‘सर्व जीव छे सिद्धसम, जे समजे ते थाय’ –बधा आत्मा पोताना स्वभावथी सिद्ध जेवा छे, –आवी रुचि अने
ज्ञान थयुं त्यां फडाक रुचि फरी गई के आ पुण्य–पाप के शरीर ते मारुं नहि, हुं तो सिद्ध जेवो छुं. सिद्धपणुं ते
मारुं स्वरूप छे.
धर्मीनुं लक्ष बदली गयुं छे. सिद्ध जेवो स्वभाव ते हुं छुं ने आ हुं नथी–एम अंदर द्रष्टि फरी गई छे. आ अंतरनी
अपूर्व वात छे. तद्न सहेली रीते कहेवाय छे. बीजी वात तो आखी जिंदगी सांभळी होय, पण आ आत्माने
अपूर्व वात छे ते भाग्ये ज सांभळवा मळे छे. प्रभो, तें तारा आत्मानी वात कदी प्रीतिथी सांभळी नथी.
नथी. बहारमां “आ ठीक ने आ अठीक” एम करीने रोकाय छे पण आत्माने तो ओळखतो नथी. ठीक–अठीक
करी करीने अज्ञानी तो संसारमां रखडया करे छे, ने ज्ञानी तो परथी भिन्न आत्माने जाणीने निर्मळ पर्याय
प्रगट करीने सिद्ध थई जाय छे.
कळशीयानो आकार होय तेवो पाणीनो आकार थई जाय छे, पण त्यां कळशीयानो अने पाणीनो आकार जुदो
छे, कळशीयानो आकार कळशीयामां छे अने पाणीनो आकार पाणीमां छे. बंनेनुं द्रव्य जुदुं छे ने बंनेनुं क्षेत्र
पण जुदुं छे. बंनेनी वर्तमान दशा ते तेमनो काळ छे, ने तेनी जातने भाव कहेवाय छे. एवा द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने
भाव दरेक वस्तुमां होय छे.
पडे छे, पण बहारना क्षेत्रमां लंबाईने एकाग्र थवुं पडतुं नथी, केमके आत्माना ज्ञाननुं क्षेत्र अंतरमां छे. अंदरमां
वळीने आत्माने ओळखे तो बधा उपरथी ममता टळी जाय. आत्माने भूलीने परमां सुखनो आरोप कर्यो छे,
पण जो आत्माने ओळखे तो पोतानुं साचुं सुख पामे अने परमां सुखनो आरोप कर्यो छे ते टळी जाय.
पामी जाय अने कोईने आत्मानी रुचि होय ने धीमे धीमे समजे, ते पण छेवटे मोक्ष पामे छे. बंनेने आत्मानुं
सुख सरखुं छे.
जाय तोपण खोवाती नथी, तेम जेणे पोताना आत्मामां सम्यग्ज्ञानरूपी दोरो परोव्यो छे, तेने कदाचित एकाद
भव होय तोपण तेनुं आत्मभान टळतुं नथी. ने ते दीर्घ संसारमां रखडतो नथी. माटे जेने भवभ्रमणनो भय
होय तेणे आ मनुष्यभवमां सत्समागम करीने साची समजण रूपी दोरो आत्मामां परोवी लेवो. •