Atmadharma magazine - Ank 073
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २००६ आत्मधर्म : ९ :
अनादिथी संसारमां रखडतो रखडतो जीव शरीरने ज पोतानुं घर मानी बेठो छे, पण ज्यां ज्ञानीए समजाव्युं के
‘सर्व जीव छे सिद्धसम, जे समजे ते थाय’ –बधा आत्मा पोताना स्वभावथी सिद्ध जेवा छे, –आवी रुचि अने
ज्ञान थयुं त्यां फडाक रुचि फरी गई के आ पुण्य–पाप के शरीर ते मारुं नहि, हुं तो सिद्ध जेवो छुं. सिद्धपणुं ते
मारुं स्वरूप छे.
जेम सगपण पछी चार–पांच वर्ष बापना घरे रहे तोपण लक्ष तो सासरे ज छे. तेम ज्यां
आत्मस्वभावनुं भान थयुं त्यां सिद्धसाथे सगपण थयुं, हवे थोडो वखत त्रण चार भव संसारमां रहे तोपण
धर्मीनुं लक्ष बदली गयुं छे. सिद्ध जेवो स्वभाव ते हुं छुं ने आ हुं नथी–एम अंदर द्रष्टि फरी गई छे. आ अंतरनी
अपूर्व वात छे. तद्न सहेली रीते कहेवाय छे. बीजी वात तो आखी जिंदगी सांभळी होय, पण आ आत्माने
अपूर्व वात छे ते भाग्ये ज सांभळवा मळे छे. प्रभो, तें तारा आत्मानी वात कदी प्रीतिथी सांभळी नथी.
अंतरमां विचार करो के आत्मानो प्रेम केटलो छे? अने बायडी–छोकरां उपर केटलो प्रेम छे? अंदरमां जे
पुण्य–पापनी लागणी थाय छे ते ज हुं–एम मानीने तेनी प्रीति करे छे पण आत्मा कोण छे तेनी समजण करतो
नथी. बहारमां “आ ठीक ने आ अठीक” एम करीने रोकाय छे पण आत्माने तो ओळखतो नथी. ठीक–अठीक
करी करीने अज्ञानी तो संसारमां रखडया करे छे, ने ज्ञानी तो परथी भिन्न आत्माने जाणीने निर्मळ पर्याय
प्रगट करीने सिद्ध थई जाय छे.
आ जगतमां दरेक वस्तुमां पोताना चतुष्टय होय छे. भगवाने आ जगतमां छ द्रव्यो जोयां छे, ते दरेकने
पोतपोतानां चतुष्टय होय छे. चतुष्टय एटले द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने भाव. कळशीयामां पाणी भरो तो, जेवो
कळशीयानो आकार होय तेवो पाणीनो आकार थई जाय छे, पण त्यां कळशीयानो अने पाणीनो आकार जुदो
छे, कळशीयानो आकार कळशीयामां छे अने पाणीनो आकार पाणीमां छे. बंनेनुं द्रव्य जुदुं छे ने बंनेनुं क्षेत्र
पण जुदुं छे. बंनेनी वर्तमान दशा ते तेमनो काळ छे, ने तेनी जातने भाव कहेवाय छे. एवा द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने
भाव दरेक वस्तुमां होय छे.
आ समज्यां विना सम्यग्ज्ञान थाय नहि, सम्यग्ज्ञान वगर आत्मा साथे सगपण थाय नहि अने
सगपण थया वगर आत्मानी लगनी लागे नहि, लगनी लाग्या वगर मुक्ति थाय नहि.
जेम ए आंगळीओ जुदी जुदी छे, एक आंगळी छे ते बीजी आंगळी नथी. तेम दरेक वस्तुओ जुदी
जुदी छे. दरेक वस्तु पोताना स्वरूपथी सत् छे, ने परना स्वरूपे ते असत् छे.
जेम घडियाळनो स्वभाव टाईम आपवानो छे, पण तेमां मीठाश आपवानो स्वभाव नथी, तेम
आत्मानो स्वभाव ज्ञान करवानो छे. तेनो पुण्य–पाप करवानो स्वभाव नथी. ज्ञान करवा माटे अंदर एकाग्र थवुं
पडे छे, पण बहारना क्षेत्रमां लंबाईने एकाग्र थवुं पडतुं नथी, केमके आत्माना ज्ञाननुं क्षेत्र अंतरमां छे. अंदरमां
वळीने आत्माने ओळखे तो बधा उपरथी ममता टळी जाय. आत्माने भूलीने परमां सुखनो आरोप कर्यो छे,
पण जो आत्माने ओळखे तो पोतानुं साचुं सुख पामे अने परमां सुखनो आरोप कर्यो छे ते टळी जाय.
जेम एक आंबानुं मोटुं झाड होय, तेमां पोपट ऊंचेथी ऊडीने आवे ने केरी खाय, अने कीडी थड पकडीने
धीमे धीमे उपर चडीने केरी खाय, पण बंनेने स्वाद तो सरखो ज छे. तेम कोई ज्ञानी झट पुरुषार्थ करीने मोक्ष
पामी जाय अने कोईने आत्मानी रुचि होय ने धीमे धीमे समजे, ते पण छेवटे मोक्ष पामे छे. बंनेने आत्मानुं
सुख सरखुं छे.
मरण टाणे कहे छे के “हवे जोया करो,” पण भाई. जीवतां ज एकवार जोनारो रहे ने! मफतनो
अभिमान करे छे ते छोडीने, आत्माना भानमां जोनार–जाणनार ज रहे, तो तने आकुळता टळीने शांति थाय.
आत्मा पोताना स्वभावथी पूर्ण छे, ने परथी खाली छे, भगवान आत्मा ज्ञानथी भरेलो छे ने राग–
द्वेषथी खाली छे. एवा आत्मानुं भान करवुं ते सोयमां दोरो परोववा जेवुं छे. जेम दोरो परोवेली सोय उकरडे
जाय तोपण खोवाती नथी, तेम जेणे पोताना आत्मामां सम्यग्ज्ञानरूपी दोरो परोव्यो छे, तेने कदाचित एकाद
भव होय तोपण तेनुं आत्मभान टळतुं नथी. ने ते दीर्घ संसारमां रखडतो नथी. माटे जेने भवभ्रमणनो भय
होय तेणे आ मनुष्यभवमां सत्समागम करीने साची समजण रूपी दोरो आत्मामां परोवी लेवो. •