: कारतक: २००६ आत्मधर्म : ७ :
प्रभु! तारी चैतन्यसत्ताने परनुं अवलंबन नथी. तारा धर्मनो आधार तारी चैतन्यसत्ता छे. तारा धर्मनो
आधार शरीर नथी, तारा धर्मनो आधार मन नथी, पुण्य–पाप नथी; अंतरमां चैतन्यस्वभाव छे तेनी प्रतीतथी ज
धर्म थाय छे. भाई! तें तारा स्वावलंबी चैतन्यसत्तानी कदी प्रतीत करी नथी. चैतन्यसत्ता एवी नथी के तेनी श्रद्धा
माटे परनुं अवलंबन होय! निर्लेप चैतन्यसत्ता शुद्ध छे तेनी प्रतीत मनना अवलंबने थती नथी, आवी पोताना
चैतन्य भगवाननी सत्ताने भूलीने अनादिथी परमां सुख मानी रह्यो छे, ते मान्यता हवे छोड. तो तारो संसार
टळे ने साचुं सुख प्रगटे.
जो चैतन्यसत्तामां वळीने त्यां एकाग्र थाय तो तो मन मरी जाय छे, अर्थात् मननुं अवलंबन छूटी जाय छे.
मनने मृत्युनो भय छे तेथी ते चैतन्यस्वभावमां लीन थतुं नथी. ‘जो हुं परमात्मस्वरूपमां लीन थईश तो तो मारुं मृत्यु
थई जशे’ –एम मृत्युना भयने लीधे मन आत्मामां ठरतुं नथी ने बहारमां भमे छे. एक वार पण जो मननुं अवलंबन
छोडीने आत्माना स्वभावमां वळे तो जन्ममरणनो नाश थईने मुक्ति थाय छे. ने मनवगरनो मुक्त थई जाय. जो
मनथी पार चैतन्यस्वरूप आत्मानो महिमा जाणीने तेमां ठरे तो मनना संकल्पविकल्पनो नाश थई जाय ने आत्माने
परमात्म दशा प्रगट थई जाय. पहेलांं सत्समागमे ज्ञानस्वभावी आत्मानी ओळखाण करवी जोईए.
सुखनो दरियो चैतन्यप्रभु छे, ने दुःख छे ते क्षणिक विकार छे; मनना अवलंबनथी पण ते विकार टळतो नथी,
अंदरमां चैतन्यसत्ता सुखथी भरपूर छे तेना अवलंबने धर्मनी शरूआत थाय छे ने विकार टळे छे. अंतरमां शरीरातीत–
मनातीत–वचनातीत–ने विकारातीत चैतन्यसत्ता छे तेनी श्रद्धाने कोईनुं अवलंबन नथी, पहेलांं एनो विश्वास आववो
जोईए, चैतन्य सत्ताना विश्वासथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे. ज्यांसुधी चैतन्यनी श्रद्धाने निरालंबी न बनावे अने
ज्ञानने राग वगरनुं न बनावे त्यांसुधी धर्मनी शरूआत थती नथी. माटे हे जीव! स्वाभाविक चैतन्यनी श्रद्धा कर, तेनुं
ज्ञान कर. आनंदकंद आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां एकाग्रता करवी ते ज धर्मनी क्रिया छे, ए सिवाय बीजी कोई धर्मनी
क्रिया नथी. आवी धर्मनी क्रिया ते ज आत्माना साचा सुखनो उपाय छे.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
भादरवा सुद ५ ने रविवारना रोज भाईश्री मलुकचंद छोटालाल झोबाळीया
(अमदावाद) तथा तेमनां धर्मपत्नी समताबेन –ए बंनेए, तेमज भाईश्री खीमचंद छोटालाल
झोबाळीया (सोनगढ) तथा तेमना धर्मपत्नी कसुंबाबेन –ए बंनेए परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री
पासे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे; ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लेनारा सर्वेने अभिनंदन!
[नोंध:] आत्मधर्मना गया अंकमां त्रण भेट पुस्तक संबंधी जे विगत जणावी छे
तेमां सम्यग्दर्शन नामनुं त्रीजुं पुस्तक चूडावाळा शेठश्री गोकळदास शीवलाल तरफथी तेमना
स्वर्गस्थ पुत्रना स्मरणार्थे आत्मधर्मना ग्राहकोने भेट आपवानुं छे. [उपर्युक्त ब्रह्मचर्य
संबंधी तेमज आ, –बंने विगतो गया अंकमां छापवी रही गई, ते माटे जिज्ञासु वांचको
क्षमा करे. –प्रकाशक.]
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
सरदार शहेर (मारवाड)ना शेठश्री शुभकरण दीपचंदजी शेठियाए, भादरवा वद प
ना रोज पू. गुरुदेवश्रीना आहारदाननो प्रसंग पोताने त्यां थयो ते प्रसंगे, सोनगढमां पू.
गुरुदेवश्री पासे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा (तेमना धर्मपत्नीनी संमतिपूर्वक) अंगीकार करी
छे. तेमनी उंमर ३४ वर्षनी छे. आ कार्य माटे तेमने अभिनंदन घटे छे.
– सुधारो –
आत्मधर्म अंक ७२ पृ. २१२ कोलम ३ लाईन १५–१६ मा “ते–माताए जन्म आप्यो
त्यारथी–” एम छे तेने बदले “ते–जेवा माताए जन्म्या तेवा–” आम सुधारीने वांचवुं.