Atmadharma magazine - Ank 072
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: २०८ : आत्मधर्म : आसो : २४७५ :
बोटादमां, पूज्य गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान : माह वद १०: मंगळवार २: २: ४९
शरीरमां रोग होय, पुत्र मरे ईत्यादि गमे तेवी प्रतिकूळता वखते पण तेमां राग–द्वेष न करतां
स्वभावना लक्षे ज्ञाता द्रष्टा रहीने ज्ञानी जीव अंतरमां अनाकूळ शांतिनुं वेदन करे छे. ते शांतिनुं वेदन थवानी
ताकात कोई संयोगमां नथी. पण स्वभावमां तेवी ताकात छे. अनुकूळता के प्रतिकूळतामां राग–द्वेष कर्या वगर
ज्ञाता–दष्टापणे रहीने शांतिनुं वेदन करवानी ताकात चैतन्यमां ज छे. एटले गमे ते वस्तुना अभावमां पण
पोते पोतानी शांतिनुं वेदन करवा समर्थ छे. एटले बधी वस्तुओ वगर ज आत्माने चाले छे. पैसा विना
चालतुं नथी–एम अज्ञानी माने छे, पण ते वात बराबर नथी. जगतमां आत्मा छे, ने पैसा छे, पण आत्मा
पैसापणे नथी अने पैसा आत्मापणे नथी. एटले त्रणेकाळे आत्मा पैसा विना ज टकी रहेलो छे आत्मा
पोताना स्वभावथी ज छे. पैसा छे माटे आत्मा छे–एम नथी. आत्मा पोताना स्वभावथी टकेलो छे, ने पैसा
पैसाथी टकेलां छे. एकनो बीजामां अभाव छे. पण परवस्तु वगर मारे चाले नहि–एवी अज्ञानीनी कल्पना छे
ते ज दुःख छे. आत्मा अनादिथी छे, ने आत्मामां परनो अभाव अनादिथी छे. परवस्तु अनादिथी छे. पण
आत्मामां तेनो अभाव छे; एटले आत्माने सदाय परवस्तु वगर ज चाले छे.
वस्तु अनादि अनंत छे. वस्तु ज तेनुं रूपांतर थाय छे. आत्मा वस्तु अनादिथी छे, ने तेनुं वर्तमान
रूपांतर पण अनादिथी थया करे छे. अनादिथी “परवस्तु वगर मारे न चाले” एवी कल्पनारूपे रूपांतर थयुं छे,
ते कल्पना वगर अनादिथी अज्ञानीने चाल्युं नथी. परथी हुं टक्यो नथी, पण माराथी ज टक्यो छुं; मारो
स्वभाव माराथी परिपूर्ण छे ने परथी शून्य छे एटले मारे मारा स्वभाव वगर न चाले एम माने तो तो
पोताना स्वभावने ओळखीने तेनो आश्रय करे ने पराश्रय टाळीने मुक्त थाय.
जगतनां जीवोने धर्मनी कळानी किंमत नथी. लौकिककळानी किंमत जगतने लागे छे पण धर्मनी कळानो
महिमा नथी. कुंभारना काममां वकील डहापण न करे, ने वकीलातना कार्यमां कुंभार माथुं न मारे. पण धर्ममां
तो जे होय ते माथुं मारे के आम करो तो धर्म थाय, ने तेम करो तो धर्म थाय पण परथी भिन्न आत्माना भान
वगर धर्म थाय नहि. अने जेने पोताने आत्मानी ओळखाण थई न होय ते धर्मनुं साचुं स्वरूप कही शके नहि.
आत्मामांथी बीजी बधी चीजने बाद करी नांखवी जोईए के ते मारुं स्वरूप नथी, एने बदले अज्ञानी
जीव पर वस्तुथी हुं टकुं छुं. एम मानीने पर साथे पोतानो गुणाकार करे छे. हुं मारामां छुं, ने परनो वियोग
मारामां अनादि छे; तो पछी पुत्र हतो ने तेनो वियोग थयो–एम त्रणकाळमां नथी. केमके पुत्रनो त्रणे काळे
मारामां वियोग ज छे.
जे गाम जवुं होय तेनो मार्ग छोडीने बीजा मार्गे चाले तो ते धारेला स्थाने पहोंचे नहि, तेम चैतन्यनी
ओळखाण ते मुक्तिनो मार्ग छे, ते मार्ग छोडीने बीजा मार्गे चाले तो मुक्ति थाय नहि.
आत्माने परवस्तु वगर ज त्रिकाळ चाली रह्युं छे केम के आत्मानुं होवापणुं परवस्तुने लीधे नथी. परंतु
जीवने एवी मिथ्या कल्पना छे के मारे पर वगर न चाले ए ज दुःखनुं मूळ छे. दरेक चीज बीजी चीज वगर ज
साध्य चलावे छे. पण एक पदार्थने बीजा पदार्थ वगर न चाले एवी मान्यता ते कुमार्ग छे. हुं परथी भिन्न
त्रिकाळ स्वाधीन परिपूर्ण छुं–एवी प्रतीति ते सुमार्ग छे, ते मार्गे चैतन्यनो प्रकाश छे.
आत्मा एक पदार्थ छे एम कहेतां ज सिद्ध थयुं के ते परपणे नथी. पर केटला? के एक आत्मा सिवाय
बीजा बधा पदार्थोपणे ते अभावरूप छे. आवो भिन्नतानो मार्ग लेवो ते मोक्षनो सुमार्ग छे. जेने परथी भिन्न
चैतन्यतत्त्वनी प्रीति छे ते उत्कृष्ट स्थान पामवाने पात्र छे. पर वस्तु वगर ज मारे चाले छे–एम प्रतीति थई
त्यां “आ संयोग मने अनुकूळ, ने अमुक प्रतिकूळ” एवी कल्पनाने स्थान न रह्युं. बधा पदार्थोनो हुं ज्ञाता छुं
एवो अभिप्राय थयो. पर वगर मारे न चाले एवी ऊंधी मान्यताने लीधे जीवने स्वभाव तरफ जवामां
अनादिथी महान विघ्न थई रह्युं छे. पर चीज वगर मारे न चाले एवी