Atmadharma magazine - Ank 073
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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उमराळामां पू. गुरुदेवश्रीनुं व्याख्यान
वीर सं. २४७५ माह सुद १३
भाई रे, अनादिथी जे भावो करी करीने तुं संसारमां रखडे छे तेनाथी तद्न
जुदी जातनो धर्मनो मार्ग छे. माटे ते समज, तो तारो उद्धार थाय. जे उपाय छे ते
जाण्यां वगर सत्य मार्ग हाथ आवशे नहि. (श्री नियमसार प्रवचनो)
: ८ : आत्मधर्म : कारतक: २००६
भवभमणन भय
साचुं तत्त्व शुं छे? तेनी आ वात चाले छे, आत्मा पोताना स्वभावने भूलीने अनंतकाळथी चोराशी लाखनी
योनिमां जन्म धारण करीने रखडे छे. आ शरीर तो नवुं छे, ने ते मसाणमां राख थवानुं छे. आत्माना भान विना
एवा अनंत शरीर थई चूक्यां, अने आत्मानुं भान नहि करे तेने हजी अनंत शरीर धारण करवा पडशे.
‘अरेरे! क्यां सुधी मारे आ जन्ममरण करवां? आ भवभ्रमणनो क्यांय आरो छे के नहि?’ एम ज्यां
सुधी चोराशीना अवतारनो भय न थाय त्यांसुधी आत्मानी प्रीति थाय नहि. ‘भय विना प्रीति नहि’ एटले
भवभ्रमणनो भय थया विना आत्मानी प्रीति थाय नहि. साची समजण ते ज विसामो छे, अनंतकाळथी
संसारमां रझळतां क्यांय विसामो मळ्‌यो नथी. साची समजण करवी ते ज आत्मानो विसामो छे.
एक सर्पने देखतां केटलो बधो भय पामे छे? केमके शरीर उपर ममत्व अने प्रीति छे. अरे प्राणी! एक
शरीर उपर सर्पना डंशनो आटलो भय छे, तो अनंत जन्ममरणनो भय केम नथी? आत्मानी समजण वगर
अनंत अवतारना दुःख ऊभां छे तेनो केम भय नथी? आ भव पूरो थयो त्यां ज बीजो भव तैयार छे–एम
एक उपर बीजो भव अनंतकाळथी करी रह्यो छे. आत्मा पोते साची समजण न करे तो जन्म–मरण अटके नहि.
अरेरे, चोराशीना अवतारनो जेने डर नथी ते जीव आत्मा समजवानी प्रीति करतो नथी. अरे, मारे हवे
चोराशीना अवतारमां रखडवानुं केम अटके–एम अंदरमां भवभ्रमणनो भय लागे तो आत्मानी दरकार करीने
साची समजणनो प्रयत्न करे, आ जीव करोडो रूपिया पेदा करे तेवो शेठियो अनंतवार थयो, अने घरे घरे भीख
मागीने पेट भरनारो भिखारी पण अनंतवार थयो. आत्माना भान वगर पुण्य करीने मोटो देव अनंतवार
थयो ने पाप करीने नारकी पण अनंतवार थयो, पण हजी भवभ्रमणनो थाक लागतो नथी. आचार्यदेव कहे छे
के भाई! ‘हवे मारे भव जोता नथी’ –एम जो तने भवभ्रमणनो थाक लाग्यो होय तो सत्समागमे आत्मानी
प्रीति करीने तेने समज. ए सिवाय कोई शरण नथी.




साची समजण मुख्यपणे मनुष्यपणामां ज मळे छे. एवो मनुष्यभव बहु दुर्लभ छे. मानवपणुं तो
आत्मानी समजण करवाथी ज सार्थक छे. लोको कहे छे “चालो भाई, मेळो जोवा, आ मनखो (मनुष्यभव)
फरीथी नहि मळे माटे चालो मेळामां.” अरे भाई! शुं मेळा जोवा सारुं आ मानवपणुं मळ्‌युं छे? अहो!
अज्ञानी जीवो आ मनुष्यपणुं पामीने विषयभोगोमां सुख मानीने अटकी जाय छे. जेम बाळक पेंडा खातर
लाखेणो हार आपी दे, तेम अज्ञानी जीव पुण्य–पाप अने विषय भोगना स्वाद पासे चैतन्यरूपी अमूल्य हारने
वेची दे छे! मोंघा मनुष्यपणामां आत्मानी समजण करवाने बदले विषयभोगमां जीवन गुमावी दे छे.
आत्मानी रुचि अने मीठाश छोडीने जे जीव पैसा अने शरीर तथा भोगनी रुचि अने मीठाश करे छे ते
जीव आत्मस्वभावनुं खून अने भावमरण करे छे. एवा भावमरणने टाळवा माटे करुणा करीने श्री आचार्यदेवे
आ रचना करी छे. क्षणिक विकारने पोतानो मानीने आत्मस्वभावनो अनादर करवो ते भावमरण छे–मृत्यु छे.
अमर एवो आत्मस्वभाव छे, तेने ओळखे तो भावमरण टळे. माटे हे भाई, जो तने भवनां दुःखोनो डर होय
तो आत्माने समजवानी प्रीति कर. जन्म–मरणना अंतनी वात अपूर्व छे, मोंघी छे. समजवानी धगश जागे
तेने समजाय तेवी सहेली छे.
जेम कुंवारी दीकरी बापना घरने पोतानुं माने अने तेनी मूडीने पोतानी कहे, पण ज्यां बीजे सगपण
कर्युं त्यां तरत ज मान्यता फरी के आ घर ने आ मूडी मारी नहि, ज्यां सगाई करी छे ते घर ने ते वर मारा;
जुओ मान्यता फरता केटली वार लागी? तेम