Atmadharma magazine - Ank 072
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: २१० : आत्मधर्म : आसो : २४७५ :


नियमसारनी आ ३८मी गाथामां हेय–उपादेय तत्त्वनुं कथन छे. पोतानो शुद्ध आत्मस्वभाव ज उपादेय
छे; जीव–अजीवादि सात तत्त्वो परद्रव्यस्वरूप छे, ते ग्रहवायोग्य नथी.
प्रश्न:– साततत्त्वोमां ‘जीवतत्व’ पण आवी जाय छे, तो शुं ते पण परद्रव्य छे?
उत्तर:– सहज ज्ञानस्वरूपी जीव तो स्वतत्व छे, ते कांई परद्रव्य नथी. अहीं जीवना शुद्ध स्वभावने
परद्रव्य कह्युं नथी, परंतु ‘हुं जीव छुं’ एवो जे मनसंबंधी रागमिश्रित विचार तेने अहीं जीवतत्व तरीके गणीने
परद्रव्य कह्युं छे. ‘हुं जीव छुं’ एवो विकल्प ते आत्मानुं स्वरूप नथी, तेथी ते परद्रव्य छे, अने हेय छे.
आत्मतत्व ज्ञानस्वरूप छे; हुं जीव छुं’ एवो जीवसंबंधी विकल्प ते आत्मतत्वमां नथी, अने ते विकल्पवडे
आत्मतत्व अनुभवमां आव शकतुं नथी, माटे ते विकल्प हेय छे. जीव पोते परद्रव्य नथी पण जीवतत्व संबंधी
जे विकल्प छे ते परद्रव्य छे. शुद्ध जीवतत्व तो उपादेय छे पण ‘हुं जीवतत्व छुं, एवो विकल्प उपादेय नथी. आ
अपेक्षाए जीवतत्वने हेय कह्युं छे–एम समजवुं.
बीजुं अजीव तत्व छे, ते उपादेय नथी. जीव सिवायनां बीजा पांच अचेतन द्रव्यो छे ते अजीव छे. ‘हुं
अजीव नथी’ एवो जे रागमिश्रित विकल्प छे ते परद्रव्य स्वरूप छे, ते विकल्प वडे अजीवथी भिन्न जीवतत्व
अनुभवातुं नथी, माटे ते हेय छे.
त्रीजुं आस्रव तत्त्व छे. दयादिना शुभभाव के हिंसादिना अशुभभाव ते बंने आस्रव छे, ते जीवनुं
स्वरूप नथी. आस्रव मारुं स्वरूप नथी, हुं आस्रवथी ‘जुदो छुं’ एवो विकल्प तो राग छे; परद्रव्यस्वरूप छे; ते
विकल्पमां ज जेनी बुद्धि अटकी छे ते मिथ्याद्रष्टि छे; ए विकल्प वडे आत्म तत्व अनुभवमां आवी शकतुं नथी,
माटे ते विकल्प हेय छे. विकल्प रहित थतां जे सहज आत्मतत्वनो अनुभव थाय छे ते सहज आत्मतत्व ज
उपादेय छे. अहीं विकल्पमात्रने परद्रव्यमां गणेल छे; पोताना शुद्ध स्वभाव संबंधी विकल्प करवो ते पण
स्वद्रव्यनो स्वभाव नथी.
चोथुं बंधतत्त्व छे, ते उपादेय नथी. हुं कर्मथी बंधायेलो छुं, एवो विकल्प तो हेय छे, अने हुं कर्मथी
बंधायेलो नथी, –अबंध छुं. एवो रागमिश्रित विकल्प ते पण हेय छे. अबंध स्वभाव तो पोतानुं स्वरूप छे,
पण ‘हुं अबंध छुं’ एवो विकल्प पोतानुं स्वरूप नथी, ते परद्रव्य छे, माटे हेय छे.
पांचमुं संवरतत्त्व छे, ते पण हेय छे. आत्मस्वरूपना भानपूर्वक अंशे शुद्धता प्रगटी अने पुण्य–पाप
अटक्या ते संवर छे. संवर पोते निर्मळ पर्याय छे.
प्रश्न:– संवर तो निर्मळ पर्याय छे, छतां तेने हेय केम कह्यो?
उत्तर:– संवरतत्वना लक्षे विकल्प थाय छे. संवरतत्त्व अने तेना लक्षे थतो विकल्प ए बंनेने एक
गणीने संवर तत्त्वने ज हेय कह्युं छे. ‘हुं संवर करुं’ एवो विकल्प करवो ते रागमिश्रित भाव छे, तेनाथी संवर
दशा प्रगटती नथी. अहीं एकरूप आत्मस्वभावनुं ज ग्रहण कराववुं छे, तेमां कोई प्रकारना भेदनो के विकल्पनो
स्वीकार नथी. संवर तो एक निर्मळ पर्याय छे. अहीं पर्यायद्रष्टि ज छोडाववी छे, माटे संवरतत्त्व पण हेय छे
अर्थात् तेनुं लक्ष करवा जेवुं नथी. पुण्य–पापने अटकावुं एवा विकल्पथी पुण्य–पाप अटकाता नथी, पण एकदम
आत्मस्वभावना लक्षे ज पुण्य–पाप अटके छे; माटे एकरूप आत्मस्वभाव ज उपादेय छे. आत्मस्वभावना लक्षे
एकाग्र थतां संवर–निर्जराने मोक्ष थई जाय छे.
छठ्ठुं निर्जरा तत्त्व छे. आत्मस्वभावनी एकाग्रताथी शुद्धता वधे ने अशुद्धता टळे ते निर्जरा छे. मलिनता
टाळुं ने शुद्धता वधारुं–एवो विकल्प पण हेय छे; ते विकल्प परद्रव्य स्वरूप छे, तेना लक्षे धर्म थतो नथी.
सातमुं मोक्षतत्त्व छे, मोक्ष एटले आत्मानी संपूर्ण शुद्ध दशा. आ मोक्षतत्त्व पण हेय छे. पर्यायबुद्धि–
अज्ञानीने एम लागे के, अरर! शुं मोक्षतत्त्व पण छोडवा जेवुं छे? –पण भाई, मोक्षदशा तो एक पर्याय छे.
मोक्षपर्याय उपर जेनुं लक्ष छे तेने कदी मोक्षदशा थती नथी. पर्यायद्रष्टि छोडीने आखा द्रव्य स्वभावने द्रष्टिमां न
स्वीकारे त्यांसुधी धर्म थतो नथी. हुं मोक्ष करुं–एवो विकल्प ते परद्रव्य स्वरूप छे. हुं आत्मा, अने मारो मोक्ष
करुं’ एवा विचार वडे आत्म–