एवा अनंत शरीर थई चूक्यां, अने आत्मानुं भान नहि करे तेने हजी अनंत शरीर धारण करवा पडशे.
भवभ्रमणनो भय थया विना आत्मानी प्रीति थाय नहि. साची समजण ते ज विसामो छे, अनंतकाळथी
संसारमां रझळतां क्यांय विसामो मळ्यो नथी. साची समजण करवी ते ज आत्मानो विसामो छे.
अनंत अवतारना दुःख ऊभां छे तेनो केम भय नथी? आ भव पूरो थयो त्यां ज बीजो भव तैयार छे–एम
एक उपर बीजो भव अनंतकाळथी करी रह्यो छे. आत्मा पोते साची समजण न करे तो जन्म–मरण अटके नहि.
अरेरे, चोराशीना अवतारनो जेने डर नथी ते जीव आत्मा समजवानी प्रीति करतो नथी. अरे, मारे हवे
साची समजणनो प्रयत्न करे, आ जीव करोडो रूपिया पेदा करे तेवो शेठियो अनंतवार थयो, अने घरे घरे भीख
मागीने पेट भरनारो भिखारी पण अनंतवार थयो. आत्माना भान वगर पुण्य करीने मोटो देव अनंतवार
थयो ने पाप करीने नारकी पण अनंतवार थयो, पण हजी भवभ्रमणनो थाक लागतो नथी. आचार्यदेव कहे छे
के भाई! ‘हवे मारे भव जोता नथी’ –एम जो तने भवभ्रमणनो थाक लाग्यो होय तो सत्समागमे आत्मानी
प्रीति करीने तेने समज. ए सिवाय कोई शरण नथी.
साची समजण मुख्यपणे मनुष्यपणामां ज मळे छे. एवो मनुष्यभव बहु दुर्लभ छे. मानवपणुं तो
फरीथी नहि मळे माटे चालो मेळामां.” अरे भाई! शुं मेळा जोवा सारुं आ मानवपणुं मळ्युं छे? अहो!
अज्ञानी जीवो आ मनुष्यपणुं पामीने विषयभोगोमां सुख मानीने अटकी जाय छे. जेम बाळक पेंडा खातर
लाखेणो हार आपी दे, तेम अज्ञानी जीव पुण्य–पाप अने विषय भोगना स्वाद पासे चैतन्यरूपी अमूल्य हारने
वेची दे छे! मोंघा मनुष्यपणामां आत्मानी समजण करवाने बदले विषयभोगमां जीवन गुमावी दे छे.
आ रचना करी छे. क्षणिक विकारने पोतानो मानीने आत्मस्वभावनो अनादर करवो ते भावमरण छे–मृत्यु छे.
अमर एवो आत्मस्वभाव छे, तेने ओळखे तो भावमरण टळे. माटे हे भाई, जो तने भवनां दुःखोनो डर होय
तो आत्माने समजवानी प्रीति कर. जन्म–मरणना अंतनी वात अपूर्व छे, मोंघी छे. समजवानी धगश जागे
तेने समजाय तेवी सहेली छे.
जुओ मान्यता फरता केटली वार लागी? तेम