद्ध स्वरूप जेम छे तेम
जाणीने तेमां ठरवुं, ते ज धर्म अने मोक्षमार्ग छे.
ओळखे तो साचुं ज्ञान प्रगटे. सत्समागम विना ते कदी जणाय तेम नथी. आ शरीर तो आत्मानुं नथी, पण
अंदर जे राग–द्वेष, पुण्य–पाप, क्रोध–भक्ति वगेरे भावो थाय छे ते पण विकार छे, ते आत्मानुं स्वरूप नथी.
समजे तो तेने जन्ममरण रहे नहि. जेमणे रागद्वेष टाळी पूर्ण परमात्म दशा प्रगट करी एवा भगवान अरिहंत
सर्वज्ञदेवना श्रीमुखथी दिव्यध्वनि छूटे छे, तेमां आत्मस्वभावनी वात आवे छे, ते समजीने जे आत्माने
अनुभवे छे तेने जन्म–मरणनो नाश थाय छे.
महिमा अनुभवमां आवे, पण वाणीद्वारा कहेवाय तेवो नथी. जे स्वरूपे आत्मा छे ते स्वरूपे तेने ज्ञानथी
जाणवो–मानवो ने अनुभववो ते ज धर्म छे. ए सिवाय बहारमां क्यांय धर्म नथी. भाई रे, धर्म तो अंतरनी
टळे एवो धर्म तेनाथी जुदो छे. धर्म तो एवो छे के जीव जो एक सेकंड पण तेनुं सेवन करे तो मुक्ति थई जाय.
परमात्मा थई जाय छे. क्षणिक पुण्य–पापना भरोंसे आत्मानुं कल्याण थाय नहि. अने आ शरीर जड छे, तेना
भरोंसे आत्मानुं हित थाय नहि. पण पोतामां परमात्मा थवानी ताकात छे तेने ओळखीने तेना भरोंसे
अंतरनी शक्ति प्रगटीने पोते परमात्मा थाय छे. माटे हे जीव! अंदरमां परमात्मस्वभाव छे तेनो विश्वास कर.
शरीर, पैसा के पुण्य–पाप क्षणिक छे तेना भरोंसे तारुं कल्याण थतुं नथी, माटे तारुं स्वरूप शुं छे तेनी
ओळखाण तो कर.