छे, तो ते केवो छे? ते ओळखवानी दरकार करवी जोईए. मनुष्यदेह अनंतकाळे मळे छे, तेमां आत्माने
समजवानी दरकार करवी जोईए. सत्समागमे वारंवार तेनो परिचय करीने समजवुं जोईए. तेनी ओळखाण
करवी ते ज मनुष्यदेहमां आव्यानुं खरु फळ छे. बाकी पुण्य करीने स्वर्गमां जाय के पाप करीने नर्कमां जाय–ते
कांई नवुं नथी.
दरकार करीने तेने समजवा मागे ते जीवने सत्समागमे ज्ञानमां समजाय छे. अनंता जीवो ते समजीने मुक्त
थया छे, अत्यारे पण आत्माने समजनारा छे, ने भविष्यमां अनंता थशे. पुण्य अने पाप तो आखी दुनिया
करे छे, पण आत्मानी समजण करनारा कोईक विरला ज होय छे. परमां सुख माने ने सुख माटे परनी
ओशियाळ माने ते तो मागण छे, कोई लाखो रूपिया मागे, कोई हजार मागे, कोई सो मागे; झाझुं मागे ते
मोटो मागण छे ने थोडुं मागे ते नानो मागण छे. अने एम समजे के अहो! हुं आत्मा छुं, मारे कांई जोईतुं
नथी, मारुं–सुख मारामां छे, मारे तो हवे आत्मा समजवो छे–एम जे भावना करे छे ते मोटो बादशाह छे.
भले गृहस्थदशामां होय छतां अंतरमां आत्मानुं भान करे ते धर्मात्मा छे, ने तेने जन्म–मरणनो अंत थई जशे.
जेम पर्वत पर वीजळी ५डे ने बे कटका थई जाय, पछी ते फरीथी संधाता नथी, तेम जे जीव एक सेकंड पण
मारी” एम लोको मानता नथी, तेम धर्मी जीव आ शरीरादिने के पुण्य–पापना भावोने पोतानुं स्वरूप मानता
नथी; ते धर्मी जीवो आत्मस्वभावने जाणे छे, पण वाणी द्वारा कहेवो कठण छे.
जे जाणे छे ते जीव छे.
पुण्य–पाप ते आस्रव छे.
ते पुण्य–पापमां अटकवुं ते बंधन छे.
ते पुण्य–पाप रहित चैतन्यमूर्ति आत्मा प्रज्ञाब्रह्मस्वरूप छे, तेनी ओळखाण करीने ठरवुं ते संवर–निर्जरा
मळे के स्वर्ग मळे –ते दुर्लभ नथी, आत्मानी समजण ज दुर्लभ छे. आ मानवजीवनमां एवा आत्मानी समजण
करवा जेवी छे.
कहे छे के आ आत्मस्वभावनो महिमा जगतमां जयवंत वर्ते छे.
जीवो पोतानी चैतन्य जातनो महिमा भूलीने परमां सुखना झांवा नांखी रह्या छे, पण परमां क्यांय सुख नथी
परपदार्थ प्रत्येनी ईच्छा ते दुःख छे. सुख तो आत्मामां छे, तेने ओळखे तो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्
चारित्रनुं सुख प्रगटे छे. सुखनो देनार आत्मा छे, तेनी श्रद्धा ज्ञान करवी ते धर्म छे. लोको क्रिया क्रिया करे छे,
पण आत्मानी साची