जेम बीजनो चंद्र ऊग्या पछी क्रमे क्रमे ते पूरो थाय छे तेम आत्मानी साची समजण एक सेकंड पण
आगळ वधीने पूर्ण सिद्धदशा थशे, ने विकार टळी जशे.
टाळीने वीतराग थई गया. जे पुण्य रहित छे तेमने नमस्कार करे अने पाछो पोते पुण्यनी भावना करे, ते तेणे
खरेखर अरिहंत के सिद्धने नमस्कार कर्या नथी. पुण्य–रहित वीतराग पुरुषने नमस्कार करनार पुण्य मागे नहि.
धर्मीने पुण्य–पापभाव थाय, पण द्रष्टिमां एम छे के मारे आ पुण्य जोईतां नथी. मारुं पुण्यरहित स्वरूप छे, ते
मारी चीज नथी. –एम धर्मीने ओळखाण छे.
प्रगटी छे ते जोईए छे. ए रीते अरिहंतने नमस्कार करनार जीवने पुण्यनी भावना होती नथी. तेमज मुनिने
तो बहारमां दागीना, लूगडां, घरबार कांई नथी, छतां तेमने नमस्कार करे छे. खरेखर त्यां नमस्कार करनारनी
एवी भावना छे के हे प्रभो, आपनी पासे घरबार, वस्त्र, दागीना कांई न होवा छतां अंतरमां कांईक अपूर्व
चीज छे ते मारे जोईए छे. मारी पासे पैसा घरबार, दागीना छे पण तेमां सुख नथी, ए बधां पुण्यनां फळ छे
पण तेमां सुख नथी, आपना आत्मामां राग–द्वेष टळीने सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्र प्रगट्या छे, तेमां खरेखर
तेनी पहेलांं समजण करवी जोईए.
आ शुद्धभाव–अधिकार चाले छे. आत्मानो स्वभाव ए ज शुद्ध भाव छे, ने ते ज आदरणीय छे. ए शुद्ध
जाणीने, तेनी रुचि करवी ते सम्यग्दर्शन छे. स्वभाव शुं अने परभाव शुं–ए जाण्या वगर स्वभावनी रुचि
थाय नहि. ने परनो महिमा टळे नहि. अने त्यां सुधी जीवने धर्म थाय नहि.
महिमा जाण्यो नथी तेथी विकारथी ने परथी पोतानो महिमा मानी रह्यो छे. शुभभाव करे त्यां तो में घणुं कर्युं
एम मानी ले छे, अने धार्या प्रमाणे बहारमां अनुकूळता देखे त्यां तो जाणे के हुं आनाथी भरपूर छुं–पण ते
अज्ञानीने खबर नथी के ज्ञान–सुखथी भरपूर तो पोतानो स्वभाव ज छे, ने ते ज पोताने शरणभूत छे,
बहारनी कोई वस्तु जराय शरणभूत नथी अने विकार पण शरणभूत नथी. जेने पोताना स्वभावनी विकारथी
ने परथी भिन्नता नथी भासती, ने विकारमां तथा परमां ज एकाकारपणुं मानी रह्यो छे ते पोताना शुद्ध भावने
उपादेय जाणतो नथी; ते मिथ्याद्रष्टि छे. अने जे जीव पोताना शुद्ध भावने विकारथी ने परथी जुदो जाणीने
उपादेय माने छे ते धर्मात्मा सम्यग्द्रष्टि छे.